जेल से आते ही केंद्र पर हमलावर सीएम केजरीवाल, 177 दिन में 100 गुना ताकत बढ़ने वाली बात के पीछे क्या हैं सियासी संकेत

केजरीवाल भारत के पहले ऐसे नेता हैं, जो मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए जेल गए थे और मुख्यमंत्री के पद रहते हुए ही जमानत पर जेल से बाहर भी आए हैं. केजरीवाल पहले कहते थे कि उनके खून का एक-एक कतरा दिल्ली के लोगों के लिए है, लेकिन शुक्रवार को उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद ये कहा कि उनके खून का एक-एक कतरा भारत के लोगों के लिए है.

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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल 177 दिन बाद जेल से बाहर आए हैं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल 177 दिन बाद जेल से बाहर आए हैं

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 13 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:44 AM IST

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शराब नीति घोटाला मामले में शुक्रवार को जमानत पर जेल से बाहर आ गए. सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी के लगभग 6 महीने बाद CBI के मामले में भी जमानत दे दी. केजरीवाल भारत के पहले ऐसे नेता हैं, जो मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए जेल गए थे और मुख्यमंत्री के पद रहते हुए ही जमानत पर जेल से बाहर भी आए हैं. केजरीवाल पहले कहते थे कि उनके खून का एक-एक कतरा दिल्ली के लोगों के लिए है, लेकिन शुक्रवार को उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद ये कहा कि उनके खून का एक-एक कतरा भारत के लोगों के लिए है. केजरीवाल जेल से बाहर आते ही केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमलावर नजर आए.

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केजरीवाल जिस तरह से बाहर आए, ऐसा लगता है कि वो जेल से एक राष्ट्रीय नेता बनकर बाहर आए हैं और उन्होंने ये भी कहा है कि मैं सच्चा था, मैं सही था इसलिए भगवान ने मेरा साथ दिया. और जेल से बाहर आने के बाद उनकी ताकत अब 100 गुना बढ़ गई है. यानी उनका कहना है कि 177 दिन जेल में रहकर उनकी ताकत 100 गुना बढ़ गई. केजरीवाल जब अपने घर पहुंचे तो उनकी 80 वर्षीय मां ने उन्हें तिलक लगाकर स्वागत किया. अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने भी पार्टी नेताओं को लड्डू खिलाकर केजरीवाल के बाहर आने का जश्न मनाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के प्लान को फेल कर दिया है. 

अब सवाल है कि आगे क्या होगा? आगे हरियाणा चुनाव है. हरियाणा, जहां केजरीवाल और कांग्रेस में समझौता सीटों पर हो नहीं पाया है. तब वहां प्रचार करने केजरीवाल जाएंगे तो क्या कांग्रेस के लिए नुकसान और बीजेपी के लिए फायदा हो सकता है? दिल्ली और पंजाब तक कांग्रेस को ही पीछे करके सत्ता तक केजरीवाल अपनी पार्टी को ला चुके हैं. तब इन दोनों राज्यों के बीच हरियाणा है. हरियाणा में मतदान में अभी 22 दिन बाकी हैं और शराब घोटाले से जुड़े आरोपी सभी नेता जेल से जमानत पर बाहर आ चुके हैं. 

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हरियाणा चुनाव में AAP की बढ़ी ताकत?

अरविंद केजरीवाल, संजय सिंह, मनीष सिसोदिया. पार्टी के तीनों सबसे बड़े नेता अभी बेल पर बाहर हैं. तब क्या हरियाणा में आम आदमी पार्टी कोई सफलता हासिल कर सकती है? दरअसल, 2014 से 2024 तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों में हरियाणा के भीतर आम आदमी पार्टी का वोट गणित देखें तो ना तो सांसदी में जीत मिली, ना विधायकी में. वोट शेयर साढ़े चार फीसदी तक नहीं पहुंच पाया. पिछली बार विधानसभा चुनाव में तो पार्टी के सारे उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हुई है. अब की बार केलोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ उतरने पर भी जीत केजरीवाल के कैंडिडेट की हरियाणा में नहीं हो पाई है. 

