हर पांच में से एक मां को बच्चे के जन्म के बाद होता है डिप्रेशन, जानें- क्या है इलाज, कहां ले सकते हैं फ्री काउंस‍िल‍िंग

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 10% गर्भवती महिलाएं और 13% नवजात बच्चों की माएं मानसिक विकारों, खासतौर पर डिप्रेशन से प्रभावित होती हैं. इसका सीधा असर मां के साथ-साथ बच्चे की सेहत, विकास और पूरे परिवार के माहौल पर पड़ता है. 

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Representational Photo of Mother with baby (Source: ChatGPT) Representational Photo of Mother with baby (Source: ChatGPT)

मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 07 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 12:38 PM IST

आज 7 अप्रैल वर्ल्ड हेल्थ डे पर मां के मानस‍िक स्वास्थ्य पर बात करना बहुत जरूरी है. बच्चे की पहली मुस्कान मां की मुस्कराहट से जुड़ी होती है. लेकिन अगर मां के चेहरे पर ही मुस्कराहट न हो तो बच्चे को दुनिया में आने की पहली खुशी ही अधूरी हो सकती है. 
आपको बता दें कि गर्भावस्था और डिलीवरी के बाद कई महिलाएं डिप्रेशन, चिंता और घबराहट जैसी मानसिक स्थितियों से जूझती हैं, लेकिन आंकड़ों के अनुसार ज़्यादातर चुप रहती हैं.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 10% गर्भवती महिलाएं और 13% नवजात बच्चों की माएं मानसिक विकारों, खासतौर पर डिप्रेशन से प्रभावित होती हैं. इसका सीधा असर मां के साथ-साथ बच्चे की सेहत, विकास और पूरे परिवार के माहौल पर पड़ता है. 

जब मां का मन ही न लगे...
IHBAS के वर‍िष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश का कहना है कि Postpartum depression या anxiety सिर्फ मूड स्विंग नहीं है. ये एक गंभीर मानसिक अवस्था है जो अगर समय रहते समझी और संभाली न जाए, तो मां के साथ-साथ बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास को भी नुकसान पहुंचा सकती है. ऐसी महिलाएं बच्चे से जुड़ाव महसूस नहीं कर पातीं, उनकी देखभाल में भी कमी रह जाती है. 

बच्चे के मन पर मां के मन का असर
जानी-मानी क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ विध‍ि एम पिलनिया जो बच्चों और महिलाओं की मेंटल हेल्थ पर काम करती हैं. डॉ पिलनिया शोधों का हवाला देते हुए बताती हैं कि अगर मां लंबे समय तक डिप्रेशन में रहती है तो बच्चा भी व्यवहारिक समस्याओं, कम आत्मविश्वास और सीखने की कठिनाइयों का शिकार हो सकता है. मां का मानसिक स्वास्थ्य बच्चे के दिमागी विकास की नींव है. इसलिए मांओं के मानस‍िक स्वास्थ्य पर पर‍िजनों को पूरा ध्यान रखना चाहिए. 

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UNICEF की 2022 रिपोर्ट के अनुसार, जन्म के शुरुआती 1,000 दिन यानि प्रेग्नेंसी से लेकर बच्चे के दो साल तक का समय बच्चे के ब्रेन डवलपमेंट के लिए सबसे अहम होते हैं. इस दौरान मां का मानसिक असंतुलन बच्चे के न्यूरोलॉजिकल विकास में रुकावट डाल सकता है. 

Blockchain For Impact (BFI) के CEO डॉ गौरव सिंह इस बारे में कहते हैं कि भारत सरकार ने Neonatal mortality rate में 65% और infant mortality rate में 69% तक की गिरावट दर्ज की है, जो वैश्विक औसत से काफी बेहतर है. PMSMA और MAA जैसी योजनाएं सराहनीय हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अब भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. 

ऐसे ले सकते हैं मदद

फ्री काउंसलिंग और हेल्पलाइन 
- भारत सरकार की  फ्री Mental Health Helpline (14416) पर कॉल कर सकते हैं. 
- कई राज्यों में ड‍िस्ट्र‍िक मेंटल हेल्थ प्रोग्राम (DMHP) के तहत फ्री काउंसलिंग सुविधा है. 
- iCall (TISS द्वारा संचालित) और Fortis Stress Helpline पर भी हेल्प ले सकते हैं. 

गर्भावस्था जांच में मेंटल हेल्थ चेकअप जोड़ना जरूरी 
- डॉक्टरों को ANC visits (Antenatal Checkups) में मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग भी करनी चाहिए. 
- PHCs और CHCs पर प्रशिक्षित काउंसलर तैनात किए जाने चाहिए. 

क्या हो परिवार और समाज की भूमिका 
- नई मांओं को कमजोर या भावुक कहकर जज न करें. उनकी बात सुनें और उन्हें अकेला न छोड़ें. 
- पति, सास-ससुर और दोस्तों का साथ सबसे बड़ा सहारा बन सकता है. 

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