31 दिसंबर की रात थी. मुंबई नए वर्ष के स्वागत में इठला रही थी. शहर के होटलों में पार्टियां हो रही थी तो चौक-चौराहे पर लोगों का हुजूम था. जगह-जगह मुंबई पुलिस के जवान अलर्ट थे. तभी जुहू पुलिस स्टेशन में तैनात एक पुलिस इंस्पेक्टर को अपने खबरी से जानकारी मिलती है कि छोटा राजन गैंग के दो शूटर वहां आने वाले हैं. तुरंत पूरा सिस्टम चौकन्ना हो जाता है.
याद रखिए ये 90 का दौर था और लोग 1996 को अलविदा कह 97 में प्रवेश करने वाले थे. ये दौर मुंबई में अंडरवर्ल्ड की लोफरगिरी का समय था. मुंबई में गैंग टकराते थे. छोटा राजन और दाऊद का गैंग ठेकेदार, बार मालिक, बिजनेसमैन से फिरौती वसूलता था.
इसी माहौल में जिस पुलिस इंस्पेक्टर को छोटा राजन के गुर्गों को आने की जानकारी मिली उसकी पुलिस फोर्स में ज्वाइनिंग नई-नई हुई थी. नाम था दया नायक.
एक साल की पुलिस ट्रेनिंग के बाद दया नायक की पोस्टिंग मुंबई पुलिस के वीवीआईपी थाने जुहू में हुई थी.
...मैंने भी गोली चलाई, उन दोनों को मार डाला
31 जुलाई 2025 को मुंबई पुलिस में एसीपी पद से रिटायर हुए दया नायक ने 22 साल पहले एक इंटरव्यू में अपने पहले एनकाउंटर की कहानी बताते हुए कहा था, ", मैं उन्हें अरेस्ट करने के लिए उस लोकेशन पर गया, लेकिन उन्होंने मुझ पर फायरिंग कर दी. अपने बचाव में मैंने भी गोली चलाई औऱ उन दोनों को मार डाला."
रेडिफ डॉट कॉम में छपे एक इंटरव्यू में दया नायक इस एनकाउंटर का फॉलोअप बताते हुए कहते हैं, "मैं डिपार्टमेंट में नया था, इसलिए एक साथ दो गैंगस्टरों के एनकाउंटर बाद मैं चिंतित हो गया. मैंने उन पर गोली इसलिए चलाई क्योंकि उनलोगों ने मुझ पर गोली चलाई थी. मैं चिंतित था क्योंकि वे बड़े गैंगस्टर थे. पुलिस विभाग ने मेरे काम को सराहा, इससे मुझे कॉन्फिडेंस मिला. इसके बाद मुझे स्पेशल स्क्वैड में शिफ्ट कर दिया गया जो गैंगस्टरों के खिलाफ सक्रिय था."
...फिर 21 सालों तक शांत रही वो रिवॉल्वर
80 से ज्यादा क्रिमिनलों का एनकाउंटर करने वाले दया नायक ने मुंबई पुलिस में 30 साल तक नौकरी की. उनकी ज्वाइनिंग 1995 में हुई थी. उन्होंने पहला एनकाउंटर 1996 में किया. 30 साल के करियर में उनकी सर्विस रिवॉल्वर ने गुडों, बदमाशों और पुछल्ले डॉनों पर इतनी गोलियां उगली की वे अंडरवर्ल्ड से लेकर पॉलिटिकल वर्ल्ड में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट की ख्याति पा गए. महाराष्ट्र सरकार ने दया नायक का आखिरी प्रमोशन तब किया जब उनके रिटायरमेंट में दो दिन बचे थे. उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने सीनियर इंस्पेक्टर के पद से एसीपी के पोस्ट पर प्रमोट किया.
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हैरानी की बात यह है कि सियासत से लेकर सिनेमा और मुंबई की गली से लेकर चॉल तक प्रसिद्धि पाने वाले दया नायक ने अपना आखिरी एनकाउंटर 2004 में मलाड में किया था. 2004 से लेकर 31 जुलाई 2025 तक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक की रिवाल्वर खामोश रही है. एक एक शॉट भी फायर नहीं किया गया है. इस रिवॉल्वर को दया नायक बांद्रा स्थित मुंबई क्राइम ब्रांच के दफ्तर में अपने डेस्क पर बड़े गर्व से रखते हैं.
दया नायक ने अबतक कितने बदमाशों का काम तमाम किया है, इसके जवाब में इस सुपर कॉप ने कहा था कि उन्होंने 83 एनकाउंटर किए हैं और 300 लोगों को गिरफ्तार किया है.
अपने बड़े शिकार के बारे में बताते हुए दया नायक अपराध की काली दुनिया के बिगड़ैल खिलाड़ियों के नाम बताते हैं. उन्होंने कहा था, "मैंने मुंबई के कई बड़े अपराधियों को ढेर किया, जैसे-विनोद मटकर, रफ़ीक डब्बावाला, तौफ़ीक़ कालिया."
दादर की एक एनकाउंटर की घटना को याद करते हुए दया नायक ने कहा था, "व्यस्त फूल बाज़ार में पीक आवर्स के दौरान हुई एक मुठभेड़ में मैं घायल हो गया और 17 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा. मैंने तीन आतंकवादियों को मार गिराया. उन्होंने मुझ पर बम फेंका था, लेकिन सौभाग्य से मुझे मामूली चोटें ही आईं."
एनकाउंटर से जुड़े विवाद पर दया नायक ने कहा था कि, "यह हम पर दबाव बनाने का एक हिस्सा है. आईएसआई और बड़े गैंगस्टर हमारे पीछे पड़े हैं. चूंकि हमारा नेटवर्क अच्छा है, इसलिए वे हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. इसलिए वे हमें परेशान करने के दूसरे तरीके अपनाते हैं. वे हम पर झूठे आरोप लगाते हैं."
रेस्तरां में टेबल साफ करते गुजरा बचपन
कर्नाटक के मैंगलोर में जन्मे दया नायक नौ साल की उम्र में मुंबई के रेस्तरां में खाने की टेबल पर पोछा लगाते थे. ये उनकी जिंदगी के संघर्षों भरे दिन थे.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, "1979 में मैं कर्नाटक के अपने गांव से मुंबई आया. मैंने सातवीं कक्षा तक एक कन्नड़ स्कूल में पढ़ाई की थी. हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. इसलिए मेरी मां ने मुझे परिवार की मदद के लिए कुछ पैसे कमाने के लिए मुंबई जाने को कहा. मैं यहां आया और एक होटल में काम करने लगा. होटल मालिक के साथ मेरे अच्छे संबंध थे. उन्होंने मुझे परिवार के सदस्य जैसा माना और मुझे स्कूल जाने के लिए कहा."
दया नायक बताते हैं कि होटल में काम करते हुए उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने कहा था, "मैं पढ़ाई करता और होटल के बरामदे में सोता था.ग्रेजुएशन करने तक मैंने आठ साल होटल में काम किया."
स्नातक करने के बाद दया नायक एक प्लंबर के साथ सुपरवाइज़र के रूप में काम करने लगे. यहां उन्हें 3,000 रुपये प्रति माह मिलता था. दया नायक ने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस परीक्षा पास की और उनका चयन सब-इंस्पेक्टर के पद पर हुआ. पुलिस की नौकरी पक्की होने तक तक वे उसी होटल में रहे.
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