अरविंद केजरीवाल जांच एजेंसियों के दुरुपयोग, जाति धर्म के नाम पर बंटवारे का मुद्दा उठा रहे हैं. निशाने पर सीधे बीजेपी है. अब बीजेपी पर निशााना साधकर केजरीवाल अगर वोट पार्टी के लिए बंटोरते हैं तो निश्चित है कि बीजेपी विरोधी वोट बंटेगा. ऐसे में हो सकता है कि बीजेपी को ही इससे फायदा हो. 

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इन शर्तों पर मिली केजरीवाल को जमानत

अदालत ने अरविंद केजरीवाल को कुछ शर्तों के साथ ज़मानत दी है. जैसे, अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री होते हुए भी मुख्यमंत्री के दफ्तर नहीं जा सकते, किसी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते, इस मामले में जांच को लेकर कोई बयान नहीं दे सकते और जांच में रुकावट डालने और गवाहों को प्रभावित करने की भी कोशिश नहीं कर सकते. ये वो शर्तें हैं, जिनके आधार पर अरविंद केजरीवाल को इस मामले में रेगुलर बेल मिली है. 

इसके अलावा लोकसभा चुनावों से पहले जितने भी बड़े विपक्षी नेताओं को ED और CBI ने गिरफ्तार किया था, उन तमाम नेताओं को भी अब जमानत मिल चुकी है. इनमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उद्धव ठाकरे की पार्टी के नेता संजय राउत, शरद पवार की पार्टी के नेता अनिल देशमुख और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता का नाम शामिल है.

विपक्षी पार्टी के अन्य नेता भी जेल से बाहर आए

दिलचस्प बात ये है कि ED और CBI ने जिन विपक्षी नेताओं को लोकसभा चुनावों से पहले गिरफ्तार किया, उनकी पार्टियों ने तो लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया लेकिन जो विपक्षी नेता अलग-अलग मामलों में ED और CBI की जांच का सामना करते हुए बीजेपी में शामिल हुए, उन नेताओं ने चुनावों में काफी खराब प्रदर्शन किया. उदाहरण के लिए, शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी के तीन बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद दिल्ली और पंजाब में उसे पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोट मिले. पंजाब में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर पिछली बार के मुकाबले 18.52 प्रतिशत ज्यादा रहा जबकि दिल्ली में जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा, वहां उसे पिछली बार से लगभग 6 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले.

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इसी तरह झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बावजूद उनकी पार्टी को इस बार के लोकसभा चुनावों में पिछली बार से लगभग 3 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पांच में से तीन सीटों पर चुनाव जीता जबकि पिछली बार उसने सिर्फ एक सीट पर चुनाव जीता था. संजय राउत और अनिल देशमुख की गिरफ्तारी के बावजूद उनकी पार्टियों ने लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया. और उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने अपनी असली पार्टी को खोने के बाद भी महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से ज्यादा सीटें जीती. यानी आंकड़े बताते हैं कि जो विपक्षी नेता जेल गए, उन्होंने लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया. 

बीजेपी में शामिल हुए विपक्षी नेताओं को मिली हार

वहीं विपक्षी नेता जो बीजेपी में गए, उन्होंने खराब प्रदर्शन किया. जैसे, अजीत पवार की NCP ने चार में से सिर्फ एक लोकसभा सीट पर चुनाव जीता और वो अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को भी चुनावों में जिता नहीं पाए. अजीत पवार के साथ छगन भुजबल और प्रफुल्ल पटेल जैसे नेता भी बीजेपी के साथ आए लेकिन NDA को चुनावों में इसका कोई लाभ नहीं हुआ. कांग्रेस पार्टी की पूर्व नेता ज्योति मिर्धा, कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणेन्द्र सिंह और हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन भी चुनावों से पहले बीजेपी में आए, लेकिन जनता ने इन नेताओं को भी चुनावों में हरा दिया. और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भी चुनावों से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और बीजेपी ने उन्हें ये सोचकर राज्यसभा का सांसद बनाया था कि वो महाराष्ट्र के नांदेड़ क्षेत्र में उसे लोकसभा का चुनाव जीतने में मदद करेंगे लेकिन यहां भी बीजेपी चुनावों में हार गई थी. 

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