झारखंड: स्टेट फुटबॉल प्लेयर बनी दिहाड़ी मजदूर, आर्थिक तंगी ने थामी हौसलों की उड़ान

सरकारी उपेक्षा की वजह से एक बेहतरीन खिलाड़ी दिहाड़ी मजदूर बन बैठी है. टैलेंट इतना है कि न केवल फुटबॉल बल्कि दौड़ने में भी सुमति मरांडी अव्वल हैं. सुमति धनबाद के पुरुलिया बस्ती की रहने वाली हैं.

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अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए खेतों में मजदूरी करती हैं सुमति मरांडी. अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए खेतों में मजदूरी करती हैं सुमति मरांडी.

सत्यजीत कुमार / सिथुन मोदक

  • धनबाद,
  • 05 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 9:26 PM IST
  • राज्य और जिला स्तर पर जीत चुकी हैं कई मेडल
  • परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी से थमा करियर
  • दूसरों के खेतों में काम करने को हैं मजबूर

झारखंड (Jharkhand) की सुमति मरांडी (sumati Marndi) राज्य स्तरीय फुटबॉल (Football) प्लेयर रह चुकी हैं. उन्होंने अपने खेल करियर में कई मेडल अपने नाम किए हैं. आर्थिक तंगी की ऐसी मार पड़ी कि उन्हें दूसरों के खेतों में महज 125 रुपये के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है. सरकारी उपेक्षा की वजह से एक बेहतरीन खिलाड़ी दिहाड़ी मजदूर बन बैठी है. टैलेंट इतना है कि न केवल फुटबॉल बल्कि दौड़ने में भी सुमति मरांडी अव्वल हैं. सुमति धनबाद के पुरुलिया बस्ती की रहने वाली हैं.
 
आदिवासी दंपति लखीराम मरांडी और शनि मरांडी की इकलौती बेटी सुमति ने खेल की दुनिया में मां-बाप का नाम रोशन किया. बेटी होने के बाद इन्हें बेटे की कभी चाह नहीं हुई. बेटी से ही अपने सपनों को पूरा कराने की इच्छा इनके अंदर रही. बेटी सुमति मरांडी स्टेट लेवल की प्लेयर बनीं. अपने मां-बाप के सपनों को पूरा किया. फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर सुमति ने राज्य  स्तरीय प्रतियोगिता में अपना परचम लहराया.

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नवंबर 2019 में रांची में आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में इन्होंने हिस्सा लिया. सुमति ने धनबाद जिला स्तर पर कई फुटबॉल टीमों में हिस्सा लिया और मेडल जीते. फुटबॉलर के साथ साथ वह अच्छी धाविका भी हैं. साल 2016 में राज्य स्तरीय एथलेटिक्स में 400 मीटर दौड़ में मेडल हासिल कर चुकी हैं. लेकिन अब उनके परिवार की स्थिति दयनीय हो चली है.

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परिवार पालने के लिए खेतों में दिहाड़ी

परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई है. परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए वह दूसरे के खेतों में दिहाड़ी मजदूरी का काम करती हैं. मुश्किलों के बीच भी खिलाड़ी ने प्रैक्टिस नहीं छोड़ी है. सुमति कहती हैं कि सरकार से अगर उन्हें कोई नौकरी मिल जाती तो परिवार के भरण पोषण में मदद मिल जाती. साथ ही वह अपने और माता-पिता के सपनों को भी ऊंचाई तक ले जा सकती थीं.

 

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खेतों में मजदूरी करके 125 रुपये हर दिन कमाती हैं सुमति मरांडी.

परिवार लगा रहा सरकार से नौकरी की गुहार

सुमति की मां शनि मरांडी कहती हैं कि हमारी यही एक संतान है. बुढापे का सहारा है. इतना अच्छा खेलने के बावजूद सरकार का ध्यान हमारी बेटी पर नहीं जा रहा है. सरकार अगर मदद नहीं करेगी तो हमारी सड़क पर बैठकर भीख मांगने की नौबत आ सकती है. सरकार की तरफ से महीने में पांच किलो अनाज मिलता है. यह भी पूरा नहीं हो पाता है. सुमति के पिता लखीराम मरांडी का कहना है कि सरकार बेटी को एक नौकरी दे देती तो अच्छा रहता. हम सब का गुजर बसर भी चल जाता. साथ ही हमारी और बेटी के सपनों को पंख भी लग जाते.
 

सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रही हैं सुमति मरांडी.

 

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