महाराष्ट्र में आज नई सरकार का गठन हो रहा है. बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. जबकि एकनाथ शिंदे और अजित पवार डिप्टी सीएम की शपथ लेंगे. लेकिन, अब तक कैबिनेट को लेकर तस्वीर साफ नहीं हो सकी है. जल्द ही नामों का ऐलान किया जा सकता है. हालांकि, इस बार अनोखा यह है कि महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नेता के तौर पर अजित पवार के नाम एक नया रिकॉर्ड दर्ज होने जा रहा है.
हालांकि, संविधान में डिप्टी सीएम बनाए जाने की व्यवस्था नहीं है. लेकिन राजनीतिक समीकरण साधने के लिए सत्तारूढ़ पार्टियां सरकार में नंबर दो की हैसियत का संदेश देने के लिए बीच का रास्ता निकालती हैं और कैबिनेट मंत्री की शपथ लेने वाले वरिष्ठ नेता को यह पद सौंप दिया जाता है. इस समय देश के 14 राज्यों में 23 डिप्टी सीएम हैं. देश का पहला डिप्टी सीएम अनुग्रह नारायण सिन्हा को माना जाता है. अनुग्रह, आजादी के बाद से जुलाई 1957 तक बिहार के डिप्टी सीएम रहे. उनके बाद 1967 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे डिप्टी सीएम बनाए गए थे.
'मैं तो कल शपथ लेने वाला हूं'
इधर, महाराष्ट्र की नई सरकार में अजित पवार ने एक बार फिर अपनी भूमिका तय कर दी है. बुधवार को महायुति की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया कि शिंदे और पवार डिप्टी सीएम की शपथ लेंगे? इस पर एकनाथ ने कहा, शाम तक रुकिए. सब पता चल जाएगा. इसी बीच, अजित पवार ने कहा, शाम तक उनका समझ आएगा. मैं तो कल शपथ लेने वाला हूं. इस पर शिंदे ने मजाकिया अंदाज में कहा, दादा को दोपहर-शाम और सुबह भी शपथ लेने का अनुभव है.
जब 80 घंटे के डिप्टी सीएम बने अजित पवार
अजित पवार (65 साल) महायुति की सरकार में 2023 से डिप्टी सीएम हैं. इससे पहले 2019 में उन्होंने देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ ली थी और 80 घंटे की एनडीए सरकार में डिप्टी सीएम रहे थे. बाद में उन्होंने एनडीए से समर्थन वापस ले लिया था और महाविकास अघाड़ी की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में डिप्टी सीएम बन गए थे.
CM बनने की महत्वाकांक्षा जाहिर कर चुके अजित
इतना ही नहीं, अजित पवार खुले तौर पर मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर कर चुके हैं. अजित ने कहा था कि मैं मुख्यमंत्री बनना चाहता हूं लेकिन गाड़ी डिप्टी सीएम पर ही अटक जा रही है तो क्या करें.
फिलहाल, अजित पवार के अब तक सीएम के समीकरण नहीं बन पाए हैं और गुरुवार को वे एक बार फिर उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे. अजित पवार को सख्त और तेज प्रशासक के तौर पर गिना जाता है. उन्होंने अपनी राजनीतिक शुरुआत चाचा शरद पवार के संरक्षण में की. जुलाई 2023 में वो शरद पवार से बगावत कर महायुति सरकार का हिस्सा बन गए थे.
कब- कब डिप्टी सीएम अजित पवार
अजित पवार पूर्व कांग्रेसी सीएम पृथ्वीराज चव्हाण के कार्यकाल (नवंबर 2010-सितंबर 2012, अक्टूबर 2012-सितंबर 2014) के दौरान दो बार डिप्टी सीएम का पद संभाल चुके हैं. वे तीसरी बार 2019 में एनडीए की सरकार में डिप्टी सीएम बने. तब उन्होंने सुबह-सुबह राजभवन जाकर देवेंद्र फडणवीस के साथ शपथ ली थी. हालांकि, ये सरकार सिर्फ 80 घंटे तक वजूद में रही. उसके बाद चौथी बार उन्होंने पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार में शपथ ली. दिसंबर 2019-जून 2022 तक अजित डिप्टी सीएम रहे.
उसके बाद अजित पवार ने जुलाई 2023 में पांचवीं बार डिप्टी सीएम बनने की उपलब्धि हासिल की है. वे शिवसेना के सीएम एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा बने थे. अब अजित पवार आज छठी बार डिप्टी सीएम की शपथ लेंगे और देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा बनेंगे. अजित पवार कुल 4 सीएम के कार्यकाल में बतौर डिप्टी काम कर चुके हैं. फडणवीस सरकार में वे दूसरी बार डिप्टी सीएम बनेंगे.
संविधान में क्या है प्रावधान?
संविधान के अनुच्छेद 163 और 164 में मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल से जुड़े प्रावधान हैं. अनुच्छेद 163(1) कहता है कि राज्यपाल को सलाह देने के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिमंडल होगा. इसमें प्रावधान है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेंगे और मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रिमंडल की नियुक्ति भी राज्यपाल करेंगे. हालांकि, इन दोनों अनुच्छेदों में डिप्टी सीएम पद का जिक्र नहीं है. डिप्टी सीएम के पद को राज्य में कैबिनेट मंत्री के बराबर समझा जाता है. डिप्टी सीएम को भी वही सैलरी और सुविधाएं मिलती हैं जो एक कैबिनेट मंत्री को मिलती है.
डिप्टी सीएम के पद पर सुप्रीम कोर्ट का क्या फैसला?
इसी साल 12 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने डिप्टी सीएम की नियुक्ति पर फैसला सुनाया था. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा था कि डिप्टी सीएम का पद असंवैधानिक नहीं है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में डिप्टी सीएम की नियुक्तियों को असंवैधानिक बताते हुए एक याचिका दायर की गई थी. ये याचिका पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी नाम की संस्था ने दायर की थी और उसने सुप्रीम कोर्ट से डिप्टी सीएम की नियुक्ति पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिका में दावा किया गया था कि संविधान में डिप्टी सीएम जैसा कोई पद नहीं है. ये संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है.
इस याचिका को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि डिप्टी सीएम का पद एक ओहदा है और इससे किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं होता. उन्होंने कहा था कि डिप्टी सीएम बनने से कोई खास सुविधा या ज्यादा सैलरी नहीं मिलती है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि एक उप-मुख्यमंत्री राज्य सरकार में सबसे पहला और सबसे अहम मंत्री होता है. डिप्टी सीएम का ओहदा संविधान का उल्लंघन नहीं है.
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