20 जनवरी 2023. दोपहर के करीब 12 बज रहे थे. अपने एक दोस्त को रिसीव करने मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा. यहां से हम मेट्रो स्टेशन में दाखिल होने ही वाले थे कि अचानक एक शख्स ने हमारा रास्ता रोक लिया. कंधे पर तौलिया (towel) लटकाए उस आदमी की उम्र करीब 38-39 साल के आसपास रही होगी. 'कान साफ करा लीजिए. बहुत मैल होता है इनमें, साफ न कराओ तो इन्फेक्शन भी हो सकता है.' उसके इतना कहने पर हमने उससे सफाई का दाम पूछा. 40 रुपए रेट बताने के बाद वह दोनों के कान 20-20 रुपये में ही साफ करने के लिए तैयार हो गया. सबसे पहले उसने मेरा कान साफ करना शुरू किया. दोस्त उसकी एक्टिविटी बारीकी से देखने लगा.
तीन से चार बार में उसने कान के अंदर से थोड़ा-थोड़ा मैल (Ear Wax) निकाला और बोला, 'लंबे समय से आपने कान साफ नहीं किया. पूरा कान चोक है. मैल की गांठ (खोंट) बन गई है, उसे निकालना पड़ेगा. अगर निकलती है तो हर गांठ के 100 रु. लगेंगे.'कान से पहले ही काफी मैल निकल चुका था. इसलिए हमने गांठ भी निकलवाने का फैसला किया. उसने कान में एक ड्रॉप डाला. पूछने पर बताया कि सरसों का तेल है, ताकि चिकनाहट के साथ मैल की गांठ आसानी से निकल जाए.
दोस्त के लगातार बारीकी से एक्टिविटी देखने के कारण वह थोड़ा असहज हुआ, उसने कुछ इशारा किया और पास ही खड़े दूसरे कान साफ करने वाले ने तुरंत दोस्त का कान देखना शुरू कर दिया. मेरे कान से उसने मटर के दाने के आकार की एक गांठ, जबकि दोस्त का कान साफ करने वाले ने उसके एक ही कान से 3 गांठ निकाल दीं. मैंने उसे 120 और दोस्त ने 320 रुपये दिए. वहां से निकलने के बाद हमने सोचा कि क्या किसी के एक ही कान में मटर के 3 दानों के बराबर मैल होना संभव है?
कान साफ करने वालों के बारे में और जानकारी जुटाने पर पता चला कि दिल्ली में शीशगंज साहिब गुरुद्वारे के सामने, कनॉट प्लेस (CP) और कई मेट्रो स्टेशन के बाहर ये कान साफ करने वाले रोजाना आते हैं. दूसरे दिन 21 जनवरी को करीब 2 बजे अपने दोस्त के साथ मैं शीशगंज साहिब गुरुद्वारे के सामने पहुंचा. सड़क के दूसरी तरफ कंधे पर तौलिया डाले 10 से 12 लोगों का एक ग्रुप नजर आया. सभी लाल रंग की टोपी पहने थे. हम घर से प्लान बनाकर निकले थे कि आज कान साफ करने वाले शख्स का बेहद नजदीक से वीडियो बनाएंगे, लेकिन पहले दिन दूर से वीडियो बनाने में सफल रहे थे.
हम इस ऊहापोह में थे कि प्लान आगे कैसे बढ़ाएंगे. अचानक पीछे से आवाज आई, 'कान साफ करा लीजिए, मैल निकलने पर ही पैसे लिए जाएंगे.' पलटकर मैंने सबसे पहले दाम पूछा. करीब 35 साल के उस युवक ने कहा, 'मैल निकला तो 40 रु. लगेंगे और अगर न निकले तो कोई पैसे मत देना.' मेरे हां कहते ही उसने कान देखना शुरू कर दिया. बातों ही बातों में मैंने उससे कहा कि मेरे बाएं कान में खुजली होती है, इसमें मैल होने की संभावना ज्यादा है. कान साफ करते हुए उसने थोड़ा-थोड़ा मैल निकालना शुरू किया. लगभग 1 मिनट बाद वह बोला, 'इसमें तो गांठ पड़ी हुई है, कब से साफ नहीं कराया आपने, मैल एकदम अंदर तक ठसा हुआ है, इसलिए तो खुजली करता है.'
