शिवसेना विधायक के खिलाफ केस दर्ज, बाघ का शिकार करने का किया था दावा

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के विधायक का हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. इस वीडियो में उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने एक बाघ का शिकार किया था और उसका एक दांत निकाल लिया था. अब उस दांत को वह अपने गले में पहनते हैं.

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शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़ शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़

aajtak.in

  • मुंबई,
  • 24 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:52 PM IST

शिवसेना विधायक संजय गायकवाड़ के इस दावे के कुछ दिनों बाद कि उन्होंने 1987 में एक बाघ का शिकार किया था और उसके दांत को अपने गले में पहन रखा है, राज्य वन विभाग ने शनिवार को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है. वन विभाग ने विधायक के गले में पहने गए दांत को भी कब्जे में ले लिया है.

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एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि कथित बाघ के दांत को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है और उसके अनुसार आगे की कार्रवाई की जाएगी.

बता दें कि विधायक, जो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना से हैं, का हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. इस वीडियो में उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने एक बाघ का शिकार किया था और उसका एक दांत निकाल लिया था. अब उस दांत को वह अपने गले में पहनते हैं.

उप वन संरक्षक (बुलढाणा प्रभाग) सरोज गावस द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक, बुलढाणा विधायक संजय गायकवाड़ ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया था. जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने 1987 में एक बाघ का शिकार किया था और शिकार किए गए जानवर का दांत अपनी गर्दन के चारों ओर पहना हुआ है.

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वन विभाग ने वीडियो का संज्ञान लिया और कथित बाघ के दांत को जब्त कर लिया. बुलढाणा रेंज अधिकारी अभिजीत ठाकरे ने बताया कि विधायक के खिलाफ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया है.

बता दें कि भारतीय वन्य जीव बोर्ड ने 1972 में शेर के स्थान पर बाघ को भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में अपनाया गया था और इसे संरक्षित जानवर घोषित किया गया था. देश के बड़े हिस्सों में इनकी मौजूदगी के कारण इन्हें भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया था. सरकार ने बाघों की कम होती संख्या को देखते हुए 1973 में बाघ बचाओ परियोजना शुरू की थी। इसके तहत चुने हुए बाघ आरक्षित क्षेत्रों को विशिष्ट दर्जा दिया गया और वहां विशेष संरक्षण के लिए प्रयास किए गए और बाद में नेशनल टाइगर ऑथोरिटी का गठन किया गया.

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