महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी प्रमुख शरद पवार एक अहम फैक्टर रहे हैं. प्रदेश में चार बार सत्ता संभाल चुका यह मराठा क्षत्रप कब कौन सा दांव चलने वाला है इसे समझना बहुत मुश्किल रहा है. एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति में इस चाणक्य के अगले कदमों की चर्चा को लेकर कयासबाजियों का दौर जारी है. महाराष्ट्र सरकार और एनसीपी में हुए इतने बड़े उलटफेर के बाद भी यह समझना मुश्किल है चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच क्या चल रहा है.
82 साल की उम्र में भी सुपर एक्टिव इस मराठे की गतिविधियों से महाविकास अघाड़ी के अन्य घटकों कांग्रेस और शिवसेना ( ठाकरे) में परेशानी का सबब है.बीजेपी में भी इस मराठा चाणक्य को लेकर कम उधेड़बुन नहीं है. पार्टी ने अपनी तमाम योजनाएं इस बुजुर्ग सेनापति के चक्कर में मुल्तवी रखी हुईं हैं.तो क्या महाविकास अघाड़ी से बाहर होंगे शरद पवार, क्या बीजेपी जॉइन करके पवार कोई महत्वपूर्ण पद लेने वाले हैं? आइये जानते हैं कि ऐसी चर्चाओं के पीछे क्या कारण है?
दरअसल, शनिवार को दोनों पवारों की मुलाकात के बाद एक अखबार ने पृथ्वीराज चव्हाण के हवाले से अपनी रिपोर्ट में दावा कर दिया कि बीजेपी ने शरद पवार को केंद्र में कृषि मंत्री बनाने और नीति आयोग का अध्यक्ष बनाने का ऑफर दिया है. इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जबरदस्त हलचल मची हुई है. अखबार ने लिखा है कि बीजेपी की ओर से आए इस ऑफर में सांसद सुप्रिया सुले और विधायक जयंत पाटिल को मंत्री बनाने की भी पेशकश की गई है.बुधवार को हालांकि सुप्रिया सुले की ओर इस तरह कयासबाजियों को गलत बताया गया है. पर महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल कम नहीं हुई है.
महाराष्ट्र विधानसभा हो या राज्यसभा, पवार के साथ कौन एमएलए या एमपी
प्रदेश के डिप्टी सीएम बनने के तुरंत बाद अजित पवार की वो स्पीच आपको याद होगी जब उन्होंने अपने चाचा शरद पवार को काफी कुछ सुनाया था. उसके बाद शरद पवार का बयान भी आपको याद होगा जब उन्होंने बिना नाम लिए धोखा देने वालों को सबक सिखाने की बात की थी. इतना सब होने के बाद भी शरद पवार की एनसीपी में कितने विधायक हैं और कितने एमपी हैं किसी को नहीं पता है.महाराष्ट्र विधानसभा का मानसून सत्र पूरा गुजर चुका है पर दोनों ओर से किसी ने ये नहीं पूछा कि शरद पवार की तरफ से जो विधायक अजीत के साथ बीजेपी सरकार में गए हैं उनकी क्या स्थिति है?
क्या उन्हें अलग गुट के तौर पर मान्यता देने की मांग की गयी? उनके बैठने की व्यवस्था सदन के अंदर क्या है? दूसरी ओर संसद में भी मानसून सत्र गुजर गया पर कहीं से कोई मांग नहीं हुई कि कौन किस ओर है ? दिल्ली वाले विधेयक को लेकर वोटिंग भी हुई पर कहीं से कोई व्हिप नहीं जारी हुआ.प्रफुल्ल पटेल राज्य सभा से अनुपस्थित रहे उनको लेकर भी किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया. लोकसभा में अविश्वास स्ताव आया तो दोनों पक्षों ने व्हिप जारी किया फिर बाद में हटा लिया.इस तरह महाराष्ट्र में पवार घराने की ऐसी तस्वीर बन रही है जहां सिर्फ कन्फ्यूजन है.
उद्धव ठाकरे की तरह अजित के खिलाफ क्यों कोर्ट नहीं गए पवार
सवाल उठता लाजिमी है कि उद्धव ठाकरे की तरह शरद पवार क्यों नहीं कोर्ट गए? शिवसेना पार्टी में भी विघटन भी काफी कुछ एनसीपी की तरह ही हुआ था. शिवसेना में शिंदे गुट के खिलाफ उद्धव ठाकरे लगातार कोर्ट में अपनी बात रखी और यह साबित करने की कोशिश की कि शिंद गुट अवैध है. इस तरह की किसी प्रकार की कोशिश शरद पवार की ओर से नहीं की गई. महाराष्ट्र की राजनीति पर पिछले 2 दशकों से लिख रहे शमित सिन्हा कहते हैं कि शरद पवार कभी ऐसा नहीं करेंगे जो उद्धव ने किया. वो जानते हैं कि कोर्ट से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. सिन्हा कहते हैं कि वो इसी तरह इंडिया-महाविकास अघाड़ी और बीजेपी को कन्फ्यूज करते रहेंगे. सीनियर पवार को समझना इतना आसान नहीं है. 2024 के आम चुनावों के बाद ही वो अपने पत्ते खोलने वाले हैं.
