कौन हैं अयोध्या राम मंदिर के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपूरा? जिन्हें मिला पद्मश्री सम्मान, ऑस्ट्रेलिया और मुंबई के प्रोजेक्ट पर कर रहे हैं काम

राम मंदिर के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपूरा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजे गए हैं. उनके परिवार में यह दूसरा पद्मश्री पुरस्कार है. उन्होंने आजतक के साथ विशेष बातचीत में अपनी यात्रा और उपलब्धियों को साझा किया. उन्होंने बताया कि यह पुरस्कार उन्हें प्रभु राम की कृपा से मिला है और यह उनके लिए बेहद सम्मानजनक क्षण है.

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अयोध्या राम मंदिर के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपूरा. (Photo: Aajtak) अयोध्या राम मंदिर के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपूरा. (Photo: Aajtak)

ब्रिजेश दोशी

  • अहमदाबाद,
  • 26 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:59 PM IST

अयोध्या राम मंदिर के आर्किटेक्ट चंद्रकांत सोमपुरा (Ram Mandir Architect Chandrakant Sompura) को पद्मश्री सम्मान मिला है. इससे पहले उनके दादा को 50 साल पहले सोमनाथ मंदिर के लिए पद्मश्री मिला था. अब उनके पास राम मंदिर के आर्किटेक्ट के तौर पर यह सम्मान आया है. चंद्रकांत सोमपूरा वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया में ऊंचाई वाले शिखर और मुंबई में मंदिर के निर्माण पर भी काम कर रहे हैं, जो उनके द्वारा की जा रही कड़ी मेहनत और समर्पण का प्रतीक है.

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चंद्रकांत सोमपूरा के दादा को 50 साल पहले सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए पद्मश्री पुरस्कार मिल चुका है. अब उन्होंने राम मंदिर के आर्किटेक्ट के रूप में काम किया, जिसके बाद यह सम्मान प्राप्त हुआ है. चंद्रकांत का कहना है कि यह उनके परिवार के लिए गर्व और खुशी का विषय है.

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सोमपूरा ने राम मंदिर के निर्माण में 40 वर्षों तक निरंतर काम किया. अब वे गर्व महसूस करते हैं कि प्रभु श्रीराम 400 वर्षों के बाद इस मंदिर में विराजमान हैं. उन्होंने कहा कि जिन्होंने भी अयोध्या जाकर राम मंदिर में दर्शन किया है, उन्होंने मंदिर की वास्तुकला की जमकर सराहना की है, जो उन्हें अत्यधिक संतोष और आनंद प्रदान करती है.

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चंद्रकांत सोमपूरा वर्तमान में दो बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं. एक प्रोजेक्ट ऑस्ट्रेलिया में 700 मीटर ऊंचा शिखर बनाने का है, जबकि दूसरा प्रोजेक्ट मुंबई में सोमैया मंदिर के निर्माण से जुड़ा है, जिसे 40 वर्षों बाद फिर से शुरू किया जा रहा है. चंद्रकांत सोमपूरा का कहना है कि उनके लिए यह यात्रा केवल एक आर्किटेक्ट के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और धार्मिक धरोहर के संरक्षक के रूप में भी बेहद महत्वपूर्ण रही है.

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