उत्तराखंड: हरेला पर्व पर मुख्यमंत्री धामी की अपील, मुलाकात के दौरान उपहार में दें पौधा

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व पर गुलदस्ता लेने की परंपरा को खत्म किया है. उन्होंने मुलाकात करने आए अतिथियों से अपील की है कि उन्हें फूलों के गुलदस्ते न देकर एक पौधा भेंट करें.

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी.

दिलीप सिंह राठौड़

  • देहरादून,
  • 16 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 4:13 PM IST
  • उत्तराखंड का लोकपर्व है हरेला
  • लोगों से की पौधा देने की अपील
  • कर्क संक्रांति को मनाते हैं हरेला पर्व

उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला पर एक बड़ा फैसला लिया है. सीएम धामी ने उनसे मुलाकात करने आने वाले अतिथियों से अपील की है कि वे मिलते वक्त फूलों का गुलदस्ता उन्हें न सौंपे. गुलदस्ते की जगह एक पौधा भेंट में दे. इससे अलग-अलग तरह के पौधों का रोपण कर लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा.

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उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण के साथ ही उनके संरक्षण की ओर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. मेरा सभी प्रदेशवासियों से यह आग्रह है कि एक-दूसरे को उपहार स्वरूप पौधा भेंट करें. हमारे पूर्वजों द्वारा प्रकृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक सराहनीय प्रयास किए गए  हैं.

उन्होंने कहा कि इस प्रथा को बढ़ावा देने से मिट्टी, पोर्सलिन, तांबा और पीतल के बर्तन बनाने वाले कारीगरों को भी आजीविका का अवरस मिलेगा. सीएम धामी के इस फैसले को बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. उत्तराखंड में मानाया जाने वाला हरेला पर्व, एक लोक पर्व है.

हरेला पर्व से होती है सावन की शुरुआत

हरेला पर्व उत्तराखंड में मानए जाने वाले लोक त्योहारों में एक प्रमुख त्योहार है. यह लोकपर्व हर साल कर्क संक्राति पर मनाया जाता है. यह त्योहार हरियाली का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि जिस दिन जितना अच्छा और बड़ा हरैला होगा, उस वर्ष उतनी ही अच्छी फसल होगी. हिंदू पंचांग के अनुसार जब सूर्य, मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब कर्क संक्रांति का योग बनता है. 

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कैसे मनाते हैं हरेला पर्व?

सावन महीना लगने से 10 दिन पहले पूजा स्थान या किसी साफ जगह पर एक बर्तन या टोकरी में कुछ मिट्टी भर के, 7 तरह के अलग-अलग अनाज (बीज) बोए जाते हैं. सामान्यत: धान, गेहूं, जौ, उड़द, सरसो और भट्ट बोते हैं. रोज पानी छिड़कर पौधे उगने का इंतजार करते हैं. सांकेतिक तौर पर इसकी गुड़ाई भी की जाती है. इन्हीं पौधों को हरेला कहा जाता है. 

हरेला पर्व के दिन इन पौधों को काटकर भगवान के चरणों में अर्पित कर पूजते हैं. भगवान से मांगते हैं कि इस साल अच्छी फसल हो. भगवान का आशीर्वाद समझकर कुछ पौधे सिर और कान के पीछे रखे जाते हैं. इस दिन कुमाऊनी में गीत गाकर अपने से छोटों को आशीर्वाद भी दिया जाता है.

कुमाऊनी गीत गाकर देते हैं आशीर्वाद

'दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइए
हिमाल में ह्युं  तक,
गंग ज्यू में पांणि तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जए,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो.'

इस गाने का अर्थ है कि तुम जीवन पथ पर विजयी बनो, जागृत बने रहो, समृद्ध बनो, तरक्की करो. दूब-घास की तरह तुम्हारी जड़ सदा हरी रहे, बेर के पेड़ की तरह तुम्हारा परिवार फूले और फले. जब तक कि हिमालय में बर्फ है, गंगा में पानी है, तब तक ये शुभ दिन, मास तुम्हारे जीवन में आते रहें. आकाश की तरह ऊंचे हो जाओ, धरती की तरह विस्तृत बन जाओ, सियार की तरह तुम्हारी बुद्धि हो, शेर की तरह तुम में प्राणशक्ति हो. 
 

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