महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती में एक ऐसा बैंक काम कर रहा है जहां पैसे का कोई लेन-देन नहीं होता. यहां किसी को कर्ज भी नहीं दिया जाता. यहां हम जिस बैंक की बात करने जा रहे हैं वो है- साड़ी बैंक. इस साड़ी बैंक में ऐसी साड़ियां जमा कराई जाती हैं जो एक-दो बार ही पहनी गई हों और अच्छी हालत में नई जैसी ही हों. फिर इन साड़ियों को ऐसी महिलाओं में बांटा जाता है जो पैसे की किल्लत की वजह से इन्हें खरीदने की क्षमता नहीं रखतीं.
अधिकतर ऐसी महिलाओं को ये साड़ियां दी जाती हैं जो खेतों में गन्ने की कटाई जैसे मजदूरी के काम करती हैं. बारामती का इलाका गन्ने के उत्पादन के लिए जाना जाता है. रागिनी फाउंडेशन की अध्यक्ष राजश्री आगम के जेहन में इस तरह का साड़ी बैंक खोलने का आइडिया आया. समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले की जयंती 3 जनवरी को बारामती में इस साड़ी बैंक की शुरुआत की गई.
फाउंडेशन ने संपन्न परिवार की महिलाओं से बैंक में साड़ियां देने के लिए अपील की. सोशल मीडिया पर संदेश पढ़े जाने के एक हफ्ते में ही बैंक के पास 425 साड़ियां आ गईं. इनमें 4000 रुपए कीमत तक की साड़ियां भी शामिल थीं. ये साड़ियां फिर सोमेश्वर चीनी कारखाने इलाके मे गन्ना कटाई करने वाली मजदूर महिलाओं को उपलब्ध कराई गईं. राजश्री आगम ने बताया कि ये मजदूर महिलाएं खेत में काम कर के मुश्किल से घर चला पाती हैं, ऐसे में नई साड़ी खरीदना इनके लिए बहुत मुश्किल होता है.
दूसरी ओर संपन्न घर की कई महिलाएं एक साड़ी पहन लेती हैं तो दोबारा पहनने के लिए कई कई महीने, साल तक नंबर नहीं आता. ऐसी ही साड़ियों को इकट्ठा कर मजदूर महिलाओं में बांटने की बात हमने सोची. स्वयं सहायता महिला बचत गुट और सामाजिक उपक्रम में हिस्सा लेने वाली महिलाओं से साड़ियां बैंक में देने की अपील की गई.
जरी की साड़ी पाकर रो पड़ी महिला
मार्च महीने में रागिनी फाउंडेशन की ओर से फिर बारामती शहर में साड़ियां इकट्ठा करने और बांटने की मुहिम चलाई जाएगी. कुछ महिलाएं अपने पतियों के साथ साड़ियां जमा कराने के लिए बैंक में आईं. इनमें से एक ने कहा कि इससे अच्छी बात क्या हो सकती है कि जो साड़ी अलमारी में ही बंद हो कर रह गई थी, वो अब किसी जरूरतमंद महिला के काम आएगी. इस महिला ने हंसते हुए ये भी कहा कि अब मैं अपने पति से नई साड़ी दिलवाने के लिए कह सकूंगी. जिन मजदूर महिलाओं को ये साड़ियां मिलीं, उनके चेहरे पर खुशी सब कुछ खुद ही बयान कर रही थी. ऐसी ही एक महिला को जरी के काम वाली साड़ी मिली तो वो जार जार रोने लगी. उसने अपनी जिंदगी में पहली बार जरी के काम वाली साड़ी देखी थी.
30 साल की उषा हनुमंत केदार बीते 12 साल से मजदूरी का काम करके परिवार चला रही हैं. बीड जिले की पाटोदा तहसील में सुमली फाटा गांव की रहने वाली उषा बारामती में गन्ना कटाई के लिए आती हैं. उषा की 6 साल की बेटी दिव्यांग है. उषा का कहना है कि परिवार का खर्च ही मुश्किल से चलता है, ऐसे में वो साड़ी खरीदने की सोच भी नहीं सकती थी. साड़ी बैंक से साड़ी मिलने पर उषा बहुत खुश हैं.
32 साल की वैशाली विनोद गन्ना कटाई का काम करती हैं. 15 साल की उम्र में ही वैशाली की शादी हो गई थी. वैशाली के मुताबिक बीते 17 साल में सिर्फ एक बार ही वो नई साड़ी खरीद पाईं. अब साड़ी बैंक से वैशाली को साड़ी मिली तो उसकी आंखें छलछला उठीं.
पंकज खेळकर