हर साल दुनिया भर में करीब 8 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं यानी हर 40 सेकंड में एक इंसान अपनी जान लेता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक 15-29 साल के युवाओं में आत्महत्या मौत का चौथा सबसे बड़ा कारण है. World Suicide Prevention Day (10 सितंबर) एक ऐसा दिन जब हमें सोचना होगा कि क्या आत्महत्या सिर्फ मेंटल हेल्थ इश्यू है या इसके पीछे सोशल, फाइनेंशियल या फैमिली प्रॉब्लम भी छिपे होते हैं, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं. समझें क्या हैं वो 5 बड़ी वजहें...
पैसे की तंगी है सबसे बड़ा कारण
जीवन आस्था हेल्पलाइन (अहमदाबाद) का डेटा बताता है कि साल 2025 में आए कॉल्स का 24% कारण आर्थिक तनाव रहा, जो कि 2024 की तुलना में 6% अधिक है. इसके बाद इमोशनल और रिश्तों से जुड़ी परेशानियां दोनों मिलकर 42% कॉल्स का हिस्सा थीं.
टूटते परिवार, बढ़ता दबाव
KGMU, लखनऊ में हुए एक वर्कशॉप में डॉक्टर्स ने कहा कि बढ़ती इच्छाएं, कमजोर पारिवारिक रिश्ते और भावनात्मक असहायता जैसे ये वो कारक हैं जो व्यक्ति को आत्महत्या तक पहुंचा रहे हैं. यहां डॉ. विवेक अग्रवाल ने बताया कि अक्सर लोग शब्दों या व्यवहार के जरिए पहले संकेत भेजते हैं, स्पेशली जब उन्हें लगता है कि कोई सुनने वाला नहीं है.
छात्र और उन पर एग्जाम का प्रेशर
हैदराबाद की हेल्पलाइन में फरवरी-जून 2025 के बीच लगभग 5,250 कॉल्स आए, जिनमें से ज्यादातर का कारण परीक्षा का तनाव, पारिवारिक उम्मीदें और भावनात्मक अलगाव था. कोचिंग नगरी कहा जाने वाला राजस्थान का कोटा शहर जहां हर साल आत्महत्याओं के दर्जनों मामले आ रहे हैं. इनमें बच्चे परीक्षा के तनाव के चलते आत्महत्या का रास्ता अपना लेते हैं.
भारत की सबसे संवेदनशील कड़ी हैं यूथ
NCRB डेटा (2022) के अनुसार भारत में लगभग 13,000 छात्रों ने आत्महत्या की थी, यानी कुल सुसाइड डेटा का 7.6%, इंडिया में छात्रों ने किया और यह प्रतिशत लगातार चिंता बढ़ा रहा है. कुछ शोध बताते हैं कि भारत में युवा, उच्च शिक्षा प्राप्त और बेहतर आर्थिक स्थिति वाले लोग पारंपरिक सोच से अलग चुनौतियों से जूझते हैं, जिससे आत्महत्या की दर अन्य समूहों से ज्यादा है.
पारिवारिक कलह, अलगाव, घरेलू हिंसा भी वजह
The Lancet ने अपनी एक स्टडी में दर्शाया है कि सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने से काम नहीं चलेगा. हमें इसके पीछे के सामाजिक जोखिमों (जैसे घरेलू हिंसा, पारिवारिक कलह, निर्धनता, आदि) को भी समझना होगा. वहीं NCBI के एक अध्ययन में बताया गया कि लगभग 44% आत्महत्याओं के पीछे बीमारी और परिवारिक समस्याएं हैं, जबकि 43% मामलों में कारण पता नहीं हो पाता.
इन वजहों को नजरंदाज नहीं कर सकते
आत्महत्या सिर्फ मानसिक बीमारी का मामला नहीं, ये एक सामाजिक और प्रणालीगत संकट है. नौकरी और आर्थिक अस्थिरता, पारिवारिक टकराव, शिक्षा और परीक्षा का दबाव, युवा पीढ़ी की संवेदनशीलता और समाज में बदनामी या असफलता का टैग मिलने जैसे ट्रिगर भी हैं.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
भोपाल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि आत्महत्या को केवल मानसिक रोग का परिणाम मानना अधूरा नजरिया है. बहुत बार यह आर्थिक दबाव, सामाजिक अलगाव या रिलेशनशिप ब्रेकडाउन की वजह से भी होती है. ऐसे मामलों में व्यक्ति को मदद मांगने का मौका तक नहीं मिलता. हमें समाज के स्तर पर सपोर्ट सिस्टम मजबूत करना होगा, तभी रोकथाम संभव है.
क्या हो सकते हैं समाधान और रोकथाम के रास्ते
ओपन कन्वर्सेशन जरूरी- परिवार और दोस्तों के बीच मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बातचीत होनी चाहिए. अगर परिवार में ऐसा माहौल हो कि लोग अपनी बातें या यहां तक कि अपने विरोध खुलकर दर्ज करा सकें तो उनके लिए परिवार किसी सपोर्ट सिस्टम से कम नहीं होता.
अर्ली इंटरवेंशन- टेंशन, एंजायटी, चिंता या नशे की लत दिखे तो तुरंत विशेषज्ञ की मदद लेना चाहिए.
सोशल सपोर्ट जरूरी- स्कूल, कॉलेज और वर्कप्लेस में काउंसलिंग और पीयर सपोर्ट सिस्टम जरूरी है.
इन फ्री हेल्पलाइन की भी ले सकते हैं हेल्प
Tele-MANAS (Govt of India)- 14416 / 1800-891-4416
KIRAN (MoSJ&E)- 1800-599-0019
मानसी मिश्रा