गंजापन सुनने में चाहे मामूली बात लगे लेकिन असल में ये लुक्स की चिंता से कहीं ज्यादा आत्म-सम्मान और मेंटल हेल्थ इश्यू भी है. कहते हैं कि 'हर बार जब बाल गिरते हैं तो अंदर भी कुछ टूटता है शायद वो ही आत्मविश्वास हो.आज भले ही दुनिया भर में गुडलुकिंग के पैरामीटर्स पर बहस चल रही है, लेकिन झड़ते बाल रोकने को लेकर आज भी लोग तमाम तरह के जतन करने को तैयार हैं. फिर चाहे वो मेरठ में गंजापन हटाने के लिए लगी लंबी लाइन हो या फिर कानपुर में हेयर ट्रांसप्लांट के दौरान 37 साल के इंजीनियर की मौत का मामला हो, ये केसेज बताते हैं कि कैसे आज भी गंजापन एक ऐसी समस्या है जिसे लोग सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते. इसे हटाने के लिए वो बहुत से जतन कर रहे हैं. आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि इस मनोस्थिति से उबरने का सही रास्ता क्या होना चाहिए.
कैसा महसूस करते हैं लोग
आपने कभी गौर किया है कि आपके आसपास ही कोई शख्स जो पहले खुशमिज़ाज था, बात-बात पर मुस्कराता था, महफिलों में जमकर बोलता था, लेकिन अब धीरे-धीरे चुप हो गया है? हो सकता है उस मुस्कान के पीछे मन ही मन हेयर लॉस की कोई पर्सनल जंग चल रही हो. अब लोग पीछे जाती उसकी हेयरलाइन को नोट करके उसे कुछ सलाह दे देते हों. ये भी हो सकता है कि कोई जोक या गंजेपन को लेकर कोई तंज उसके कानों में पड़ रहा हो.
30 साल के निखिल तिवारी जो एक निजी कंपनी में काम करते हैं, बताते हैं कि पिछले तीन साल में मेरे बाल आधे रह गए हैं. भले ही मीटिंग में लोग मुझे घूरते नहीं पर मैं खुद ही असहज हो जाता हूं. मैंने गंजेपन से बचने के लिए टोपी पहननी शुरू कर दी तो बाल और तेजी से झड़ने लगे और फंगल इनफेक्शन भी हो गया था. इस तरह महसूस करने वालों में निखिल अकेले नहीं हैं. 20 से 40 की उम्र के हजारों युवा इस दौर से गुजर रहे हैं जहां बालों के झड़ने को बुढ़ापे का लक्षण समझा जाता है और यही सोच उनकी सेल्फ इमेज को चोट पहुंचाती है.
पुरुषों पर भी होता है लुक्स का प्रेशर
मनोवैज्ञानिक डॉ विधि एम पिलनिया कहती हैं कि लुक्स को लेकर दबाव, सिर्फ महिलाओं पर नहीं होता. पुरुष भी इसका शिकार हैं. वो आगे कहती हैं कि हम अक्सर सोचते हैं कि लुक्स को लेकर प्रेशर सिर्फ महिलाओं पर होता है, लेकिन ऐसा नहीं है. खासकर जब बात बालों की हो, गंजापन को आज भी समाज में कमजोरी या उम्रदराज़ होने से जोड़ा जाता है. कइ बार यही सोच व्यक्ति को खुद से दूर कर देती है. डॉ विधि के अनुसार कई लोग बाल झड़ने के बाद भी इलाज के लिए नहीं जाते क्योंकि उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है या फिर वो इसे 'नॉर्मल' मानकर इग्नोर कर देते हैं. लेकिन अंदर ही अंदर ये स्ट्रेस बढ़ता जाता है.
हेयरफॉल अब सिर्फ कॉस्मेटिक नहीं रहा
सीनियर सायकेट्रिस्ट डॉ अनिल सिंह शेखावत बताते हैं कि हेयर लॉस अब डिप्रेशन, सोशल एंजाइटी और बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर (BDD) तक का कारण बन रहा है. हमारे पास ऐसे मरीज आ रहे हैं, जो कहते हैं, ‘डॉक्टर साहब, मैं अच्छा दिखता था, अब आईने में खुद को देखना भी अच्छा नहीं लगता.’ कई लोग डेटिंग से कतराने लगते हैं, शादी टलवाने लगते हैं या जॉब इंटरव्यू में आत्मविश्वास खो देते हैं. BDD यानी जब व्यक्ति अपने शरीर के किसी हिस्से को लेकर जरूरत से ज्यादा परेशान हो. ये ट्रिगर हेयरफॉल जैसी समस्या से शुरू हो सकता है.
