छत्रपति शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि के अवसर पर रायगढ़ किला संवर्धन समिति की ओर से एक कार्यक्रम का आयोजन शनिवार को किया गया. कार्यक्रम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, महाराष्ट्र सीएम देवेंद्र फडणवीस, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने भी शिरकत की. इस दौरान अमित शाह ने छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्शों को घर-घर तक पहुंचाने का आह्वान किया. सीएम देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने कार्यक्रम को संबोधित किया, लेकिन अजित पवार ने भाषण नहीं दिया.
इस अवसर पर अमित शाह ने कहा कि शिवाजी महाराज को सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित न रखें, वे पूरे देश की धरोहर हैं. उन्होंने कहा कि मैं यहां न तो भाषण देने आया हूं, न ही राजनीति करने. मैं यहां छत्रपति शिवाजी महाराज के विचारों से प्रेरणा लेने आया हूं. मुझे 'शिव मुद्रा' भेंट में प्राप्त हुई है, इस शिवमुद्रा का संदेश बहुत आदर्श संदेश है. जो न केवल भारत के लिए, बल्कि समस्त विश्व के लिए प्रेरणास्रोत है.
अमित शाह ने कहा कि मैं वर्षों बाद यहां आया हूं, जब मैंने सिंहासन को नमन किया, तो मेरे मन में जो भावनाएं उमड़ीं, उन्हें शब्दों में पिरोना कठिन है. जिस महापुरुष ने स्वधर्म और स्वराज्य के लिए संघर्ष किया, उनके सान्निध्य में खड़ा होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है.
केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि जब शिवाजी महाराज का जन्म हुआ, तब देश पर निराशा और भय का वातावरण था. दक्षिण भारत भी पतन की ओर बढ़ रहा था, ऐसे समय में स्वराज्य और स्वधर्म की बातें अपराध की तरह प्रतीत होती थीं, लेकिन एक 12 वर्षीय बालक ने सिंधु से कन्याकुमारी तक भगवा ध्वज लहराने का संकल्प लिया. उन्होंने कहा कि मैंने कई वीरों की जीवनगाथाएं पढ़ी हैं, लेकिन शिवाजी महाराज की असाधारण इच्छाशक्ति, रणनीति और जनता को एकत्र कर अपराजेय सेना का निर्माण अद्वितीय है. उन्होंने बिना वंश-परंपरा या संसाधनों के मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी थी. उनके मावले अटक, कटक, बंगाल और दक्षिण तक पहुंचे. तभी भारतवासियों को स्वतंत्रता की वास्तविक अनुभूति होने लगी थी.
अमित शाह ने कहा कि जो खुद को 'अलमगीर' कहता था, वह महाराष्ट्र में पराजित हुआ और उसकी समाधि भी आज यहीं है. ये शिवाजी महाराज के साहस और संकल्प की जीत है. उनका चरित्र सिर्फ एक क्षेत्र का नहीं, पूरे भारत का गौरव है. हर बच्चे को उनका इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज को सिर्फ महाराष्ट्र के दायरे में न बांधें. आज विश्व उनके सिद्धांतों से प्रेरणा ले रहा है. स्वधर्म का गर्व, स्वराज्य की आकांक्षा और अपनी भाषा का सम्मान किसी सीमा में नहीं बंधें, ये मानव स्वाभिमान के स्तंभ हैं.
ऋत्विक भालेकर