ग्राउंड रिपोर्ट: जातीय संघर्ष नहीं, वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा है मधुबनी हत्याकांड!

क्या मधुबनी हत्याकांड जातीय संघर्ष है या वर्चस्व की लड़ाई? दरअसल एक ही गांव के 5 लोगों की हत्या का ये मामला तूल पकड़ चुका है. कुछ लोग इसे जातीय संघर्ष बता रहे तो कुछ का कहना है कि ये इलाके में दबदबे की लड़ाई की वजह से हुआ.

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मधुबनी में पीड़ित परिवार के बीच तेजस्वी यादव मधुबनी में पीड़ित परिवार के बीच तेजस्वी यादव

उत्कर्ष कुमार सिंह

  • मधुबनी,
  • 07 अप्रैल 2021,
  • अपडेटेड 2:05 PM IST
  • होली के दिन पांच लोगों की हुई थी हत्या
  • इस हत्याकांड पर सियासी पारा गर्म

मधुबनी के बेनीपट्टी में पड़ने वाले महमदपुर गांव में नेताओं के आने का तांता लगा हुआ है. सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता अपने काफिले के साथ पहुंच रहे हैं और अपने समर्थकों के साथ आस पास के उदास पड़े तीन घरों में जाकर सांत्वना दे रहे हैं.

सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं बल्कि इस गांव में जातीय संगठनों के लोगों का भी जमावड़ा लगा हुआ है. हर कोई अपने हिसाब से जाति और एकजुटता की बात कर रहा है. लेकिन इन सबके बीच एक अनसुलझा सवाल अब तक बरकरार है कि क्या मधुबनी हत्याकांड जातीय संघर्ष है या वर्चस्व की लड़ाई?

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दरअसल एक ही गांव के 5 लोगों की हत्या का ये मामला तूल पकड़ चुका है. कुछ लोग इसे जातीय संघर्ष बता रहे तो कुछ का कहना है कि ये इलाके में दबदबे की लड़ाई की वजह से हुआ. घटना की पड़ताल करने महमदपुर गांव पहुंचे आज तक की टीम ने सभी पक्षों से बात की और समझने की कोशिश कि आखिर घटना के पीछे की बड़ी वजहें क्या हैं?

आज तक की पड़ताल में ये बात सामने आई कि इस गांव में साल 1993 में भी ऐसी ही एक घटना हुई थी. तब अभी के हत्याकांड में जान गंवाने वाले महंत रूद्र नारायण दास के पिता की हत्या हुई थी. दावा है कि इसके बदले में अभी के हत्याकांड में अपने तीन बेटों को खोने वाले BSF में रहे सुरेंद्र सिंह ने गांव के 3 लोगों की हत्या कर दी थी, जो मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है.

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हालांकि सुरेंद्र सिंह ने किसी भी पुरानी रंजिश से इंकार किया और दावा किया कि 28 साल पहले हुए हत्याकांड का अभी हुए हत्याकांड से कोई कनेक्शन नहीं है. सुरेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस और राजनेताओं की मिलीभगत से ये घटना हुई है.

उन्होंने बताया कि छठ के समय आरोपी उनके पोखरे से मछलियां चोरी कर रहे थे, जब उनके बेटे (संजय सिंह) ने रोका तो उसकी टांग काट दी गई. FIR हुई थी लेकिन दरोगा और DSP ने मिलकर सफाया कर दिया और उनके बेटे को SC/ST एक्ट में जेल भेज दिया.

सुरेंद्र सिंह ने दावा किया कि उसके बाद आरोपियों ने प्लान बनाया कि उनके परिवार में एक भी आदमी न बचे, और आज उनका कोई भी बच्चा नहीं बचा. उनके सभी बेटे हट्टे कट्टे थे, वो किसी से पैरवी नहीं करते थे. उनके परिवार को गांव में हेय दृष्टि से देखा जाता है. उनके बेटों की उन्नति देखकर पूरे इलाके के लोगों ने मिलकर इस घटना को अंजाम दिया. उनकी मांग है कि आरोपियों का एनकाउंटर हो, DSP और दरोगा को सस्पेंड किया जाए और उनपर 302 का मुकदमा चले.

इसके बाद हम महंत रूद्र नारायण दास के घर पहुंचे, जिन्होंने इस हत्याकांड में अपनी जान गंवाई है, 28 साल पहले इनके पिता की भी हत्या कर दी गई थी. रूद्र नारायण दास के भाई सूर्य नारायण दास ने बताया कि होली के दिन पूरी घटना उनके सामने हुई थी.

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उन्होंने बताया कि महंत रूद्र नारायण बगल में ही एक छोटी सी दुकान चलाते थे. घटना के दिन आरोपी वहां पहुंचे और खाने पीने के बाद पैसा देने में आनाकानी करने लगे. इसके बाद वहां बहसबाजी हुई और फिर पुलिस को फोन किया गया.

सूर्य नारायण ने बताया कि फोन करने के करीब 40 मिनट बाद तक पुलिस नहीं आई लेकिन उससे पहले आरोपी करीब 40 की संख्या में हथियार के साथ वहां पहुंच गए. उन्होंने महंत को गोली मारी जिसके बाद बाकी लोग वहां पहुंचे और फिर बाकी सब पर भी जानलेवा हमला किया, रॉड से मारा और गोली चलाई.

