दिल्ली में श्मशान घाटों पर दाह संस्कार के लिए लकड़ी की जगह गोबर के उपले इस्तेमाल करने का प्रस्ताव सामने आते ही बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. MCD की जन स्वास्थ्य समिति की बैठक में यह सुझाव इसलिए आया, क्योंकि राजधानी की हवा पहले ही खतरनाक स्तर पर है और निगम मानता है कि लकड़ी जलने से भी प्रदूषण बढ़ता है.
लेकिन वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की राय बिल्कुल उलट है. उनका कहना है कि लकड़ी की तुलना में गोबर के उपलों से PM2.5, PM10, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) और ब्लैक कार्बन ज्यादा निकलते हैं. कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि बायोमास जलने पर प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है. कुछ घरों में तो PM10 का स्तर 200 से 5,000 माइक्रोग्राम/घनमीटर तक पाया गया है.
पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने स्पष्ट चेतावनी दी कि “एक प्रदूषित ईंधन की जगह दूसरा प्रदूषित ईंधन अपनाना समाधान नहीं है.” उनके मुताबिक, अगर प्रदूषण नियंत्रण ही लक्ष्य है, तो इलेक्ट्रिक चिताएं सबसे स्वच्छ विकल्प हैं.
वहीं MCD की स्थायी समिति के अध्यक्ष सत्य शर्मा ने कहा कि दिल्ली के एक क्रिमेशन ग्राउंड में उपलों से दाह संस्कार पहले से हो रहा है. निगम की इच्छा है कि भविष्य में 50 प्रतिशत उपले और 50 प्रतिशत लकड़ी का मॉडल अपनाया जाए, लेकिन अंतिम फैसला विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर ही होगा. निगम का कहना है - अगर उपले ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं, तो उनका उपयोग नहीं बढ़ाया जाएगा.
यह भी पढ़ें: दिल्ली-NCR के पॉल्यूशन का 'कोल्ड काल' क्यों हो सकता है खतरनाक, CSE रिपोर्ट में डराने वाली चेतावनियां
दिल्ली की हवा पहले ही बेहद खराब है, ऐसे में यह निर्णय आने वाले दिनों में शहर की पर्यावरणीय बहस का अहम मुद्दा बन सकता है.
दिल्ली की हवा तो सालभर के ज्यादातर दिनों जहरीली रहती है. लेकिन, ठंड में वायु प्रदूषण का स्तर और खराब हो जाता है. बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार अलग-अलग पाबंदियां तो लागू कर देती हैं. लेकिन, उसका असर उतना प्रभावी रूप से नहीं होता.
सुशांत मेहरा