बारामती के मालेगांव चीनी मिल चुनाव में अजित गुट ने 21 में से 20 सीटें जीतीं, शरद गुट को लगा करारा झटका

इस चुनाव में अजित पवार ने खुद 'ब वर्ग' से उम्मीदवारी की थी और अध्यक्ष पद के लिए अपना नाम भी घोषित किया था, जिससे यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण बन गया था. अजित पवार ने इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय मानते हुए बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार 8-10 दिन कारखाने परिसर में बिताए, गन्ना उत्पादक किसानों से मिलकर उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की.

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अजित पवार गुट ने मालेगांव चीनी मिल चुनाव में जीत का परचम लहराया है अजित पवार गुट ने मालेगांव चीनी मिल चुनाव में जीत का परचम लहराया है

वसंत मोरे

  • पुणे,
  • 26 जून 2025,
  • अपडेटेड 1:55 PM IST

पुणे जिले के बारामती लोकसभा क्षेत्र में स्थित मालेगांव सहकारी चीनी कारखाना के निदेशक मंडल के चुनाव में उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाले नीलकंठेश्वर पैनल ने 20 में से 20 सीटें जीतकर जबर्दस्त विजय हासिल की है. वहीं, शरद पवार गुट को एक भी सीट नहीं मिली. पवार परिवार के परंपरागत विरोधी चंद्रराव तावरे और रंजन तावरे द्वारा समर्थित 'सहकार बचाव पैनल' को सिर्फ एक ही सीट से संतोष करना पड़ा. इस पैनल से केवल चंद्रराव तावरे ही जीत दर्ज कर सके, जबकि रंजन तावरे को हार का सामना करना पड़ा.

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क्यों खास था यह चुनाव?

इस चुनाव में अजित पवार ने खुद 'ब वर्ग' से उम्मीदवारी की थी और अध्यक्ष पद के लिए अपना नाम भी घोषित किया था, जिससे यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण बन गया था. अजित पवार ने इसे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का विषय मानते हुए बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान लगातार 8-10 दिन कारखाने परिसर में बिताए, गन्ना उत्पादक किसानों से मिलकर उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश की.

शरद पवार गुट की हार

शरद पवार गुट के प्रमुख नेता सांसद सुप्रिया सुले और युगेंद्र पवार द्वारा समर्थित 'बलिराजा सहकार बचाओ पैनल' ने 20 उम्मीदवार खड़े किए थे, लेकिन उनके सभी प्रत्याशी बुरी तरह हार गए. अधिकांश उम्मीदवारों को 500 से 1000 वोट ही मिले, जो साफ दर्शाता है कि मतदाताओं ने शरद पवार गुट को पूरी तरह नकार दिया.

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अजित ने किया आक्रामक प्रचार

इस चुनाव में अजित पवार ने आक्रामक तरीके से प्रचार किया. अपने भाषण में उन्होंने कहा कि अगले 5 सालों तक राज्य के अन्य कारखानों की तुलना में सबसे ज़्यादा गन्ना मूल्य दिया जाएगा. निदेशकों को कोई गाड़ी, ड्राइवर या भत्ता नहीं मिलेगा. कारखाने को केंद्र और राज्य सरकार से भरपूर सहयोग मिलेगा. कारखाने के क्षेत्र में सीएसआर फंड से सड़कें पक्की की जाएंगी. इन घोषणाओं ने मतदाताओं को प्रभावित किया और नीलकंठेश्वर पैनल को भारी समर्थन मिला.

विपक्ष के प्रदर्शन पर सवाल

पिछले चुनाव में विपक्ष के चार संचालक जीते थे, जिनमें से एक प्रताप अटोले बाद में अजित पवार के पैनल में शामिल हो गए थे. अजित पवार ने आरोप लगाया कि बाकी तीन संचालक बोर्ड की बैठकों से गायब रहते थे, सदस्यों की समस्याएं नहीं उठाते थे, जिससे सदस्यों में नाराज़गी बढ़ी. इसका फायदा इस बार नीलकंठेश्वर पैनल को मिला.

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