Mental Health: Daydreaming अच्छा या बुरा? जानें मानसिक स्वास्थ्य पर कैसे डालता है असर

अक्सर हम ख्वाबों की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि असल जिंदगी से दूरी बना लेते हैं. ये ख्याल हमें सुकून देते हैं लेकिन कई स्थिति में ये ठीक नहीं होता. आइए जानते हैं Daydreaming का मानसिक स्वास्थ्य पर कैसे असर डालता है.

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Daydreaming (Freepik) Daydreaming (Freepik)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 मई 2024,
  • अपडेटेड 12:40 PM IST

कई बार हम अक्सर वो चीजें इमेजिन करने लगते हैं, जो हमें पसंद हैं. चाहे वो पसंदीदा खाना हो, घर हो या पसंद की नौकरी हो. खुली आंखों से ख्वाब तो सब देखते हैं लेकिन अक्सर हम ख्वाबों की दुनिया में इतना खो जाते हैं कि असल जिंदगी से दूरी बना लेते हैं. दिन के उजाले में बैठे-बैठे अपने सपनों और फैंटेसी दुनिया में खो जाना भी ख्वाब देखना है. इसे डे-ड्रीमिंग कहा जाता है, जिसे हिंदी में दिवास्वप्न कहते हैं. ये ख्याल हमें सुकून देते हैं लेकिन कई स्थिति में ये ठीक नहीं होता. आइए जानते हैं, ये स्थिति मेंटल हेल्थ के लिए कितनी सही है.

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डे-ड्रीमिंग यानी दिवास्वप्न के लक्षण

  • ज्यादा समय ख्यालों में खोए रहना और जरूरी काम को नजरअंदाज करना
  • ख्यालों पर कंट्रोल करना मुश्किल होना
  • डे-ड्रीमिंग की वजह से तनाव और हानि झेलना
  • बहुत मुश्किलों के बाद भी डे-ड्रीमिंग को ना रोक पाना

डे-ड्रीमिंग के फायदे

  • रिसर्च के अनुसार, यह रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद कर सकता है.
  • यह समाधानों पर विचार करने और विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने की क्षमता बढ़ाता है. समस्या और समाधान में सहायक होता है.
  • ये दिमाग को रिलैक्स करता है और तनाव से राहत दे सकता है. इससे रोजमर्रा की जिंदगी के प्रेशर से अस्थाई मुक्ति मिल सकती है.

डे-ड्रीमिंग के नुकसान

  • कभी-कभी डे-ड्रीमिंग अच्छी हो सकती है लेकिन इसका अत्यधिक या अनियंत्रित होना मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है.
  • विशेषज्ञों का कहना है कि ये रोजमर्रा के काम, प्रोजक्टिविटी और रिश्तों पर असर डाल सकता है.
  • इससे वास्तविकता से अलग होने की भावना, जीवन के प्रति असंतोष और महत्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई हो सकती है.

डे-ड्रीमिंग का मेंटल हेल्थ पर असर

  • ये अकेलेपन, अलगाव और वास्तविकता के प्रति असंतोष की भावनाओं को बढ़ा सकता है.
  • लंबे समय तक डेड्रीमिंग से उत्पादकता में कमी, सामाजिक कार्यप्रणाली ख़राब हो सकती है और रिश्तों को बनाए रखने में कठिनाइयां हो सकती हैं.
  • गंभीर मामलों में यह चिंता, अवसाद और डिप्रेशन या (एडीएचडी) जैसी अन्य मानसिक स्थितियों के बिगड़ने में योगदान कर सकता है.
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