गांठ निकालने के बदले उसने 160 रु. मांगे. हामी भरते ही उसने अपने बैग से एक ड्रॉप निकालकर दो बूंद मेरे कान में डाल दी. 30 सेकेंड तक कान में औजार चलाकर उसने पूछा, 'कान में किसी तरह का दर्द तो नहीं हो रहा है, गांठ निकालूं.' मेरे सहमति जताते ही उसने अपने औजार को कान से निकालकर मुझे मटर के दाने के आकार की एक गांठ दिखाई. बोला- ये आपके कान से निकली है. सफाई के 40 और गांठ निकालने के 160, मैंने उसे 200 रुपये दिए और वहां से चल पड़ा. मैं आज फिर हैरान था कि कल ही तो इस कान से एक गांठ निकली थी फिर आज दूसरी गांठ कैसे निकल गई, क्या कल सफाई करने वाले ने ये गांठ नहीं निकाली थी या 24 घंटे में फिर से गांठ बन गई. चूकिं वीडियो काफी दूर से रिकॉर्ड किया गया था, इसलिए कोई नजदीकी एक्टिविटी दर्ज होने का सवाल ही नहीं था.
तीसरे दिन 22 जनवरी को दफ्तर से निकलकर मैं फिर अपने दोस्त के साथ शाम करीब 4 बजे शीशगंज गुरुद्वारे के सामने उस जगह पर पहुंचा, जहां मैल निकालने वाले खड़े होते हैं. आमतौर पर यहां 10-12 मैल निकालने वाले खड़े रहते हैं, लेकिन आज 3-4 ही थे. शायद रविवार होने के कारण तादाद कम थी. हमारी हिम्मत बढ़ी और हमने आज बिल्कुल करीब से वीडियो बनाने का प्लान किया. मैल निकालने वाले करीब 45-50 साल के एक शख्स को इशारा करके हमने वहां से कुछ दूर बुला लिया. दाम पूछने पर उसने फिर सेम-टू-सेम वही बात कही, 'मैल निकला तो 40 रु. दे देना नहीं निकला तो पैसे नहीं लगेंगे. इस बार भी मैंने वही बात कही कि मेरे बाएं कान में खुजली होती है, इसमें मैल होने की संभावना ज्यादा है.
उसने बाएं कान से थोड़ा-थोड़ा मैल निकालना शुरू किया. पूछने पर अपना नाम बबलू उर्फ उस्मान बताया. दोस्त लगातार उसका वीडियो बना रहा था. अचानक वह बोला, 'आपके कान मैं तो गांठ पड़ी है जी, चने के आकार की गांठ है, इसको निकलवा लो.' निकाल दो कहने पर वह बोला- ऐसे नहीं निकलेगी, इसके 160 रुपए अलग से लगेंगे. मैंने कहा, 'फिर रहने दीजिए, मुझे नहीं निकलवानी.' वह बार-बार गांठ निकलवा लेने पर जोर देता रहा, लेकिन मैंने मना कर दिया. मुझे अहसास हो चुका था कि उसने मेरे कान में कुछ डाला है, इसलिए उसके कान से औजार निकालते ही मैंने कान साफ करने के लिए अपनी सबसे छोटी उंगली कान के अंदर डाली. मेरी अंगुली में मैल का एक छोटा सा हिस्सा आया. लेकिन अब मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा बाएं तरफ का कान एकदम चोक हो गया है.
मेरे इस कान की तरफ एकदम सन्नाटा छा गया था. मैंने यह बात अपने दोस्त को बताई और कान साफ करने वाले से कहा कि उसने मेरे कान में जो कुछ भी डाला है, उसे तत्काल बाहर निकाले. मेरी बातें सुनकर वह कुछ घबरा गया, लेकिन उसे निकालने के बदले 160 रुपए लेने पर अड़ा रहा. मैंने उससे कहा- दे दूंगा, लेकिन जो भी चीज है, उसे तुरंत बाहर निकाले. उसने ड्रॉप की दो बूंद डाली. औजार डालने पर कान से मैल का कुछ हिस्सा निकला. लेकिन कान अब तक चोक था. यह बात बताने पर वह कुछ घबरा गया. उसने फिर ड्रॉप निकाला और दो बूंद कान में डालीं.
लगातार तीसरे दिन मेरे बाएं कान से उसने फिर मटर के दाने के आकार की गांठ बाहर निकालकर दिखाई. अब मुझे भी बाएं कान में खुला-खुला महसूस हो रहा था. उसे 200 रुपए देकर हम वहां से कुछ दूर पहुंचे और वीडियो ध्यान से देखना शुरू किया. कई बार वीडियो देखने पर भी यह कहीं नहीं दिखा कि उसने कान में बाहर से कुछ डाला. लेकिन मैं फिर भी हैरान था कि लगातार तीसरे दिन मेरे कान से बाएं कान से मैल की गांठ कैसे निकल सकती है?
