स्विट्जरलैंड को उसकी हसीन वादियों के अलावा मिलिट्री न्यूट्रैलिटी के लिए भी जाना जाता रहा. ये देश किसी के फटे में पैर अड़ाने से बचता रहा, फिर चाहे वो अमेरिका हो, या जर्मनी. लेकिन सेल्फ डिफेंस के लिए इसके पास अपनी सेना हमेशा रही. हाल में इसमें महिलाओं के लिए भी अनिवार्य ट्रेनिंग की बात उठी जो खारिज हो चुकी. लेकिन सैन्य तौर पर तटस्थ देश भला क्यों सेना मजबूत करने पर जोर दे रहा है?
आक्रामकता कैसे बदली तटस्थता में
सैन्य तटस्थता को स्विट्जरलैंड की राष्ट्रीय पहचान भी कह सकते हैं लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. 15वीं और 16वीं सदी में स्विस सैनिक पूरे यूरोप में सबसे खतरनाक और मजबूत माने जाते थे. वे सत्ता और पैसों के लिए किसी भी भिड़ जाते. लेकिन साल 1515 में ऐसी घटना हुई, जिसने इस देश को हमेशा के लिए बदल दिया. बैटल ऑफ मेरिगनैनो में फ्रांस से लड़ते हुए उसके दस हजार से ज्यादा सैनिक खत्म हो गए. इस हार के बाद स्विट्जरलैंड काफी कमजोर हो चुका था.
हार के बाद स्विस नेताओं ने फैसला किया कि अब उन्हें यूरोप के राजाओं की लड़ाइयों से बाहर रहना चाहिए. धीरे-धीरे यह सोच स्विस पहचान का हिस्सा बन गई. साल 1648 में ट्रीटी ऑफ पेरिस के दौरान उसने इस बात का आधिकारिक ऐलान कर दिया. वहां मौजूद तमाम देशों ने भी स्विस न्यूट्रैलिटी को माना और सैन्य मदद मांगनी बंद कर दी. युद्ध और खूनखराबे के बीच भी ये देश शांत रहने लगा और बाकियों के लिए कुशन का काम करने लगा.
क्या है न्यूट्रल होने का मतलब
- स्विट्जरलैंड किसी भी युद्ध या सैन्य संघर्ष में किसी पक्ष का समर्थन नहीं करता.
- वे NATO जैसे किसी सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं, ताकि किसी युद्ध में उन्हें बाध्य न किया जा सके.
- अगर दो देशों में युद्ध चल रहा हो, स्विटजरलैंड किसी भी सेना को अपने इलाके से होकर जाने नहीं देता.
- युद्धरत देशों को स्विस जमीन या हवाई क्षेत्र के जरिए हथियार भेजना मना है.
- अपनी तटस्थता के कारण यह देश शांति वार्ताओं, और समझौतों की मेजबानी करता है.
- वे युद्ध में पक्ष नहीं लेते, लेकिन मानवीय मदद, और शरणार्थी सहायता में आगे रहते हैं.
तो क्या स्विट्जरलैंड के पास सेना नहीं
यह देश भले ही न्यूट्रल है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं कि वह बिना सुरक्षा के रहेगा. स्विस मॉडल का साफ कहता है कि हम किसी पर हमला नहीं करेंगे, लेकिन कोई हम पर अटैक करे तो हम अपनी सुरक्षा के लिए सब करेंगे. यही वजह है कि वो दंत-विषविहीन नहीं, बल्कि मजबूत सेना वाला देश है. यहां तक कि तमाम स्विस पुरुषों के लिए मिलिट्री ट्रेनिंग जरूरी है ताकि वे मुश्किल में काम आ सकें.
18 से 20 साल की आयु के पुरुष बुनियादी ट्रेनिंग लेते हैं और फिर रिजर्व फोर्स का हिस्सा बन जाते हैं. यह मॉडल इसलिए बनाया गया ताकि जरूरत पड़ने पर स्विटजरलैंड कुछ ही घंटों में एक बड़ी नागरिक-सेना तैयार कर सके. दूसरे देशों की तुलना में खर्च भी कम होता है क्योंकि सक्रिय सेना छोटी और रिजर्व बहुत बड़ा होता है.
क्या तटस्थ देश पर भी खतरा रहता है
हां. इतिहास में कई उदाहरण हैं जब तटस्थ देशों पर भी हमला हुआ. दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान जर्मनी ने बेल्जियम और नीदरलैंड पर हमला किया था, जबकि दोनों लगभग तटस्थ थे. इसी तरह नॉर्वे और डेनमार्क भी तटस्थ थे, पर जर्मनी ने उन्हें भी नहीं बख्शा.
ऐसा क्यों हुआ
तटस्थता तभी तक सुरक्षित है, जब तक शक्तिशाली देश उस नीति का सम्मान करें. अगर किसी को रणनीतिक फायदा मिलता दिखे, जैसे रूट, संसाधन, या सैन्य लाभ, तो वे तटस्थता की परवाह किए बिना हमला कर देते हैं.
क्यों दिख रहा स्विस नीति में बदलाव
वैसे स्विट्जरलैंड आधिकारिक तौर पर भले न्यूट्रल है लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए वो भी पाला बदलता दिख रहा है. साल 2014 में जब मॉस्को ने क्रीमिया पर कब्जा किया, तब भी स्विस लीडरों ने अपनी विदेश नीति कायम रखी थी और रूस से व्यापार जारी रखा. लेकिन हाल में इसमें शिफ्ट दिखा.
स्विट्जरलैंड ने रूस के हमले को एक्स्ट्राऑर्डिनरी सिचुएशन कहते हुए उसपर पहली बार कुछ सख्ती की और लेनदेन में कमी कर दी. पांच सौ सालों में यह पहली बार है, जब देश ने किसी दूसरे पर प्रतिबंध लगाए. लेकिन इससे भी उसकी न्यूट्रैलिटी पर सवाल नहीं उठता है. वो अब भी युद्ध से दूर है.
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