...तो और जहरीली होगी हवा! दिल्ली के श्मशान घाटों पर उपले जलाने के प्रस्ताव पर विवाद

दिल्ली नगर निगम के श्मशान घाटों पर लकड़ी की जगह गोबर के उपले इस्तेमाल करने का प्रस्ताव इन दिनों बड़ा विवाद बन गया है. जैसे ही यह बात सामने आई, कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि इससे प्रदूषण के स्तर में इजाफा होगा.

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प्रदूषण संकट के बीच श्मशान घाटों पर उपलों का उपयोग बड़े सवालों के घेरे में (Photo: PTI) प्रदूषण संकट के बीच श्मशान घाटों पर उपलों का उपयोग बड़े सवालों के घेरे में (Photo: PTI)

सुशांत मेहरा

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:28 PM IST

दिल्ली में श्मशान घाटों पर दाह संस्कार के लिए लकड़ी की जगह गोबर के उपले इस्तेमाल करने का प्रस्ताव सामने आते ही बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. MCD की जन स्वास्थ्य समिति की बैठक में यह सुझाव इसलिए आया, क्योंकि राजधानी की हवा पहले ही खतरनाक स्तर पर है और निगम मानता है कि लकड़ी जलने से भी प्रदूषण बढ़ता है.

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लेकिन वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की राय बिल्कुल उलट है. उनका कहना है कि लकड़ी की तुलना में गोबर के उपलों से PM2.5, PM10, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (वीओसी) और ब्लैक कार्बन ज्यादा निकलते हैं. कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि बायोमास जलने पर प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है. कुछ घरों में तो PM10 का स्तर 200 से 5,000 माइक्रोग्राम/घनमीटर तक पाया गया है.

पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने स्पष्ट चेतावनी दी कि “एक प्रदूषित ईंधन की जगह दूसरा प्रदूषित ईंधन अपनाना समाधान नहीं है.” उनके मुताबिक, अगर प्रदूषण नियंत्रण ही लक्ष्य है, तो इलेक्ट्रिक चिताएं सबसे स्वच्छ विकल्प हैं.

वहीं MCD की स्थायी समिति के अध्यक्ष सत्य शर्मा ने कहा कि दिल्ली के एक क्रिमेशन ग्राउंड में उपलों से दाह संस्कार पहले से हो रहा है. निगम की इच्छा है कि भविष्य में 50 प्रतिशत उपले और 50 प्रतिशत लकड़ी का मॉडल अपनाया जाए, लेकिन अंतिम फैसला विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर ही होगा. निगम का कहना है - अगर उपले ज्यादा प्रदूषण फैलाते हैं, तो उनका उपयोग नहीं बढ़ाया जाएगा.

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दिल्ली की हवा पहले ही बेहद खराब है, ऐसे में यह निर्णय आने वाले दिनों में शहर की पर्यावरणीय बहस का अहम मुद्दा बन सकता है. 

दिल्ली की हवा तो सालभर के ज्यादातर दिनों जहरीली रहती है. लेकिन, ठंड में वायु प्रदूषण का स्तर और खराब हो जाता है. बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए सरकार अलग-अलग पाबंदियां तो लागू कर देती हैं. लेकिन, उसका असर उतना प्रभावी रूप से नहीं होता. 

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