चौथे दिन यानी 23 जनवरी को एक बार फिर हम कान साफ कराने निकले. इस बार नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन के सामने पहुंचे. पास ही एक ऑटो खड़ा था, जिसके आसपास 3 शख्स कंधे पर तौलिया डाले खड़े थे. हमें देखते ही उनमें से एक ने पूछा, 'कान की सफाई कराएंगे.' मैंने हां में सिर हिलाया. उसने मुझे ऑटो की अगली सीट पर बैठने के लिए कहा. मेरे बैठते ही वह कान साफ करने लगा. इस व्यक्ति के सामने भी मैंने वही सेंटेंस दोहराया, 'मेरे बाएं कान में खुजली जैसा कुछ होता है, इसमें ही मैल होने की संभावना ज्यादा है.'
10-20 सेकेंड तक कान में तांकझांक करने के बाद वह बोला इसमें गांठ पड़ गई है. निकलवाना चाहेंगे? मैंने पैसे पूछे तो उसने वही रटा-रटाया जवाब दिया कि अगर गांठ निकली तो 160 रुपये देने पड़ेंगे. मैंने कहा- निकालो. अपना औजार लेकर वह मेरे कान से कथित गांठ निकालने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक उसकी नजर मेरे दोस्त पर पड़ी जो अपने मोबाइल से उसे रिकॉर्ड कर रहा था. हल्की सी मुस्कान के साथ उसने कहा- कर लो, करलो, अच्छे से रिकॉर्ड कर लो. हालांकि, रिकॉर्डिंग होते देख कर वह कुछ घबरा गया. थोड़ी देर पहले तक जो शख्स मेरे बाएं कान में गांठ होने का दावा कर रहा था, उसके सुर अचानक बदल गए. वह कहने लगा- आपके कान में गांठ नहीं है. पूरा कान एकदम साफ है.
हमने उससे कहा कि थोड़ी देर पहले तो उसने कान में गांठ होने की बात कही थी. इसके जवाब में उसने कहा कोई गांठ नहीं है. हमने पूछा कि मैल तो निकला नहीं पैसे देने हैं क्या? जवाब में उसने कहा- जो इच्छा हो दे दीजिए. हमने उसे 20 रुपए दिए और वहां से लौटने लगे. आते समय उसने हमसे पूछा- वीडियो का क्या करेंगे बाबूजी? हमने कहा- कुछ नहीं पहली बार दिल्ली घूमने आए हैं, इसलिए यादगार के तौर पर सब रिकॉर्ड कर रहे हैं.
इतना सब घटने के बाद मन में कई सवाल एक साथ उठ खड़े हुए. जैसे... क्या किसी व्यक्ति के एक ही कान में इतना मैल हो सकता है कि लगातार तीन दिनों तक मटर के दाने के आकार की एक गांठ निकाली जा सके, क्या किसी के एक ही कान में मटर के दाने के आकार की 3 गांठें जितना मैल एक साथ हो सकता है और क्या इस तरह सड़क पर खड़े किसी व्यक्ति से कान साफ कराना सुरक्षित है?
इन सवालों के जवाब जानने के लिए हम इस विषय के एक्सपर्ट डॉ. रवि मेहर के पास पहुंचे, जो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के ENT & हेड-नेक सर्जरी विभाग के डायरेक्टर (प्रोफेसर) हैं. वह लोकनायक जय प्रकाश (LNJP) अस्पताल के साथ भी एसोसिएटेड हैं. सबसे पहले हमने उनसे अपने उस कान की जांच कराई, जिससे पिछले चार दिनों से मैल निकलने का क्रम जारी था. हमने उनसे पूछा कि इस कान में कितना मैल है और क्या इसकी सफाई की जरूरत है? अपने हाई-टेक इक्विपमेंट के जरिए जांच करने के बाद उन्होंने बताया कि हमारे दोनों कान में मैल बिल्कुल न के बराबर यानी उतना ही है, जितना कान के कैनाल को प्रोटेक्ट करने के लिए बेहद जरूरी है.
डॉ. रवि मेहर ने बताया कि किसी स्वस्थ व्यक्ति के कान में मटर के 3 दाने जितना मैल होना काफी मुश्किल है. इसका कारण यह है कि कान के कैनाल की कुल लंब 24 एमएम या फिर ढाई सेंटीमीटर होती है. इसलिए सामान्य तौर पर इतना ज्यादा मैल किसी के भी कान में होना मुश्किल है. अगर किसी कारण से इतना मैल हो भी जाता है तो वह कान के ऊपर तक नजर आएगा.
