महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को अमलीजामा पहनाने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अनुसूचित जाति के आरक्षण फ़ॉर्मूले में बड़ा बदलाव करने जा रहे हैं. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव मुंबई के मंच से देवेंद्र फडणवीस ने आरक्षण और जाति आंदोलन के मुद्दे पर बोलते हुए अनुसूचित जाति आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा जल्द लागू करने के संकेत दिए.
आरक्षण के मुद्दे पर बोलते हुए मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की व्यवस्था है, जो यह दर्शाती है कि ओबीसी का कोई व्यक्ति अगर संपन्न है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. आरक्षण का लाभ ओबीसी के नॉन-क्रीमी लेयर वर्ग को मिल सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने क्रीमी लेयर और नॉन-क्रीमी लेयर की बहुत स्पष्ट तरीके से व्याख्या की है.
'एक-दो महीने में आरक्षण वर्गीकरण
फडणवीस ने कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में अनुसूचित जाति में भी क्रीमी लेयर के फ़ॉर्मूले को लागू करने की बात कही है. अनुसूचित जाति में भी हर राज्य में एक जाति का प्रभुत्व है, जो आरक्षण का लाभ उठा रही है. साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति के आरक्षण का वर्गीकरण करने की बात कही है, क्योंकि समाज में कई जातियां आरक्षण का उचित लाभ नहीं उठा सकीं.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि एक-दो महीने में अनुसूचित जाति आरक्षण का वर्गीकरण लागू कर देंगे. उन्होंने बताया कि अनुसूचित जाति के आरक्षण के बँटवारे के लिए एक कमेटी गठित कर रखी है. हाई कोर्ट के एक पूर्व जज की अध्यक्षता में यह कमेटी आरक्षण के वर्गीकरण पर काम कर रही है. कमेटी की रिपोर्ट अब अंतिम चरण में है. रिपोर्ट आते ही उसे लागू कर दिया जाएगा.
अनुसूचित जाति को 13% आरक्षण का लाभ
महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति को 13% आरक्षण मिल रहा है, जिसे लेकर वर्गीकरण यानी कोटे के अंदर कोटा की मांग लंबे समय से हो रही है. माना जाता है कि महार, चर्मकार और ढोर जैसी बड़ी जातियाँ आरक्षण का लाभ उठा रही हैं, जबकि राज्य में कम प्रतिनिधित्व वाली जातियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. ऐसे में 13% अनुसूचित जाति के आरक्षण को दो हिस्सों में बांट दिया जाएगा.
आरक्षण के वर्गीकरण पर सियासी बहस
देश के अलग-अलग राज्यों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के साथ ओबीसी वर्ग में सब कैटेगरी और उनके आरक्षण के मुद्दे पर लंबे समय से बहस होती आ रही है. अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने एससी-एसटी आरक्षण को श्रेणी में बांटने का अधिकार राज्य सरकार के पाले में डाल दिया था.
देश के हर एक राज्य में दलित समुदाय के बीच एक डोमिनेटिंग कास्ट होती है. बिहार में पासवान तो यूपी में जाटव और महाराष्ट्र में महार दलित समुदाय के बीच ऐसी जातियां हैं, जिनके खिलाफ दलितों की दूसरी जातियों को गोलबंद कर राजनीतिक इस्तेमाल किया जाता है. महाराष्ट्र में दलित समुदाय के आरक्षण को लंबे समय से कोटा के अंदर कोटा की मांग उठती रही है.
महाराष्ट्र में महार बनाम गैर-महार
महाराष्ट्र में दलित आबादी 13 प्रतिशत के बीच है, जो दो हिस्सों में महार और गैर-महार में बंटी हुई है. महार जाति महाराष्ट्र के दलितों में पचास फीसदी से थोड़ी ज्यादा थी. बाबासाहब ने जब दलित आंदोलन शुरू किया तो उनकी जाति के ज्यादातर महार ही उनसे जुड़े. इसके अलावा बाकी दलित जातियों में मांग, कोरी, खटीक, मातंग, भेड़, चमार,ढोर,डोम औलख, गोतराज हैं. डा. अंबेडकर ने धर्मांतरण किया तब ज्यादातर महार ही बौद्ध बने.
महाराष्ट्र में दलित आरक्षण का ज्यादातर लाभ महार जाति के लोगों के उठाने का आरोप लगता रहा है, जिसके चलते गैर-महार जाति के लिए अलग से कोटा बनाकर आरक्षण की मांग होती रही है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य की सरकार महाराष्ट्र में दलित आरक्षण को श्रेणी में बांटने का कदम उठाना आसान हो गया है और अब देवेंद्र फडणवीस ने इस दिशा में बड़ा ऐलान किया है.
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