सर गंगाराम हॉस्पिटल में मनो चिकित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि हेयर लॉस क्लिनिक जाने वाले ज्यादातर मरीज़ों की पहली चिंता उनके लुक्स की नहीं होती. उनकी चिंता होती है कि दूसरे क्या सोचेंगे. यही वजह है कि अब सिर्फ हेयर लॉस का इलाज नहीं, काउंसलिंग भी जरूरी हो गई है. डॉ मेहता बताते हैं कि युवाओं में आजकल टेंशन और पोषण की कमी हेयरफॉल की सबसे बड़ी वजह है लेकिन जितना नुकसान बालों के झड़ने से नहीं होता. उससे कहीं ज्यादा मानसिक असर उनके वापस न आने के डर से होता है.
शादी, करियर और समाज का 'लुक्स टैक्स'
भारत जैसे देश में जहां शादी में दूल्हे का लुक देखा जाता है, वहां गंजेपन को एक कमी की तरह देखा जाना अब भी जारी है. लड़कियों के लिए भी ये कम चुनौतीपूर्ण नहीं है, उनका गंजे पार्टनर को चुनना अलग ही नजरिये से देखा जाता है. गंजेपन के कारण ही बहुत से पुरुष खुद को कम आकर्षक समझने लगते हैं और इससे उनका आत्मविश्वास करियर में भी झलकता है. Journal of Clinical and Diagnostic Research में पब्लिश हुई एक स्टडी बताती है कि गंजेपन से जूझ रहे 60% पुरुषों और 40% महिलाओं ने बताया कि उनकी मेंटल हेल्थ पर इसका नेगेटिव असर पड़ा. लोग अक्सर सोशल गैदरिंग्स से बचने लगते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग उनके गंजेपन पर कमेंट करेंगे या उन्हें जज करेंगे.
इसके अलावा, गंजापन तनाव को और बढ़ा सकता है. फिर तनाव की वजह से बाल और झड़ते हैं और बाल झड़ने की वजह से तनाव बढ़ता है. ये एक वायसियस सर्कल है. American Academy of Dermatology के मुताबिक तनाव से होने वाला बालों का झड़ना (टेलोजन एफ्लुवियम) गंजेपन को और ट्रिगर कर सकता है. Patrika News की एक रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में 3.13 करोड़ युवाओं में से 62 लाख गंजेपन की समस्या से जूझ रहे हैं और 50% को इससे मानसिक अवसाद हो रहा है.
गंजापन आखिर होता क्यों है, समझें साइंटिफिक कारण
जेनेटिक्स और हार्मोन्स: Journal of Investigative Dermatology में छपी एक स्टडी के मुताबिक मेल पैटर्न बाल्डनेस में डायहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन (DHT) का बड़ा रोल है जो हेयर फॉलिकल्स को सिकोड़ देता है.
मेंटल हेल्थ इम्पैक्ट: International Journal of Trichology की एक स्टडी बताती है कि गंजेपन से जूझ रहे 75% लोग सोशल स्टिग्मा और लो कॉन्फिडेंस की वजह से मेंटल हेल्थ इश्यूज फेस करते हैं.
ट्रीटमेंट्स: मिनोक्सिडिल और फिनास्टराइड जैसी दवाएं गंजेपन को स्लो कर सकती हैं. हेयर ट्रांसप्लांट भी एक पॉपुलर ऑप्शन है, लेकिन ये महंगा है. अच्छे डॉक्टर को ही इसके लिए चुनें.
करें ये काम, मेंटल हेल्थ का ध्यान रखना भी जरूरी
आखिर में आपको समझना होगा कि गंजा होने से ही पूरी दुनिया आपके खिलाफ नहीं होने वाली. तमाम मशहूर हस्तियां जूलियस सीज़र से लेकर गांधी तक, कई लेजेंड्स गंजे थे और दुनिया उनका लोहा मानती है. समाज के तौर पर हमें भी किसी के रंग, शारीरिक बनावट या बालों को सुंदरता के मानक नहीं तय करने चाहिए. किसी से गंजेपन को लेकर मजाक करने की आदत से बचना चाहिए, आपके लिए ये भले ही हंसी का विषय हो लेकिन सामने वाले को इससे दुख पहुंच सकता है.
मानसी मिश्रा