एक तरफ अजित को सबक सिखाने की बात , दूसरी ओर हर रोज मुलाकात
शनिवार को अजित पवार चाचा शरद पवार की तीसरी मुलाकात थी. इस मुलाकात के बाद ही कांग्रेस और शिवसेना के नेताओं के नाराजगी वाले बयान आने शुरू हुए हैं. नाना पटोले का कहना सही ही है कि सीनियर पवार क्यों जूनियर पवार से मिल रहे हैं? पहले 2 बार हुईं मुलाकातें तो सहयोगियों को हजम हो गईं पर तीसरी बार हुई मुलाकात से सहयोगी दलों के सब्र का बांध टूट गया है. पहली बार की मुलाकात को एक पारिवारिक मुलाकात माना गया था. कहा गया कि शरद पवार की पत्नी के हाथ में कुछ चोट लगी थी तो अजित पवार उनका हाल लेने गए थे. दरअसल अजित पवार बचपन से अपनी चाची के चहेते रहे हैं , इसलिए यह मुलाकात हजम हो गई थी.
दूसरी बैठक पर भी बवाल नहीं हुआ क्योंकि वसंतदादा शुगर इन्स्टिट्यूट पुणे में एक प्रशासनिक बैठक थी. चूंकि दोनों इन्स्टिट्यूट में हैं इसलिए यह मान लिया गया कि यह एक प्रशासनिक बैठक है. लेकिन ये तीसरी बैठक पुणे में शरद पवार के एक बड़े उद्योगपति के घर थी. इसलिए धुआं उठना स्वभाविक था. महाराष्ट्र एनसीपी के अध्यक्ष जयंत पाटिल और अजित पवार भी पहुंचते हैं और तीनों के बीच बारी-बारी बैठक होती है. बाद में दोनों पवार कहते हैं कि अपने परिवार से मिलने में गलत क्या है.इस मुलाकात के बाद महाविकास अघाड़ी के दोनों सहयोगी कांग्रेस और शिवसेना (ठाकरे) का नाराज होना तय ही था. बताया जाता है कि महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले संडे को उद्धव ठाकरे और संजय राउत से मिले. चर्चा है कि उद्धव इस मुद्दे पर राहुल गांधी से मिलने वाले हैं. हो सकता है कि एनसीपी से अलग होने की बात पर चर्चा भी हो.
इंडिया की होने वाली मीटिंग की तैयारियों से एनसीपी नदारद
मुंबई में जो विपक्षी गठबंधन इंडिया की अगली बैठक की तैयारियों को देखकर भी ऐसा लग रहा है कि एनसीपी अनमने ढंग से इस मीटिंग में शामिल होने वाली है. दरअसल जिस कद के लीडर हैं शरद पवार और महाराष्ट्र की राजनीति में जो उनका महत्व है उस तरह की सक्रियता नहीं दिख रही है. हालांकि यह भी सही है कि मुख्य रूप से आयोजन की जिम्मेदारी शिवसेना और कांग्रेस के जिम्मे है.हयात होटल में इंडिया गठबंधन की बैठक की तैयारियों का जायजा लेने संजय राउत बसे आगे हैं.एनसीपी ये मानकर चल रही है कि जिस तरह दूसरी पार्टियां मुंबई पहुंचने वाली हैं उसी तरह हमें भी पहुंचना है. इस बीच राज ठाकरे के बयान ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है . उन्होंने कहा कि शरद पवार मोदी के फायदे की राजनीति कर रहे हैं. एक टीम अभी पहले बीजेपी में गयी है, हो सकता है कि दूसरी भी जल्दी चली जाए. महाराष्ट्र में आम लोगों को ये लग रहा है कि शरद पवार दो नावों पर सवार हैं.
सहयोगी पार्टियों को आश्वस्त क्यों नहीं कर रहे पवार
एक और सवाल उठ रहा है कि अगर वास्तव में सीनियर पवार बीजेपी में नहीं जा रहे हैं तो वो अपने सहयोगी दलों से मिलकर उन्हें आश्वस्त क्यों नहीं कर रहे हैं.शरद पवार बार-बार यह बयान दे रहे हैं कि वे बीजेपी के साथ किसी भी कीमत पर नहीं जाएंगे. बीजेपी की जो विचारधारा है, वो उनकी विचारधारा के फ्रेम में फिट नहीं बैठती है. पवार कहते हैं कि मैंने सेक्युलर और प्रगतिशील विचारों की राजनीति की है. वो बार-बार ये भी कह रहे हैं कि बीजेपी के साथ जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. हो सकता है कि 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में इंडिया गठबंधन की बैठक में कुछ क्लीयर हो.
मोदी ही नहीं फडणवीस के साथ भी कर रहे हैं मंच शेयर
1 अगस्त को पुणे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ शरद पवार के मंच साझा करने को लेकर महाविकास अघाड़ी में जमकर बवाल मचा था. पीएम के साथ मंच साझा करना शरद पवार जैसे एक पुराने नेता के लिए कोई मुद्दा नहीं बनना चाहिए था. पीएम का कद इतना बड़ा होता है कि उनके साथ मंच शेयर करना एक गौरव की बात होती है. दूसरी बात यह थी कि वह पुरस्कार समारोह था और खुद पवार के हाथों पीएम को मिलना था. पवार इस बहाने यह कह सकते थे कि वह अपने को इस कार्यक्रम के जरिए पीएम से भी बड़े नेता का छवि बना रहे थे. पर प्रदेश के डिप्टी सीएम फडणवीस के साथ कौन सी मजबूरी के चलते शरद पवार को मंच साझा करना पड़ गया? यह बात लोगों की समझ से परे है. और यही कारण है कि शरद पवार को लेकर उनकी सहयोगी पार्टियों में भरोसा कम होता जा रहा है.
संयम श्रीवास्तव