इंसान एक ऐसी सामाजिक प्रजाति है जो दूसरों के साथ अपनी तुलना बंद नहीं कर सकता. फिर चाहे वो सोशल स्टेटस हो या दौलत, लोग तुलना करने से नहीं बच पाते. जब उनका सामना किसी ऐसे व्यक्ति से होता है जो उनसे 'ऊपर' है या किसी अन्य तरीके से उनसे बेहतर होता है, तो अक्सर वो खुद को हीन महसूस करते हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि जब आप तुलना पर आएंगे तो यहां आपका नजरिया काम करेगा. या तो आप खुद को हमेशा किसी न किसी से बेहतर पाएंगे, या किसी को अपने से बेहतर देखेंगे, फिर चाहे आप कितने भी अच्छे क्यों न हों. इसलिए, हीनता की भावना आम है जो हमें बेहतर बनने के लिए प्रेरित करती है.
इहबास दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ ओमप्रकाश कहते हैं कि मनोचिकित्सक हीन भावना को मानसिक समस्या की श्रेणी में तब रखते हैं जब ये लगातार आपको परेशान करती है. जब ये भावना किसी के जीवन को पॉजिटिव बदलाव के लिए प्रेरित करना बंद करके नेगेटिव थॉट्स पैदा कर देती है. इससे ग्रसित व्यक्ति को यदि हीन भावना के कारण किसी के जरिये आत्म सम्मान में चोट पहुंचती है. सोशल एंजाइटी का शिकार हो जाता है, या अपने से ज्यादा दूसरों की भावनाएं उसे नियंत्रित करती हैं. फिर वो उस हीनता को छुपाने के लिए सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स (अपनी हीनता के लिए अधिक मुआवजा) में आ जाता है. इसका अर्थ है कि वो अपनी हीन भावना को अपनी फेक पर्सनेलिटी या दिखावे से छुपाने की कोशिश करता है.
भोपाल के जाने माने मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि देखिए कॉम्प्लेक्स सुपीरियर हो या इन्फीरियर हो. दोनों ही अपनी सेल्फ इमेज पर निर्भर करते हैं. बचपन से उन्होंने देखा है कि किसी को वैलिडेशन, तारीफ मिलता है जब वो किसी से बेहतर होता है. जब कम आंका जाता है, लोग इज्जत नहीं मिलती, लोग जज करते हैं तो हमें हीन भावना मिलती है. जब आपसी संबंधों में तुलना ही आधार होता है, लेकिन जब हम अपने बनाए बेसिक लेवल से खुद को आगे समझने लगते हैं. खुद को दूसरों से बेहतर पाने लगते हैं तो आत्ममुग्धता का भाव बढ़ जाता है, कई बार ये नारसिस्ट पर्सनैलिटी बन जाते हैं. लेकिन जब हमारे भीतर चेतना आ जाती है हम तुलना को तुलना की ही तरह लेते हैं तो ये सामान्य है. लेकिन अगर ये विचार बहुत ज्यादा है तो तत्काल साइकेट्रिस्ट से संपर्क करना चाहिए.
डॉ सत्यकांत पेरेंटिंग के दौरान इस भावना के पनपने को खास वजह मानते हैं. उन्होंने बताया कि एक मां अपने बच्चे को लेकर उनके पास आई थीं. उनका नौवीं में पढ़ने वाला बच्चा सोशल एंजाइटी को फेस कर रहा था. हर वक्त उदास और खुद को दूसरों के सामने फिट महसूस नहीं करता था. जब बच्चे की काउंसिलिंग हुई तो सामने आया कि उसमें हीन भावना इस हद तक भर गई थी कि वो खुद को दूसरों के नजरिये से देखकर अपने आपको कुंठित मानने लगता था. वो लोगों से मिलने जुलने से कतराने लगा था. इसकी वजह उसने बताई कि उसके घर में हमेशा उसकी तुलना बड़ी बहन से होती रही है. बड़ी बहन पढ़ने में बहुत अच्छी है तो उसे कहा जाता था कि तुम उसके जैसे कभी नहीं बन सकते. मैंने बहुत कोशिश भी की लेकिन बड़ी बहन के बराबर मार्क्स मेरे कभी नहीं आए, न मैं उसके लेवल का स्विमर बन पाया. उस आठवीं के स्टूडेंट का इलाज कॉग्निटिव बिहैवरिल थेरेपी के जरिये किया गया तब उसमें काफी बदलाव आए.
इस केस से हम समझ सकते हैं कि कैसे बच्चे घर से ही हीन भावना का शिकार होते हैं. कई माता पिता हर वक्त अपनी खुद की भी तुलना दूसरों से करते हैं और खुद को हीन बताते हैं. वैसे ही वो बच्चों को परवरिश के दौरान तुलना कर करके हतोत्साहित करने का काम ज्यादा करते हैं. डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों को एक आदर्श तो दे सकते हैं ,लेकिन उससे तुलना नहीं करनी चाहिए. लेकिन अक्सर गुस्से में माता पिता खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते और इसे नाराजगी में कह डालते हैं. फिर इसी तरह स्कूलों में भी कई बार बच्चों को तुलना का शिकार होना पड़ता है. ये सब घटनाएं उसके व्यक्तित्व को बना रही होती हैं. इससे कई बच्चे भी दिखावा और प्रदर्शन करना सीख जाते हैं जोकि एक समय के बाद सुपिरिएरिटी कॉम्प्लेक्स बन जाता है.
बाल मनोचिकित्सक डॉ राजीव मेहता सर गंगाराम कहते हैं कि हीनभावना और भी कई कारणों से आती है. भागदौड़ भरी जिंदगी में ज्यादातर लोग किसी न किसी उलझन में रहते हैं. घर-दफ्तर की जिम्मेदारियों से लेकर वित्तीय समस्याएं तक सब इंसान के दिमाग पर चलती रहती हैं. इनका सीधा असर भी मस्तिष्क पर पड़ता है, इससे तनाव मानसिक थकावट घेरती है. ये तनाव और अवसाद हमें हीन भावना से भरता जाता है, आत्मविश्वास की कमी होने लगती है. इससे बचने के लिए अपनी लाइफ स्टाइल में कुछ रुचिकर हैबिट्स को हमेशा रखना चाहिए.
इसके लिए हम सेल्फ काउंसिलिंग के जरिये भी खुद को करेक्ट कर सकते हैं. अपनी दिनचर्या में अगर आप सफर करते हैं तो साथ में कुछ ऑनलाइन नया सीखने का प्रयास करें. इसके लिए आप नेगेटिविटी से बचने और सेल्फ करेक्शन जैसी क्लासेज भी ऑनलाइन ले सकते हैं. आपको अगर आत्म विश्वास की कमी लगती है तो आप इसके लिए आत्म विश्लेषण कर सकते हैं. आप अपने विचार डायरी में लिखकर उसे एक साथ पढ़कर भी अपने विचारों को सही दिशा में ला सकते हैं. किताबों से दोस्ती या छुट्टी लेकर कहीं बाहर घूमने जाना भी आपकी मदद कर सकता है.
मानसी मिश्रा