छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में घटित एक ऐसी घटना ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया, जिसने न केवल मिड-डे मील योजना की निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े किए बल्कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर सरकारी इंतज़ामों की पोल भी खोल दी. लच्छनपुर सरकारी मिडिल स्कूल में दर्जनों मासूम बच्चों को वह भोजन परोसा गया, जिसे आवारा कुत्ते पहले से ही खा चुके थे. यह मामला सामने आते ही अभिभावकों में आक्रोश फैल गया और मामला अदालत तक पहुंचा. अब छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे बेहद गंभीर मामला मानते हुए कड़ा आदेश दिया है.
अदालत की सख्ती
मंगलवार को सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने कहा कि इस घटना ने बच्चों के स्वास्थ्य और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है. कोर्ट ने साफ कहा कि 84 में से किसी भी बच्चे को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता. इसलिए प्रत्येक बच्चे को एक महीने के भीतर 25-25 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाए. इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि सभी बच्चों को एंटी-रेबीज वैक्सीन पूरी तरह दी जाए. अदालत ने यह टिप्पणी भी की कि इस तरह की लापरवाही को अनदेखी या मानवीय भूल कहकर नहीं टाला जा सकता. यह सीधा-सीधा बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है.
28 जुलाई का है मामला
यह पूरा मामला 28 जुलाई 2025 का है. पलारी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले लच्छनपुर मिडिल स्कूल में मिड-डे मील तैयार किया गया था. लेकिन आरोप है कि खाने को रखने के दौरान व्यवस्था की कमी रही और स्कूल परिसर में घूम रहे आवारा कुत्ते वहां पहुंचे. बच्चों को दिया जाने वाला भोजन उन्हीं कुत्तों ने पहले खा लिया और फिर वही खाना छात्रों की थालियों में परोसा गया. शुरुआत में बच्चों ने डर के चलते चुप्पी साधी, लेकिन कुछ छात्रों ने घर जाकर यह बात अपने अभिभावकों को बताई. मामला जब गांव में फैला तो स्कूल समिति की बैठक बुलाई गई. बढ़ते दबाव के बीच छात्रों को एंटी-रेबीज वैक्सीन दी गई ताकि संक्रमण का खतरा टाला जा सके.
मीडिया की सुर्खियों से खुली पोल
3 अगस्त को जब यह मामला मीडिया की सुर्खियों में आया, तो स्थिति और गंभीर हो गई. विभिन्न रिपोर्टों में वैक्सीनेशन को लेकर अलग-अलग दावे सामने आए. कहीं कहा गया कि 78 बच्चों को वैक्सीन दी गई, तो कहीं 83 का आंकड़ा बताया गया. अदालत ने इस पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि आखिर इतनी महत्वपूर्ण जानकारी में इतनी भ्रम की स्थिति क्यों है. मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट निर्देश दिए कि आंकड़ों की यह उलझन तुरंत खत्म होनी चाहिए और सुनिश्चित किया जाए कि सभी 84 बच्चों को न केवल वैक्सीन दी गई हो, बल्कि उचित चिकित्सकीय देखभाल भी जारी रहे.
शिक्षा सचिव से भी जवाब-तलब
पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव को व्यक्तिगत हलफनामे के साथ जवाब देने के लिए कहा था. सचिव द्वारा प्रस्तुत एफिडेविट का अध्ययन करने के बाद अदालत ने दो टूक कहा कि ऐसी लापरवाही किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है. अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े मामलों में किसी भी स्तर पर ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए.
न्यायालय ने दी नसीहत
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि यह केवल मुआवजे का मामला नहीं है, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. अदालत ने चेतावनी दी कि यदि आगे इस तरह की घटना दोबारा सामने आई तो संबंधित अधिकारियों पर व्यक्तिगत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. इसके साथ ही यह भी कहा गया कि राज्य सरकार को मिड-डे मील की निगरानी के लिए स्वतंत्र तंत्र बनाना चाहिए. यह केवल खाना खिलाने की योजना नहीं है, बल्कि करोड़ों बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य से जुड़ा कार्यक्रम है.
बच्चों की सेहत पर मंडराया खतरा
विशेषज्ञों का कहना है कि कुत्तों के जूठे खाने से रेबीज और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. यही वजह है कि छात्रों को तुरंत एंटी-रेबीज वैक्सीन लगाई गई. लेकिन सवाल यह है कि अगर मीडिया में यह मामला सामने नहीं आता, तो क्या बच्चों को सिर्फ चुप कराकर मामला दबा दिया जाता
अभिभावकों की चिंता
पीड़ित बच्चों के माता-पिता का कहना है कि वे सरकारी स्कूलों पर भरोसा कर अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं. लेकिन इस घटना के बाद उनका विश्वास गहरा आहत हुआ है. एक अभिभावक ने कहा,हम बच्चों को पढ़ाई और अच्छे भविष्य की उम्मीद में स्कूल भेजते हैं, वहां अगर कुत्तों का बचा हुआ खाना मिलेगा तो हम अपने बच्चों की जान कैसे सुरक्षित मानें?
अदालत का अंतिम आदेश
अंततः हाईकोर्ट ने न केवल मुआवजे का आदेश दिया, बल्कि पूरे मामले को उदाहरण के रूप में लेते हुए सरकार को सुधारात्मक कदम उठाने की चेतावनी दी. अदालत ने कहा कि बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता.
मनीष शरण