उन्होंने आगे यह भी बताया कि एक बार कान की सफाई हो जाने पर कान में नया मेल तैयार होने में कम से कम 6 महीने से लेकर 3 साल तक का समय लग सकता है. मैल का वैक्स एक प्रोटेक्टिव फिनोमिना है, जो हमारे कान में धूल-मिट्टी के कणों को जाने से रोकता है. जब हम किसी चीज को चबाते हैं तो यह स्वयं ही कान से बाहर की तरफ खिसकता रहता है. इसलिए हम आपसे अपील करते हैं कि अगर आपको लगता है कि आपके कान में मैल जैसा कुछ है तो किसी कान साफ करने वाले के चक्कर में पड़े बिना ENT विशेषज्ञ के पास जाकर जांच कराएं.
डॉक्टर रवि ने हमें यह भी बताया...
> किसी अनजान शख्स से कान का मैल साफ कराना बेहद खतरनाक हो सकता है. उसके पास न अनुभव है और न ही कोई हाई-टेक इक्विपमेंट. कान साफ कराने के चक्कर में आपके परदे में छेद या ट्रॉमा हो सकता है.
> अगर आपके कान में मैल बनता है तो सीधे किसी ENT सर्जन के पास जाएं. हर सरकारी अस्पताल में ENT स्पेशलिस्ट मौजूद हैं. वहां न के बराबर फीस चुकाकर आप उचित इलाज करा सकते हैं.
> अक्सर लोग ईयर बड्स से कान साफ करने की कोशिश करते हैं. लेकिन उससे मैल बाहर नहीं निकलता, बल्कि और अंदर चला जाता है. इसके इस्तेमाल से कान के कैनाल को भी नुकसान पहुंच सकता है.
कहां से आते हैं 'कनमैलिए', कैसे चलता है धंधा
रिपोर्ट खत्म करने से पहले हमने कान साफ करने वालों का पक्ष और उनसे जुड़ी कुछ और जानकारी हासिल करने की कोशिश की. हम दोबारा चांदनी चौक में शीशगंज साहिब गुरुद्वारे के सामने सड़क के दूसरी तरफ पहुंचे. हमने उन्हें बताया कि हम मीडिया से हैं और उनके इस आर्ट के बारे में जानना चाहते हैं कि कैसे वे अपनी इस कला से पैसे कमाकर अपना जीवन चला रहे हैं, लेकिन मीडिया का नाम सुनते ही वहां मौजूद सभी कान साफ करने वाले भड़क गए. हालात तनावपूर्ण हो गए. उन्होंने हमें वहां से चुपचाप चले जाने की सलाह दी. हम वहां से लाल किले की तरफ बढ़ने लगे. 200 मीटर आगे बढ़ने के बाद हमें करीब 20 साल का एक लड़का नजर आया. उसने भी सिर पर लाल रंग की एक टोपी पहन रखी थी, कंधे पर तौलिया लटका रखा था और उसके पास कान साफ करने का औजार भी था.
हमने उसे रोका. पूछने पर उसने अपना नाम अमान बताया. हमने उससे सवाल किया कि यहां खड़े होने वाले लोग आखिर कौन हैं, कहां रहते हैं और क्या वे सभी किसी खास इलाके से पलायन कर आए हैं? काफी न-नुकुर करने और हमारा कैमरा बंद कराने के बाद उसने बताया कि यहां कान साफ करने वाले ज्यादातर लोग दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के रहने वाले हैं और एक ही बिरादरी से वास्ता रखते हैं. यह आर्ट कहां से सीखा? इस सवाल पर उसने कहा कि उसे ठीक से याद नहीं, लेकिन यह उसका पुश्तैनी काम है. उसके दादा-परदादा भी यही करते थे. बचपन से उन सभी को देखकर उसने भी यह सीख लिया और कान साफ करने लगा. उसने बताया कि चांदनी चौक के आस पास की बस्तियों में सभी किराए से रहते हैं. इसके आगे हमने सवाल किया कि क्या वाकई कान से मैल ही निकलता है या यह कोई आर्ट है? इस पर चिढ़ते हुए उसने कहा कि हम धंधे के समय पर उसका टाइम बर्बाद न करें और तेज कदम बढ़ाते हुए वहां से चला गया.
अक्षय श्रीवास्तव