क्या है नक्बा, जब लाखों फिलिस्तीनियों को घर छोड़ना पड़ा, क्या इजरायल की आड़ में अरब देशों ने की थी साजिश?

इजरायल की बमबारी में गाजा में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. इजरायल का इरादा साफ है. वो हमास को खत्म करके ही रुकेगा. उसने आम लोगों से इलाका खाली करने को कह दिया, जबकि पास-पड़ोस का कोई मुल्क गाजावासियों को अपनाने को तैयार नहीं. ऐसे में बार-बार 'नक्बा' की चर्चा हो रही है. ये वो शब्द है, जो फिलिस्तीनियों के दिल में फांस बनकर चुभता रहा.

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गाजा फिलहाल हमास और इजरायल की लड़ाई में पिस रहा है. सांकेतिक फोटो (Reuters) गाजा फिलहाल हमास और इजरायल की लड़ाई में पिस रहा है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 11:42 AM IST

गाजा में फिलिस्तीनियों के लिए मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रहीं. एक तरफ इजरायल उसे घर खाली करने को कह रहा है, तो दूसरी तरफ आतंकी गुट हमास उसे वहीं बने रहने के लिए धमका रहा है. कोढ़ में खाज की तरह एक मुसीबत ये हो गई कि हमेशा सहानुभूति जताते पड़ोसियों में से कोई भी गाजा पट्टी के लोगों को शरण नहीं दे रहा. बल्कि इसके लिए साफ-साफ मनाही हो चुकी. ये पूरा मंजर 7 दशक पुरानी कयामत की याद दिला रहा है. 

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क्या इजिप्ट और जॉर्डन गाजा के खिलाफ हैं?

नहीं. ऊपर से वे इन लोगों से पूरी हमदर्दी रखते हैं. लगातार मुस्लिम ब्रदरहुड जैसी बातें हो रही हैं. यहां तक कि ईरान जैसे देश इजरायल को धमका भी रहे हैं. लेकिन ये सब ऊपरी तौर पर है. कोई भी बेघर गाजावालों को अपने यहां नहीं बसाएगा. 

क्या है वजह

अरब देश इसके पीछे अरब लीग रिजॉल्यूशन की बात करते हैं. ये रिजॉल्यूशन मानता है कि फिलिस्तीनियों को 'उनके अपने देश ' की नागरिकता दिलवाने के लिए अरब देशों को सपोर्ट करना चाहिए. अरब देश ये तर्क देते हैं कि अगर उन्होंने अपने देशों में फिलिस्तीन के लोगों को नागरिक अधिकार देना शुरू कर दिया, तो ये एक तरह से फिलिस्तीन को खत्म करने जैसा होगा. लोग भाग-भागकर बाहर बसने लगेंगे और फिलिस्तीन पर पूरी तरह से इजरायल का कब्जा हो जाएगा.

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कागज भी बनता रहा समस्या

गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और येरूशलम में रह रहे फिलिस्तीनी इजरायल के स्थाई नागरिक माने जाते हैं. उनके पास इजरायली कागजात होते हैं. अगर वे उन्हें छोड़कर दूसरी नागरिकता अपने फिलिस्तीनी होने के आधार पर चाहें, तो पेलेस्टीनियन अथॉरिटी उन्हें कुछ डॉक्युमेंट्स देती है. ये कागज सिर्फ ट्रैवल के ही काम आ सकते हैं. इनके आधार पर यह साबित नहीं हो सकता कि वे फिलिस्तीनी हैं. यानी इजरायली सिटिजनशिप छोड़ने के बाद वे कहीं के नागरिक नहीं रह जाते. ऐसे में अरब देश किसी हाल में उन्हें नहीं स्वीकारते.

क्या यूरोप उन्हें पनाह दे सकता है

शरणार्थियों के लिए अक्सर बड़ी बातें करता यूरोप भी इस बार चुप है. असल में वहां पहले ही रिफ्यूजियों की बड़ी आबादी हो चुकी. फ्रांस और जर्मनी में कई ऐसी घटनाएं भी हुईं, जो मुस्लिम चरमपंथी रिफ्यूजियों ने की थी. इसके बाद से यूरोप खासकर मुसलमानों की मेजबानी को लेकर घबराया हुआ है. सरकारें भी आम लोगों के गुस्से से डरी हुई हैं और सीमाओं पर पहरा बढ़ा चुकीं. ऐसे में यहां भी संभावना कम है कि गाजा वालों को भीतर लाया जाए. 

क्यों आया नक्बे का जिक्र

कुल मिलाकर गाजा पट्टी वाले भागें भी, तो उनके पास रहने को दूसरा घर तो दूर, दूसरा देश तक नहीं. इसी बीच नक्बे की चर्चा हो रही है. इस अरबी शब्द का मतलब है तबाही. इसका इस्तेमाल मई 1948 में पहली बार हुआ था. इजरायल बना था, और उसके अगले ही दिन 15 मई को फिलिस्तीनियों को मेनलैंड से हटना पड़ा. लाखों लोग रातोरात बेघर हो गए. बहुत से फिलिस्तीनियों ने अपनी प्रॉपर्टी बेच दी. वहीं बहुत से इस उम्मीद में गए कि जल्द ही दोबारा घर लौट सकेंगे. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. 

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एक साथ हुए लाखों विस्थापन

घर पर लटके ताले कयामत की याद दिलाने लगे. अगले एक साल के भीतर करीब साढ़े 7 लाख फिलिस्तीनी अपना देश छोड़कर जा चुके थे. इस बीच कई नरसंहार भी हुए.

अरब देश आरोप लगाते हैं कि यहूदियों ने मुस्लिमों के मोहल्लों में बम ब्लास्ट किए, लूटपाट की और गांव के गांव खत्म कर दिए. इजरायल के बीचोंबीच रहते यहूदियों को गाजा और वेस्ट बैंक की तरफ विस्थापित कर दिया गया. आने वाले कई सालों तक खदेड़ा जाना और विस्थापन चलता रहा. इन्टरनल विस्थापन भी होता रहा. 

नब्बे के दशक में नक्बा की शुरुआत

नब्बे के आखिर में फिलिस्तीन के पूर्व राष्ट्रपति यासिर अराफात ने नक्बा के दिन की शुरुआत की. ये शोक का दिन होता है, जब फिलिस्तानी अपने घर से निकाले जाने और कत्लेआम को याद करते हैं. 

इस तस्वीर का दूसरा चेहरा भी है

इजरायल का कहना है कि नक्बे के पीछे की फिलिस्तीनी कहानी सरासर गलत है. वहां के लोग यहूदियों से नहीं, बल्कि अरब देशों के हमले के चलते भागे थे. असल में यहूदियों को इजरायल सौंपे जाने के खिलाफ एक साथ 6 अरब देशों ने हमला बोल दिया था.

इस दौरान भारी तबाही मची और यहूदियों के साथ-साथ वहां रहते फिलिस्तीनी भी मारे जाने लगे. इसी हमले से बचने के लिए वे देश छोड़कर भाग गए. इस समय पश्चिम के भी कई देश उन्हें बसने का मौका दे रहे थे. तो लड़ाई में अरबवालों के खिलाफ इजरायल का साथ देने की बजाए ये लोग भागने लगे. बाद में नक्बे की कहानी बना दी गई ताकि सबकी हमदर्दी मिल सके. लेकिन ये ऐसी कॉन्ट्रोवर्सी थ्योरी है, जिस बारे में पक्के तौर पर कोई कुछ नहीं बता पाता. 

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