अहमदाबाद में रहने वाली दो बुजुर्ग सगी बहने अपने हौसले और साहस की वजह से शहर की सड़कों पर लोगो का ध्यान आकर्षित कर रही है. 86 साल की मंदाबेन शाह और 83 साल की उषाबेन शाह जब शहर की सड़कों पर स्कूटर लेकर निकलती है तो आसपास में लोग दोनों बुजुर्ग बहनों के हौसले को सलाम करने पर मजबूर हो जाते है.
अहमदाबाद के धरणीधर में में रहने वाली दो बुजुर्ग बहनें, जिनमें से एक की उम्र 86 और दूसरे की 83 साल होने के बावजूद युवाओं के लिए प्रेरणारूप साबित हो रही है. 86 साल की मंदाबेन शाह स्कूटर चलाती है और 83 साल की उषाबेन शाह साइडकार में बैठी हुई अहमदाबाद के सड़कों पर स्कूटर लेकर निकलती है. वैसे तो आम तौर पर लोग इतनी उम्र में स्कूटर नहीं चलाने की सलाह देते है लेकिन मंदाबेन बेफिक्र और निडर होकर सड़कों पर वाहनों की भीड़ के बीच में स्कूटर लेकर अपने काम के लिए निकल पड़ती हैं.
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पिता रहे हैं स्वतंत्र सेनानी!
86 साल की मंदाबेन और 83 साल की उषाबेन की बात करें तो इनके पिता स्वतंत्र सेनानी रहे हैं. परिवार में एक भाई और छह बहने थीं, जिनमें मंदाबेन सबसे बड़ी उसके बाद बहनों में उषाबेन थीं. दोनों का जीवन सम्पूर्णरूप से सामाजिक कार्यों से ही जुड़ा रहा है. दोनों ने शादी नहीं की और अब तक कई प्रकार के सामाजिक कार्यों के साथ जुड़कर लोगों को शिक्षा और रोजगार तक देने का काम करती रही है. दोनों अभी की कई संस्थाओं के साथ जुड़कर सामाजिक कार्य कर भी रही हैं.
मंदाबेन कहती हैं, "परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से टू-व्हीलर चलाना सिखना पड़ा था. पड़ोस में एक भाई जो की अपना फॉर स्ट्रोक स्कूटर बेचना चाहते थे उनसे स्कूटर खरीदा था. पहले तो कुछ समय स्कूटर घर पर पड़ा रहा लेकिन समय और जीवन की जरूरत के साथ 62 साल की उम्र में स्कूटर चलना सीखा था. मंदाबेन कहती है आज भी अपना सब काम ख़ुद से करती हूं और जब सड़क पर निकलती हूं तो लोग मेरी तरफ़ ना सिर्फ़ देखते है लेकिन सेल्फी तक लेते हैं.
कुछ लोग तो सड़क पर मुझे देखकर स्कूटर नहीं चलाने के लिए कहते हैं पर मैं तो जब स्कूटर पर बैठती हूं मुझमें अलग ही जोश आ जाता है. मंदाबेन कहती हैं, स्कूटर मेरी शक्ति है और 100 साल की उम्र हो जाये तो भी स्कूटर चलाना चाहती हूं, मेरा स्कूटर मेरे परिवार के सदस्य जैसा है.
सामाजिक कार्य करती हैं दोनों बहनें
83 साल की उषाबेन शाह, जो की स्कूटर के साइडकार में दिखायी पड़ती हैं. उषाबेन कहती हैं, बचपन से ही जीवन संघर्षमय रहा लेकिन वक्त के साथ आगे बढ़कर स्लम इलाकों में सिलाई का काम सिखाती थी और लोगों को रोजगार दिलाने का काम किया करती थी. इसके अलावा सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर लोगों की सेवा और जागृति से जुड़े काम करती रही हैं. मेरी बड़ी बहन के साथ स्कूटर के साइडकार में बैठकर बहुत काम किया. आज भी दोनों एक साथ मिलकर कहीं भी स्कूटर पर आते जाते हैं और खुदका काम खुद ही करते हैं.
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अहमदाबाद की सड़कों पर स्कूटर लेकर निकलने वाली 86 साल की मंदाबेन की बात करें तो वह एसएससी पास है. पिता सुमतिलाल शाह स्वतंत्र सेनानी थे, मंदाबेन ने साल 1962 के दौरान पहली पंचवर्षीय योजना के तहत घर से बाहर निकलकर काम करना शुरू किया था और बच्चों, महिलाओं के लिए खूब काम किए. 20 साल तक युवाओं को प्रशिक्षित करने का काम भी किया. साल 1985 में एसटी बस से लगी टक्कर की वजह से जिंदगी में परिवर्तन आया और छह महीने बेड पर रहना पड़ा.
अब उम्र के साथ मंदाबेन को गोल ब्लेडर, स्किन डिसीस की समस्या है, जामर की तकलीफ, घुटने के ऑपरेशन करवाए हुए हैं, सांस की भी तकलीफ रहती है लेकिन मंदाबेन का जोश और जीवन के प्रति विश्वास अटूट है जिसकी वजह से 86 साल के बावजूद सड़कों पर वाहनों के ट्रैफ़िक के बीच में अपने कामकाज को लेकर स्कूटर के साथ अपनी बहन उषाबेन को लेकर निकल पड़ती हैं और दोनों से स्वस्थ और निडर होकर अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं.
अतुल तिवारी