कई लोगों को बंद कमरे या लिफ्ट में अकेले जानें से डर लगता है. उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई अचानक से आकर पीछे से पकड़ लेगा. वहीं, ऐसे लोगों को तंग जगह में फंसने, कैद होने या दीवार गिरने का डर इतना ज्यादा होता है कि उनके लिए सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे टेस्ट करवाना भी मुश्किल हो जाता है. अगर आपके साथ भी ऐसा हो रहा है, तो यह क्लॉस्ट्रोफोबिया के संकेत हैं.
दरअसल, यह एक मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति के अंदर एक गहरा डर होता है और जब भी वह किसी बंद जगह पर जाता है तो उसे चक्कर आने लगते हैं, शरीर कांपने लगता है और घबराहट महसूस होने लगती है. कई लोगों को तो बंद जगह पर जाने से पैनिक अटैक भी आ जाता है.
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, क्लॉस्ट्रोफोबिया बंद और छोटी जगहों से लगने वाला एक प्रकार का डर है. इस डर से 12.5 फीसदी आबादी ग्रस्त है, जिसमें महिलाओं की तादाद ज्यादा है. क्लॉस्ट्रोफोबिया से ग्रस्त लोग बंद स्थानों से डरते हैं. फिर चाहे वो कोई गुफा हो, एमआइआई मशीन हो या भीड़भाड़ वाली जगह. ऐसी जगहों पर जाते ही उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.
क्लॉस्ट्रोफोबिया के लक्षण
1. क्लॉस्ट्रोफोबिया होने पर व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ता है और छाती में खिंचाव महसूस होने लगता है. साथ ही दर्द की समस्या बनी रहती है.
2. क्लॉस्ट्रोफोबिया से पीड़ित इंसान को किसी बंद जगह पर पहुंचकर डर के कारण पसीना आने लगता है और सिरदर्द भी होता है.
3. क्लॉस्ट्रोफोबिया की वजह से अचानक से एंग्जाइटी बढ़ने लगती है, जिसके चलते हाथों और पैरों में नंबनेस महसूस होती है.
4. इसके अलावा मुंह सूखने लगता है और पेट में भी दर्द व ऐंठन बढ़ जाती है.
क्लॉस्ट्रोफोबिया से ऐसे पाएं निजात
1. संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा यानी कॉग्नीटिव बिहेवियरल थेरेपी की मदद से किसी भी तरह के डर को दूर करने में मदद मिलती है. इसमें नकारात्मक विचारों को रोका जाता है, जो क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने वाली स्थितियों से पैदा होते हैं. विचारों में बदलाव आने से छोटी और बंद जगहों से लगने वाला डर कम हो जाता है.
2. एक्सपोजर थेरेपी का इस्तेमाल चिंता और डर की स्थिति से उबरने के लिए किया जाता है. इस थेरेपी के दौरान क्लॉस्ट्रोफोबिया को ट्रिगर करने के लिए एक ऐसी सिचुएशन तैयार की जाती है, जिससे डर पर काबू पाया जा सके. बार-बार ऐसी परिस्थितियों के संपर्क में आने से इंसान के अंदर से डर की भावना कम होने लगती है.
3. मन में बसे डर को बाहर निकालने के लिए ब्रीदिंग और विजुअलाइजेशन की मदद लें. डीप ब्रीदिंग एक्सरसाइज से मन में मौजूद विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है. इसके अलावा किसी चीज पर ध्यान लगाने से मसल्स में रिलैक्सेशन बढ़ने लगता है. रिलेक्सेशन तकनीक डर को काबू करने में काफी मददगार है.
4. थेरेपी से डर की भावना को कंट्रोल करने के अलावा डॉक्टर से जांच और सुझाव के बाद ही दवा लें. इससे मानसिक स्वास्थ्य सही बना रहता है और फोबिया से बचा जा सकता है. एंटीडिप्रेसेंट या एंटी एंग्जाइटी दवाएं दिमाग को सुकून पहंचाती है. लेकिन किसी भी दवाई का सेवन डॉक्टर की सलाह लेकर ही करें.
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