महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर जारी सियासी घमासान के बीच डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने आजतक से खास बातचीत की. इस दौरान शिंदे ने साफ कहा कि उनकी सरकार का रुख बिल्कुल स्पष्ट है कि मराठा समाज को न्याय मिलेगा और साथ ही ओबीसी समाज के अधिकारों और आरक्षण पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
शिंदे ने बताया कि सरकार ने जो जीआर (सरकारी आदेश) निकाला है, वह कानूनी तौर पर पूरी तरह से वैध है.
उन्होंने कहा, “मराठवाड़ा 1960 में अलग हुआ था. उससे पहले के दस्तावेज निजामशाही हैदराबाद में थे. कई साल से यही मांग थी कि हैदराबाद गजट लागू किया जाए. हैदराबाद गैजेट में ‘कापू’ और ‘कुनबी’ जाति का जिक्र है. कापू और कुनबी मतलब किसान. इसी आधार पर मराठा समाज को प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया तय की गई है. जीआर में यह भी कहा गया है कि मराठवाड़ा का नागरिक जब आवेदन करेगा तो उसे एफिडेविट और आवश्यक दस्तावेज देने होंगे. साथ ही, किसी रिश्तेदार या पूर्वज के पास कुनबी प्रमाण पत्र होना जरूरी है.”
हैदराबाद गजट पर छगन भुजबल की नाराजगी पर दी ये प्रतिक्रिया
ओबीसी नेताओं की नाराजगी और मंत्री छगन भुजबल के कैबिनेट बैठक से दूर रहने पर शिंदे ने कहा कि सरकार ने यह फैसला एडवोकेट जनरल और कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा के बाद लिया है. यह जीआर पूरी तरह नियमानुसार है. इससे ओबीसी का आरक्षण बिल्कुल कम नहीं होगा. उन्होंने कहा, “हमारी सरकार सबकी सरकार है. इस जीआर से ओबीसी का आरक्षण बिल्कुल भी कम नहीं होगा. किसी समाज को नुकसान नहीं पहुंचेगा. छगन भुजबल जी चाहें तो कानून विशेषज्ञों से राय ले सकते हैं. हम दावा करते हैं कि यह आदेश कानूनी तौर पर टिकेगा.”
इंटरव्यू के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या मराठा समाज को ओबीसी प्रमाण पत्र मिलने के बाद स्थानीय निकाय चुनावों (जिला परिषद, नगर परिषद और महापालिका) में ओबीसी के राजनीतिक आरक्षण पर असर पड़ेगा? इस पर शिंदे ने कहा, “बिल्कुल नहीं. यह जीआर किसी भी तरह से ओबीसी आरक्षण को प्रभावित नहीं करता. उनका रिजर्वेशन कम नहीं होगा. हमने इस बात का पूरी तरह ध्यान रखा है.”
ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग पर दिया ये जवाब
ओबीसी समाज द्वारा केंद्र से 50% आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग पर शिंदे ने कहा कि इसकी जरूरत तभी होती अगर मराठा समाज को सीधे ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया जाता. उन्होंने कहा, “हमने मराठा समाज को ओबीसी में नहीं डाला है, बल्कि दस्तावेजों के आधार पर प्रक्रिया को आसान बनाया है. मैं दावे के साथ कहता हूं कि भुजबल साहब कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं. ये जीआर ओबीसी के खिलाफ नहीं है.”
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम से जब पूछा गया कि क्या यह विवाद अदालत तक जा सकता है और ओबीसी आरक्षण पर असर पड़ेगा, तो शिंदे ने दोहराया कि यह फैसला संविधान और नियमों के मुताबिक है. उन्होंने कहा, “ओबीसी समाज को इस जीआर से कोई भी हानि नहीं होगी. राजनीतिक आरक्षण पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा. जो आशंकाएं जताई जा रही हैं, वे निराधार हैं.”
केंद्र सरकार से 50% आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग पर शिंदे ने कहा कि इसकी जरूरत तभी होती अगर मराठा समाज को सीधे ओबीसी कैटेगरी में डाला जाता. लेकिन मौजूदा जीआर केवल दस्तावेज़ आधारित प्रक्रिया को आसान बनाने से जुड़ा है, जिससे किसी भी वर्ग के आरक्षण पर आंच नहीं आएगी.
आजतक ब्यूरो