27 अक्टूबर को देश में छठ पूजा के पहले अर्घ्य की तैयारियां चल रही थीं, लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी में जुटे थे, महाराष्ट्र में किसानों का एक मार्च शुरू हो रहा था. बच्चू कडू की अगुवाई में अमरावती से नागपुर तक निकले इस ट्रैक्टर मार्च ने 'महा एल्गार आंदोलन' की शक्ल ले ली. किसानों की मांगों की गूंज मुंबई तक पहुंच गई है और प्रदेश की राजधानी में इसे लेकर अहम बैठक होनी है.
आंदोलनकारी किसान एमएसपी की गारंटी के साथ ही पूर्ण कर्ज माफी और सोयाबीन की खरीद राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ के जरिये कराने की मांग कर रहे हैं. इस पूरे आंदोलन में एक नाम की चर्चा खूब हो रही है. वह नाम है आंदोलन की अगुवाई कर रहे बच्चू कडू का. बच्चू कडू ने किसान आंदोलन को लेकर स्पष्ट कहा है कि मुंबई में मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद हम आंदोलन की दशा-दिशा पर फैसला लेंगे. बच्चू कडू कौन हैं और ये कैसे किसान आंदोलन का चेहरा बन गए?
बच्चू कडू का असली नाम ओमप्रकाश बाबाराव कडू है. आक्रामक तेवरों के लिए अलग पहचान रखने वाले बच्चू कडू महाराष्ट्र में किसानों और दिव्यांगों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते हैं. साल 1999 में प्रहार जनशक्ति पार्टी नाम से अपना राजनीतिक दल बनाने वाले बच्चू कडू की पार्टी का बेस भी किसान ही माने जाते हैं. बच्चू कडू साल 2004 से 2019 तक, लगातार चार बार विधायक रहे. 2024 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार ने बच्चू कडू को हराकर अचलपुर में कमल खिला दिया था.
एमवीए और महायुति सरकार में रहे मंत्री
बच्चू कडू अमरावती जिले के अचलपुर विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक रहे. वह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकुर की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार में राज्यमंत्री रहे. एकनाथ शिंदे की अगुवाई में हुई बगावत के बाद शिवसेना जब दो भाग में बंट गई, बच्चू कडू की पार्टी ने शिंदे गुट का समर्थन किया. एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महायुति सरकार के समय बच्चू कडू को दिव्यांग कल्याण मंत्रालय के प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था.
विवादों से भी रहा है नाता
बच्चू कडू का विवादों से भी नाता रहा है. तीखे बयानों के लिए जाने जाने वाले बच्चू कडू हाल ही में अपने एक बयान से विवादों में आ गए थे. बच्चू कडू ने नासिक में किसानों को संबोधित करते हुए कहा था कि आत्महत्या करने की बजाय किसी विधायक को मारो. बच्चू कडू के इस बयान पर सियासी हंगामा मच गया था और उन पर हिंसा भड़काने के आरोप भी लगे थे. बच्चू कडू ने विधानसभा चुनाव के समय जो हलफनामा दिया था, उसके मुताबिक उनके खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं.
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किसान आंदोलन का चेहरा कैसे बने
दरअसल, बच्चू कडू किसानों और दिव्यांगों के मुद्दों पर मुखर नेता की पहचान रखते हैं. उनकी पार्टी की पॉलिटिक्स का बेस भी किसान और दिव्यांग ही हैं. महाराष्ट्र के मध्य इलाके में भारी बारिश के कारण बने बाढ़ जैसे हालात से प्रभावित किसानों के लिए सरकार की ओर से कई वादे किए गए थे. बच्चू कडू ने इन वादों को आधार बनाकर ही एक मुहिम शुरू की, जिसने बड़े आंदोलन का रूप ले लिया.
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बच्चू कडू का दावा है कि सरकार ने वादे कर दिए, लेकिन अमल नहीं हुआ. प्रदेश सरकार के पास पैसे नहीं हैं, तो केंद्र सरकार को मदद करनी चाहिए. उन्होंने मध्य प्रदेश की तर्ज पर भावांतर योजना की भी डिमांड की है और दिव्यांग किसानों को न्याय की भी मांग की है. किसानों की अन्य मांगों में सोयाबीन के लिए छह हजार प्रति क्विंटल एमएसपी, हर फसल पर 20 फीसदी बोनस भी शामिल है.
किसानों की डिमांड में कितना दम
महाराष्ट्र में पिछले साल यानी 2024 में विधानसभा चुनाव हुए थे. सूबे की सत्ता पर काबिज महायुति ने चुनावों के लिए अपना मेनिफेस्टो 5 नवंबर 2024 को जारी किया था. इसमें पांच गारंटियां दी गई थीं, जिनमें किसान कर्जमाफी भी था. किसानों की डिमांड पर सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी सकारात्मक संकेत देते हुए कहा है कि हम कभी इसके खिलाफ नहीं रहे हैं. हमने इसके लिए एक कमेटी गठित की है.
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