मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की डेढ़ साल की अवधि में दो अलग-अलग मौकों पर भूख हड़ताल खत्म होने के बाद, महाराष्ट्र सरकार ने दो प्रमुख नीतियों के जरिए मराठा समुदाय की आरक्षण की मांग को संबोधित किया है. 26 जनवरी, 2024 की मसौदा अधिसूचना और 2 सितंबर, 2025 का सरकारी प्रस्ताव (जीआर). दोनों का मकसद मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र प्रदान करना है, जिससे उन्हें शिक्षा और नौकरी कोटा जैसे ओबीसी लाभों तक पहुंच हासिल हो सके.
2024 की अधिसूचना ने कुनबी वंश वाले मराठों को अपने पैतृक रिश्तेदारों और "ऋषि सोयारे" (एक ही जाति में शादी से बने रिश्तेदार) सहित प्रमाण पत्र हासिल करने की अनुमति दी. आवेदकों को हलफनामे और ऐतिहासिक अभिलेख पेश करने थे.
16 फरवरी, 2024 तक जनता की प्रतिक्रिया के लिए एक अवधि खुली थी. इसके बाद कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने भूख हड़ताल की, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ बातचीत के बाद 27 जनवरी, 2024 को खत्म हुई.
प्रमाण पत्रों को कैसे मिलती है मजूरी?
2 सितंबर, 2025 को जरांगे की पांच दिन की भूख हड़ताल खत्म होने के बाद जारी किए गए 2025 के सरकारी आदेश में एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया शुरू की गई, जिसका ध्यान पूर्व हैदराबाद राज्य क्षेत्र, मराठवाड़ा के मराठों पर केंद्रित था. यह 1918 के हैदराबाद गजट जैसे ऐतिहासिक अभिलेखों को कुनबी वंश के प्रमाण के रूप में स्वीकार करता है. एक ग्राम-स्तरीय पैनल भूमि अभिलेखों और वंशावली दस्तावेजों की जांच करता है, जिसमें एक ग्राम सेवक, तलाठी और कृषि अधिकारी शामिल हैं. इसके बाद ज़िला-स्तरीय समितियां प्रमाण-पत्रों को मंज़ूरी देती हैं, जिससे अपील के विकल्पों और धोखाधड़ी के लिए दंड के साथ पारदर्शिता तय होती है.
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जहां 2024 की अधिसूचना में पारिवारिक संबंधों पर ज़ोर दिया गया था, वहीं 2025 के सरकारी आदेश में ऐतिहासिक साक्ष्यों और एक औपचारिक व्यवस्था को प्राथमिकता दी गई है. दोनों ही ओबीसी लाभों तक मराठों की पहुंच को बढ़ाते हैं, लेकिन मराठों को ओबीसी कैटेगरी में शामिल करने पर बहस छिड़ गई है. ओबीसी और मराठा नेता सीमित कोटे के बंटवारे की स्थिरता पर सवाल उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें समुदायों के बीच तनाव और संसाधनों की कमी का डर है.
ऋत्विक भालेकर