अनुवाद हुई में चूक, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पुणे के व्यक्ति की हिरासत रद्द की

याचिकाकर्ता के वकील ओम एन. लटपटे की मुख्य दलील थी कि हिरासत के आधारों के अंग्रेजी और मराठी संस्करण परस्पर विरोधी थे, जिससे भ्रम पैदा हुआ और उनके मुवक्किल की आदेश को चुनौती देने की क्षमता प्रभावित हुई.

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बॉम्बे हाई कोर्ट. (Photo: PTI) बॉम्बे हाई कोर्ट. (Photo: PTI)

विद्या

  • मुंबई,
  • 23 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:52 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे के 30 वर्षीय मजदूर की हिरासत में रखने के आदेश को रद्द कर दिया और उसे जेल से रिहा करने का निर्देश दिया. अदालत ने पाया कि आदेश में मजदूर को हिरासत में रखने के लिए जो कारण बताए गए थे, उसके अंग्रेजी और मराठी संस्करणों में अंतर था. जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस रंजीत सिंह राजा भोसले की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि आदेश के अंग्रेजी और मराठी संस्करणों में अंतर ने याचिकाकर्ता के मन में भ्रम पैदा किया.

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पीठ ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपना प्रभावी प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ रहा, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 22(5) के तहत उसके अधिकार का उल्लंघन हुआ. भारत के संविधान का अनुच्छेद 22(5) यह अनिवार्य करता है कि किसी के खिलाफ प्रिवेंटिव डिटेंशन का आदेश पारित करने वाले प्राधिकरण को जल्द से जल्द यह बताना होगा किन आधारों पर व्यक्ति को प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखने का आदेश दिया गया है और व्यक्ति को कोर्ट में प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान करना होगा.

यह भी पढ़ें: NIA का बॉम्बे हाई कोर्ट में जवाब, फादर स्टेन स्वामी के नाम से 'दोषी होने का कलंक' हटाने की याचिका का विरोध

यह संविधान के अनुच्छेद 22 में दिया गया एक प्रमुख सुरक्षा उपाय है, जो व्यक्तियों को मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत से बचाता है. हिरासत आदेश, जो 22 नवंबर 2024 को पुणे के पुलिस कमिश्नर द्वारा जारी किया गया था, 'महाराष्ट्र खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1981' की धारा 3(2) के तहत था. याचिकाकर्ता को एमपीडीए अधिनियम के तहत 'खतरनाक व्यक्ति' माना गया था, जो पुणे शहर के परवती पुलिस स्टेशन में दर्ज हत्या के प्रयास के एक मामले और दो गुप्त गवाहों के बयानों पर आधारित था.

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क्या था पूरा मामला?

याचिकाकर्ता के वकील ओम एन. लटपटे की मुख्य दलील थी कि हिरासत के आधारों के अंग्रेजी और मराठी संस्करण परस्पर विरोधी थे, जिससे भ्रम पैदा हुआ और उनके मुवक्किल की आदेश को चुनौती देने की क्षमता प्रभावित हुई. आदेश के अंग्रेजी संस्करण में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की जमानत याचिका को अदालत ने स्वीकार कर लिया है. हालांकि, मराठी संस्करण में सही ढंग से उल्लेख किया गया था कि याचिकाकर्ता न्यायिक हिरासत में था और भविष्य में उसे जमानत मिलने की संभावना थी. अदालत ने इस दलील को स्वीकार किया और 22 नवंबर 2024 के हिरासत आदेश को रद्द कर दिया. साथ ही, याचिकाकर्ता शरवन उर्फ राहुल अशोक बुरुंगले को नासिक सेंट्रल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया, जहां वह हिरासत के दौरान बंद था.
 

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