झारखंड में आधी आबादी (लगभग 46 प्रतिशत ) गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है लेकिन इस पिछड़े राज्य के 'माननीयों' को लाखों में वेतन मिलता है. बेशक उनका बेसिक कम है. इसके बावजूद कमाई पर वे टैक्स तक अपनी जेब से नहीं भरते और जनता की गढ़ी कमाई के पैसों का इस्तेमाल सरकार इन 'माननीयों' का टैक्स भरने के लिए करती है. हर साल 2015 के बाद 82 'माननीयों' के टैक्स पर 5 करोड़ का खर्च आता है जिसे सरकार ही वहन करती है. जनता अब जनप्रतिनिधियों के इस बेअदबी से नाराज है और सवाल उठा रही है.
झारखंड विधानसभा के ज्यादातर 'माननीय' करोड़पति हैं. इनकी औसत कमाई 2014 में करीब 1.5 करोड़ थी जो 2019 में 3.5 करोड़ तक जा पहुंची है. क्रिकेट आइकॉन महेंद्र सिंह धोनी सबसे ज्यादा टैक्स भरकर करदाताओं को हर साल मोटिवेट करते हैं कि टैक्स करदाता जरूर भरें. जबकि माननीयों की लाखों की कमाई पर आने वाले टैक्स को सरकार भरती है. यानी जिन्हें सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए और आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए जनता और करदाता से अपील करनी चाहिए थी, वे खुद ही अपना टैक्स जनता की जेब से भरवा रहे हैं.
इस मसले पर इकोनॉमिक्स के स्थानीय कॉलेज के छात्रों का मानना है कि इन माननीयों के पास कौन सा अभाव है जो वो सरकार से अपना टैक्स जमा करवाते हैं. जबकि माननीयों को ये प्रयास करना चाहिए कि सिस्टम में रहकर आर्थिक स्थिति कैसे मजबूत की जाए. लेकिन यहां उल्टा हो रहा है. रेलवे के पूर्व कर्मचारी सुशांतो का कहना है कि इनके पास पावर है. ये विधानसभा के अंदर कानून बना सकते हैं. ये अपने पक्ष में कुछ भी पास करवा लेते हैं. इनकी मालिक जनता है. एक आयोग बनना चाहिए, जो इस पर नजर रखे. अल्बर्ट एक्का चौक पर दुकान लगाकर और पराठे या चाउमीन बनाकर अपने परिवार को पालने वाले दीपक कहते हैं- जब वे 20 से 30 हजार कमाने वाले हैं फिर भी टैक्स देते हैं तो विधायक क्यों नही देंगे.
विधायक सरयू राय कहते हैं कि सरकार नियमावली में संशोधन कर दे, उन्हें टैक्स देने में कोई परेशानी नहीं है. अगर सरकार इसमें बदलाव लाना चाहे तो उन्हें आपत्ति नहीं होगी. वहीं, संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम से सवाल किया गया कि उन 7 राज्यों में झारखंड भी शामिल है, जहां सरकारें ही माननीयों का टैक्स भरती हैं. इस पर मंत्री आलम ने कहा कि वे देखेंगे कि किन परिस्थितियों में ऐसा किया गया था. नियमावली में संशोधन कर माननीयों को टैक्स देने के लिए कहने पर सरकार विचार जरूर करेगी.
बताते चलें कि माननीयों की औसत संपति वृद्धि 2014 के अनुपात में 2019 में 74 % का इजाफा हुआ था. सबसे ज्यादा कमाई वाले विधायक 2019 में मनीष जेशवाल बीजेपी, रामेश्वर ओरन कांग्रेस, शशि भूषण मेहता झामुमो हैं. किसी की भी औसत संपति झारखंड में करोड़ से कम नहीं है. 73 % झामुमो विधायको की संपत्ति करोड़ में है. BJP और बाकी दल के विधायक भी कहीं कम नहीं हैं. यहां 2017 में आखिरी बार विधायकों के लिए वेतन की बढ़ोतरी की गई थी.
विधायकों का वेतन 30,000-40,000, क्षेत्रीय भत्ता 20,000-50,000, सत्कार भत्ता 20,000-30,000, प्रभारी भत्ता 53,500- 74,500, चिकित्सा भत्ता 5,000-10,000
नेता विपक्ष वेतन 50,000-65,000, क्षेत्रीय भत्ता 30,000-80,000, सत्कार भत्ता 30,000-45,000, प्रभारी भत्ता 53,500- 74,500, चिकित्सा भत्ता 5,000-10,000, टेलीफोन भत्ता एक-एक लाख
विधानसभा अध्यक्ष वेतन 55,000 -78,000, क्षेत्रीय भत्ता 40,000-80,000, सत्कार भत्ता 35,000-60,000, प्रभारी भत्ता 53,500-74,500, चिकित्सा भत्ता 5,000-10,000, टेलीफोन भत्ता एक लाख (वार्षिक) 10,000 (प्रति माह)
मंत्री वेतन 50,000 -65,000, क्षेत्रीय भत्ता 30,000- 80,000, सत्कार भत्ता 30,000 -45,000, प्रभारी भत्ता 53,500 -74,500, चिकित्सा भत्ता 5,000 10,000
मुख्यमंत्री वर्तमान अनुमोदित वेतन 60,000- 80,000 क्षेत्रीय भत्ता 40,000- 80,000 सत्कार भत्ता 35,000- 60,000, प्रभारी भत्ता 53,500- 74,500, चिकित्सा भत्ता 5,000 -10,000
सत्यजीत कुमार