हालांकि जब हमने सूर्य नारायण से 28 साल पहले हुए उनके पिता की हत्या और अभी हुए हत्याकांड के बीच कनेक्शन को लेकर सवाल किया तो उन्होंने कुछ साफ साफ नहीं बताया. सिर्फ इतना कहा कि छठ के मौके पर तालाब से मछली मारने को लेकर विवाद हुआ था.

हमने मृतक रूद्र नारायण की मां से भी पिछले हत्याकांड से जुड़ा सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि सब गांव के ही लोग थे, अब उन्हें कुछ याद नहीं. लेकिन अभी वो बोल ही रही थीं कि कुछ स्थानीय लोगों ने आकर हमें रोक दिया और 28 साल पहले की घटना से जुड़े सवाल न पूछने का दबाव बनाया. वहां मौजूद लोग उस पुरानी घटना के जिक्र पर गुस्से में नजर आए और दावा करते रहे कि दोनों घटनाओं का कोई रिश्ता नहीं है. महंत की पत्नी ने बताया कि उनको झगड़े के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

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इस हत्याकांड में एक BSF के जवान राणा प्रताप सिंह की भी मौत हुई है, उनकी बेटियों ने भी बताया कि घटना के दिन उनके पिता घर पर ही मौजूद थे तभी झगड़े की आवाज आई. आवाज सुनकर वो झगड़ा सुलझाने गए कि 5 मिनट में ही गोलियों की आवाज आई. जब वो घटनास्थल पर पहुंचे तो देखा कि सभी लोगों को गोलियां लगी हुई हैं, उनके शरीर पर कई जगहों पर कट के निशान हैं. लेकिन घटनास्थल पर कोई लाश भी उठाने वाला नहीं था, पुलिस भी 4 घंटे बाद पहुंची जबकि पुलिस को पहले ही कॉल कर दिया गया था.

राणा प्रताप की बेटियों ने किसी भी तरह की पुरानी लड़ाई से इंकार किया. उनकी मांग है कि दोषियों को फांसी की सजा मिले. साथ ही सरकार उनकी पढ़ाई और नौकरी का इंतजाम करे. पीड़ित परिजनों की शिकायत है कि घटना से काफी पहले ही पुलिस को जानकारी दे दी गई थी लेकिन पुलिस हत्याकांड के कई घंटे बाद मौके पर पहुंची.

हालांकि दूसरी तरफ घटना के कुछ आरोपियों के गिरफ्तारी हो गई है जबकि मुख्य आरोपियों में शामिल प्रवीण झा और नवीन झा अभी भी फरार चल रहे हैं. पुलिस ने उनके घर कुर्की जब्ती की है. उनके चचेरे दादा और दादी ने बताया कि उन्हें दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. न ही ये पता है कि उन्होंने इस हत्याकांड को अंजाम दिया है या नहीं. हालंकि उन्हें तालाब से मछली मारने को लेकर हुए विवाद के बारे में पता है.

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दोनों फरार आरोपियों के चाचा चंद्रप्रकाश झा दिल्ली से मधुबनी अपने भतीजों के सरेंडर के पेपर बनवाने आए हैं. आज तक से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि उनके भतीजों ने हत्या नहीं की बल्कि वो डर के मारे फरार हैं। उन्होंने दावा किया कि जो आरोप लगे हैं, वो निराधार हैं। 

चंद्र प्रकाश झा ने बताया कि प्रवीण झा मुखिया का चुनाव भी लड़ने वाला था, उसे फंसाया गया है. जिस तालाब की बात की जा रही है, उसके दूसरे तरफ का हिस्सा हमारा है, पूर्वजों से चला आ रहा है. लेकिन वो लोग पता नहीं कहा से कागज बनवाकर उसमें मछली पालन करते हैं.

चंद्रप्रकाश झा ने कहा कि जब वो हमारे पुरखों की है तो मछुआ सोसाइटी को कैसे चली गई? उन्होंने बताया कि घटना वाले दिन प्रवीण झा को बुलाया गया था. जब वो आए तो देखे कि गोली चल रही थी, अब कोई उनको गोली मारने आया था या ये किसी को मारने गए थे, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है.

हालांकि चंद्रप्रकाश झा ने बताया कि 28 साल पहले सुरेंद्र सिंह ने अपनी पटिदारी में ही रंजिश के चलते ऑन ड्यूटी रहते हुए कुछ लोगों को गोली मार दी थी, ये भी जांच का विषय है.

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मधुबनी हत्याकांड का मामला बेहद पेचीदगियों से भरा नजर आता है, गांव में कोई भी कैमरे पर कुछ भी बोलने से परहेज कर रहा है. पीड़ित परिवार और आरोपियों के परिजनों ने आज तक से बातचीत में एक बार भी किसी तरह के जातीय संघर्ष का जिक्र नहीं किया. हालांकि उनकी बातचीत से आपसी रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई साफ झलकती है. स्थानीयों के मुताबिक दोनों ही पक्षों के लोग अपराधिक छवि के रहे हैं. 

 

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