केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय के नए कॉम्प्लेक्स का नाम सेवा तीर्थ रखने का फैसला किया है. यह फैसला उस दौर में आया है जब केंद्र सरकार पिछले एक दशक में कई संस्थानों और महत्वपूर्ण स्थानों के नाम बदल चुकी है. सरकार इस बदलाव को शासन की सोच में परिवर्तन के रूप में देखती है. सरकार का कहना है कि यह सिर्फ नाम बदलने का काम नहीं है, बल्कि यह सत्ता से सेवा की ओर जाने वाली मानसिकता का संकेत है.
सरकार के मुताबिक, इन नाम परिवर्तनों का उद्देश्य संस्थाओं को नई पहचान देना है, जो जिम्मेदारी और सेवा की भावना को मजबूत करता है. पहले भी कई महत्वपूर्ण स्थानों और भवनों के नाम बदले गए हैं. राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किया गया था. प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास का नाम 2016 में लोक कल्याण मार्ग रखा गया था. अब पीएमओ कॉम्प्लेक्स को सेवा तीर्थ और केंद्रीय सचिवालय को कर्तव्य भवन कहा जा रहा है.
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इन नए नामों के माध्यम से यह संदेश दिया जा रहा है कि सरकार का काम जनता की सेवा करना है. उनका कहना है कि नाम बदलने से न सिर्फ संस्थाओं का चरित्र बदलता है, बल्कि उन जगहों पर काम करने की मानसिकता भी प्रभावित होती है. सेवा, कर्तव्य और जिम्मेदारी जैसे शब्द शासन को नागरिक केंद्रित बनाने की दिशा में उठाया गया कदम बताए जा रहे हैं.
नए कॉम्प्लेक्स का नाम सेवा तीर्थ रखने का फैसला
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि सेवा तीर्थ नामकरण नए सनातन भारत की पहचान है. उनका कहना है कि पहले की सरकारों ने प्रधानमंत्री के आवास को जैसी जगह बना दिया था, वह जनता के हितों से जुड़ा नहीं था. गिरिराज सिंह के मुताबिक, वर्तमान सरकार शासन को जनसेवा से जोड़ रही है और सरकारी भवनों के नाम भी इसी सोच को दर्शा रहे हैं.
उन्होंने विपक्ष पर भी निशाना साधा और कहा कि संसद में बाधा डालने के बाद अब विपक्ष को समझना चाहिए कि स्वस्थ बहस ही लोकतंत्र का हिस्सा है. उनका कहना है कि सेवा तीर्थ जैसा नाम यह बताता है कि सरकार खुद को जनता का सेवक मानती है.
विपक्ष ने इस फैसले पर उठाए सवाल
वहीं, विपक्ष ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि मोदी सरकार को नाम बदलने के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मिलना चाहिए. उनका कहना है कि सरकार का ध्यान सिर्फ नाम बदलने पर है, काम पर नहीं. उन्होंने कहा कि जनता की समस्याएं जस की तस हैं, लेकिन सरकार नाम बदलकर उन्हें सुधार बताने की कोशिश करती है.
प्रमोद तिवारी ने यह भी कहा कि संसद की कार्यवाही लगातार कम हो रही है. उनके अनुसार, पहले संसद 120 से अधिक दिनों तक चलती थी, लेकिन अब यह घटकर करीब 55 दिन रह गई है. इससे जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कम हो रही है और सरकार जवाबदेही से बच रही है. उन्होंने कहा कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है और सिर्फ नाम बदलने से लोकतंत्र मजबूत नहीं होता, जब तक कि उसमें स्वस्थ बहस और चर्चा न हो.
विपक्ष का कहना है कि जब देश में रोजगार, महंगाई और किसानों के मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है, तब सरकार नाम बदलने में व्यस्त है. उनका कहना है कि नाम बदलने से न तो समस्याएं हल होती हैं और न ही जनता को कोई राहत मिलती है. कांग्रेस के अनुसार, सरकार को प्राथमिकता वास्तविक मुद्दों को देनी चाहिए, न कि नाम परिवर्तन को उपलब्धि बताना चाहिए.
संसद की कार्यवाही घटकर करीब 55 दिन रह गई
सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया जा रहा है कि सेवा तीर्थ और कर्तव्य भवन जैसे नाम सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे व्यापक सोच है. उनका कहना है कि शासन में सेवा और जिम्मेदारी की भावना लाना जरूरी है. हालांकि, विपक्ष इसे राजनीति और प्रचार का हिस्सा मान रहा है.
इस विवाद के बीच जनता यह समझने की कोशिश कर रही है कि नाम बदलने को लेकर चल रही बहस उनके जीवन पर किस तरह का असर डालती है. सरकार जहां इसे मानसिकता बदलने का कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे ध्यान भटकाने का तरीका मान रहा है.
सरकार और विपक्ष आमने-सामने
अंत में यह सवाल भी सामने आ रहा है कि क्या नाम बदलने से शासन की गुणवत्ता में कोई बड़ा बदलाव आएगा या यह सिर्फ राजनीतिक संदेश देने का साधन है. सेवा तीर्थ को लेकर शुरू हुई यह बहस आने वाले समय में और भी चर्चा का विषय बनेगी, क्योंकि यह सिर्फ एक नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि शासन के तरीके पर उठे बड़े सवालों का हिस्सा भी है.
हिमांशु मिश्रा / मौसमी सिंह