खांसी की दवा में जहरीला केमिकल, कफ सिरप लेने से पहले जान लें ये बातें, खतरा रहेगा दूर

कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत से पूरा देश गुस्से में हैं और इस बीच अब तमिलनाडु में बने कोल्ड्रिफ सिरप में खतरनाक केमिकल मिलने से हड़कप मच गया है. पहले भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं, आइए बताते हैं कि डाइएथिलीन ग्लाइकॉल क्या होता है और ये कितना खतरनाक है.

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खांसी होने पर हमेशा डॉक्टर की सलाह लें. (Photo: AI-generated) खांसी होने पर हमेशा डॉक्टर की सलाह लें. (Photo: AI-generated)

आजतक हेल्थ डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:34 PM IST

भारत में कफ सिरप पर लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं, राजस्थान और मध्यप्रदेश में कफ सिरप पीने से कई बच्चों की जान चली गई है, जिसे लेकर लोगों में काफी गुस्सा है. अब भारत में एक बार फिर कफ सिरप को लेकर हंगामा मच गया है, इस बार मामला कोल्ड्रिफ सिरप का है, इस सिरप के एक बैच में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) नाम का खतरनाक केमिकल मिला है. ये वही केमिकल है जो अगर शरीर में चला जाए तो ये किडनी फेल्योर, लिवर डैमेज, और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकता है. 

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सिरप की बिक्री पर लगी रोक

तमिलनाडु में बने कोल्ड्रिफ सिरप के एक सैंपल की टेस्ट के दौरान पता चला कि उसमें DEG की मात्रा 48.6% है जो बहुत जहरीली मानी जाती है. यही वजह है कि मध्य प्रदेश,तमिलनाडु और कुछ अन्य राज्यों ने इस सिरप की बिक्री पर रोक लगा दी है. इस मामले के बाद CDSCO (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) और राज्य स्वास्थ्य विभागों ने सिरप की बिक्री और उत्पादन को रोकने का आदेश दे दिया है, साथ ही कंपनी से पूरी जानकारी मांगी जा रही है कि आखिर ऐसा कैसे हुआ. 

दिलचस्प बात यह है कि जब यही सिरप मध्य प्रदेश और राजस्थान से जांच के लिए भेजा गया, तो उन सैंपल्स में एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) नहीं मिला. इसका मतलब ये हो सकता है कि सभी सिरप बैच दूषित नहीं हैं, बल्कि ये सिर्फ एक या कुछ बैचों में ही हो इसका मतलब हो सकता है कि सिरप की क्वालिटी हर जगह एक जैसी नहीं थी.

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 डाइएथिलीन और एथिलीन ग्लाइकॉल खतरनाक क्यों हैं?

एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) और डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी)एक इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट है, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर ब्रेक फ्लूइड या एंटीफ्रीज में किया जाता है, सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हें बड़ी मात्रा में दवाइयों में इस्तेमाल करने की सहमति नहीं दी गई है. जब कोई ईजी या डीईजी निगलता है तो ये शरीर में टूटकर जहरीले पदार्थ में बदल जाते हैं. जैसे-

  • ग्लाइकोलिक एसिड
  • ऑक्सालिक एसिड
  • डाइग्लाइकोलिक एसिड

ये जहरीले पदार्थ खासतौर पर किडनी को नुकसान पहुंचाते हैं. ज्यादा तेज जहरीले होने पर सबसे बड़ा नुकसान नेफ्रोटॉक्सिसिटी होता है. इसका मतलब है कि किडनी की नलिकाएं डैमेज हो जाती हैं, ब्लड में एसिड बढ़ जाता है और अगर समय पर इलाज न हो तो किडनी पूरी तरह फेल हो सकती है. इसके अलावा नर्वस सिस्टम कमजोर हो सकता है,शरीर के मेटाबॉलिज्म में गड़बड़ी आ सकती है. 

पहले भी सामने आ चुके हैं मामले

वैसे ये पहली बार नहीं है जब भारत को दूषित कफ सिरप के कारण जांच का सामना करना पड़ा हो. पहले भी भारत से विदेशों में एक्सपोर्ट किए जाने वाले सिरप के कारण गंभीर घटनाएं हुई हैं. 

