दिवाली के बाद घुटने लगती है 'दिल्ली', क्यों बेअसर होता है ग्रीन पटाखों पर SC का आदेश?

हर साल दीवाली पर रोशनी के साथ दिल्ली पर चढ़ता है धुएं का साया. रात भर चमकते पटाखे अगले कई दिनों तक शहर की सांसें रोक देते हैं. सुप्रीम कोर्ट के ग्रीन पटाखों वाले आदेश के बावजूद हालात नहीं बदले क्योंकि दिल्ली की हवा सिर्फ पटाखों से नहीं, खेतों की आग और ठंडी हवाओं के जाल में फंसकर और ज़्यादा जहरीली हो जाती है.

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क्यों हर साल दीवाली बनती है दिल्ली की सांसों का दुश्मन? क्यों हर साल दीवाली बनती है दिल्ली की सांसों का दुश्मन?

पियूष अग्रवाल

  • नई द‍िल्ली ,
  • 15 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 10:12 PM IST

हर साल दीवाली पर दिल्ली सिर्फ रोशनी और पटाखों के लिए नहीं, बल्कि उसके बाद आने वाले धुंध और दमघोंटू स्मॉग के लिए भी तैयार रहती है. सुप्रीम कोर्ट ने 15 अक्टूबर को अपने पुराने आदेश में थोड़ी ढील दी और नेशनल कैपिटल रीजन (NCR) में ग्रीन पटाखे बेचने और चलाने की अनुमति दे दी है. हालांकि, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए पटाखों की बिक्री पर अब भी रोक है. फिर भी सच्चाई ये है कि ये पाबंदियां भी पटाखों को नहीं रोक पाईं  और नतीजा वही होता है, हर साल द‍िवाली बाद दिल्ली का दम घुटता है.

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जरूरत से ज्यादा बढ़ता है हवा में जहर 

2021 में दिल्ली ने अपनी सबसे खराब दीवाली देखी थी. उस रात हवा में PM2.5 (सूक्ष्म कण) की मात्रा 744 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (µg/m3) तक पहुंच गई जो भारत की सुरक्षित सीमा से करीब 12 गुना ज़्यादा थी. ये बेहद बारीक कण हैं जो सांस के ज़रिए सीधे फेफड़ों और ब्लडस्ट्रीम में चले जाते हैं.

2024 में जब हवा की रफ्तार थोड़ी बेहतर थी और सर्दी हल्की, तब भी दीवाली की रात ये स्तर 600 µg/m3 से ऊपर रहा. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के लगातार मॉनिटरिंग सिस्टम के मुताबिक रात 10 बजे से 2 बजे के बीच प्रदूषण सबसे ज्यादा बढ़ता है, जब पटाखों की आवाज़ और धुआं दोनों अपने चरम पर होते हैं.

रात के बाद ये  स्तर थोड़ा घटता है, लेकिन बहुत धीरे. दिल्ली की भौगोलिक स्थिति और मौसम प्रदूषित हवा को जमीन के पास फंसा देता है. नतीजा, दीवाली के बाद का पूरा हफ्ता, पहले हफ्ते से कहीं ज्यादा खराब हवा झेलता है.

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खेतों में आग भी वजह

स्थानीय प्रदूषण के साथ-साथ उत्तर भारत के खेतों में पराली जलाने की समस्या भी हर साल अक्टूबर में चरम पर पहुंचती है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की ताजा रिपोर्ट (14 अक्टूबर 2025) के मुताबिक पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पिछले एक हफ्ते में पराली जलाने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं.

फिर भी, एक पॉजिटिव सिग्नल भी है, वो ये कि इस बार छह राज्यों में पिछले 30 दिनों में सिर्फ 552 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुई हैं, जो 2020 के बाद से सबसे कम हैं.

पंजाब और उत्तर प्रदेश का हिस्सा इसमें 70 फीसदी से ज्यादा है. बुलेटिन में चेतावनी दी गई है कि उत्तर-पश्चिमी हवाएं अगर चलती रहीं तो ये  धुआं दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच सकता है और हवा को और जहरीला बना देगा.

दीवाली के बाद और खराब होती हवा

2019 में दीवाली के हफ्ते में दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 343 था जो 'बहुत खराब' कैटेगरी में आता है. साल 2020 में इसमें थोड़ा सुधार हुआ, फिर 2022 में थोड़ी गिरावट आई और 2023-24 में ये फिर बढ़ गया. हर साल ये ट्रेंड दिखता है जब दीवाली के बाद का हफ्ता, दीवाली से पहले के हफ्ते से ज्यादा प्रदूषित रहता है.

दिल्ली इस कहानी से अंजान नहीं है. पटाखे, पराली, ट्रैफिक और ठंड का मिला-जुला असर हर सर्दी में राजधानी को 'गैस चेंबर' में बदल देता है. सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताब‍िक दीवाली से कुछ दिन पहले ही 14 अक्टूबर को दिल्ली का AQI 211 पहुंच गया था जो कि 'खराब' कैटेगरी में है. अगले कुछ दिन तक हवा में सुधार की उम्मीद कम ही है. पटाखे भले कुछ घंटे जलें, लेकिन उनका असर कई दिन, कई हफ्ते तक बना रहता है.
 

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(Input: गौरव चौधरी)

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