  • 2022, गाम्बिया: दूषित भारतीय कफ सिरप के कारण लगभग 70 बच्चों की मौत.
  • 2023, उज्बेकिस्तान: डीईजी से दूषित खांसी की दवाओं के कारण कई बच्चों की मौत.

DEG/EG को लेकर दुनिया भर के नियम

  • बच्चों के लिए डाइएथिलीन और एथिलीन ग्लाइकॉल बहुत खतरनाक हैं. इसलिए इनके इस्तेमाल को लेकर दुनिया भर में नियम है.
  • किसी भी कफ सिरप या दवा में डाइएथिलीन और एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा बहुत ही कम, लगभग 0.1% या उससे कम होनी चाहिए.
  • WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने बार-बार चेतावनी दी है कि बच्चों की दवाओं में डाइएथिलीन और एथिलीन ग्लाइकॉलकभी भी नहीं होना चाहिए. क्योंकि थोड़ी सी मात्रा भी उन बच्चों के लिए जानलेवा हो सकती है, जिनकी किडनी कमजोर है. इसलिए अगर दवा में DEG/EG होने का शक भी हो तो इसे आपात स्थिति माना जाता है और तुरंत जांच होती है.

कफ सिरप कैसे बनता है?

खांसी की दवा में मुख्य रूप से इन चीजों से मिलकर बनाई जाती है: 

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  • एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट(API): जो खांसी या जुकाम को कम करती है, जैसे डेक्सट्रोमेथोर्फन या एंब्रॉक्सोल. 
  • वाहन/सॉल्वेंट: पानी, ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल. 
  • स्टेबलाइजर, स्वीटनर, फ्लेवरिंग, जिनका इस्तेाल घोल को स्थिर करने, उसे टेस्टी बनाने, माइक्रोऑर्गेनिज्म को बढ़ने से रोकने, गाढ़ापन देने के लिए किया जाता है. 

खतरनाक कैसे हो सकता है?

  • अगर निर्माता इंडस्ट्रियल ग्रेड ग्लिसरीन या प्रोपलीन ग्लाइकॉल इस्तेमाल करता है तो गलती से या जानबूझकर DEG या EG मिल सकते हैं.
  • खराब क्वालिटी कंट्रोल, आपूर्ति में कमी, या उपकरणों का मिलकर खराब होना भी कारण हो सकता है.
  • DEG/EG में कोई रंग और स्मेल नहीं होती है, इसलिए आसानी से वेलिड सॉल्वेंट्स की तरह दिख सकते हैं.

भारत में इससे पहले भी कई बार कफ सिरप में जहरीले केमिकल मिलने के मामले सामने आ चुके हैं. ये दिखाता है कि देश में दवाओं की क्वालिटी कंट्रोल सिस्टम को और मजबूत करने की जरूरत है. ये मामला भारत में दवाओं की क्वालिटी और सुरक्षा मानकों पर फिर से सवाल खड़ा कर रहा है, सरकार के लिए यह जरूरी हो गया है कि वो दवा बनाने वाली इकाइयों की सख्त निगरानी करे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके.

कफ सिरप को लेकर रखें इन बातों का खास ध्यान

जिस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए लोग कफ सिरप के इस्तेमाल को लेकर ही डर गए हैं. मगर आपको पैनिक होने की जरूरत नहीं है, बस कुछ बातों का ध्यान रखकर भी आप खतरे से दूर रह सकते हैं.

  • हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही कफ सिरप लें, खांसी-जुकाम होने पर खुद से या किसी की सलाह पर दवा लेने से बचें.
  • बच्चों के लिए अलग सिरप इस्तेमाल करें. क्योंकि बच्चों और बड़ों की दवा की मात्रा अलग होती है.
  • 2 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप न दें.
  • कप सिरप को पीने से पहले उसका लेबल और एक्सपायरी डेट जरूर देखें.
  • किसी लोकल या अनजान ब्रांड से परहेज करें, असली और रजिस्टर्ड कंपनी का सिरप ही खरीदें. 
  • जरूरत से ज्यादा मात्रा में कफ सिरप लेना नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए डॉक्टर की बताई डोज ही लें.
  • सिरप को सही जगह स्टोर करना भी जरूरी है, इसे हमेशा ठंडी और सूखी जगह पर रखें.
  • अगर सिरप पीने के बाद कोई रिएक्शन दिखे. तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
     
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