स्पेस में अंतरिक्ष यात्री बीमार पड़ जाएं तो क्या होता है, कैसे काम करता है धरती पर लाने का इमरजेंसी प्लान?

स्पेस में रहते हुए शरीर में काफी सारे बदलाव होते हैं, जिनका असर धरती पर लौटने के बाद भी रहता है. एस्ट्रोनॉट्स को वापस आते ही स्पेशल केयर मिलती है ताकि वे सामान्य हो सकें. स्पेस ट्रैवल के दौरान यात्रियों की सेहत हल्की-फुल्की खराब होती रहती है, लेकिन क्या हो, अगर कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए! क्या उन्हें वापस लाया जाता है?

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स्पेस में एडवांस मेडिकल सुविधाएं मिलना संभव नहीं. (Photo- Unsplash) स्पेस में एडवांस मेडिकल सुविधाएं मिलना संभव नहीं. (Photo- Unsplash)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2025,
  • अपडेटेड 7:07 PM IST

अंतरिक्ष को दशकों से एक्सप्लोर किया जा रहा है, हालांकि अब भी ये हमारे लिए रहस्यमयी बना हुआ है. कहां जीवन है, या कैसे जीवन पनप सकेगा, इसकी खोज के लिए एस्ट्रोनॉट्स लगातार स्पेस की तरफ जा रहे हैं. वैसे तो वे पूरी सुरक्षा और एहतियात में रखे जाते हैं, लेकिन अगर किसी यात्री की सेहत ज्यादा ही खराब हो जाए तो क्या किया जाता है? क्या वहां एडवांस मेडिकल सुविधाएं भी मिल पाती हैं, या धरती पर लौटना ही अकेला रास्ता बचता है?

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स्पेस में इलाज का बंदोबस्त 

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में मेडिकल किट होती हैं, इसमें प्राइमरी देखभाल की सारी चीजें होती हैं. मसलन, दर्द, बुखार, उल्टी की दवाएं. सेडेटिव्स. बीपी, शुगर चेक करने की मशीनें और वैकल्पिक दवाएं. छोटा-मोटा जख्म हो जाए तो उसे साफ करने की व्यवस्था और एंटीबायोटिक्स की कुछ किस्में. 

कौन करता है इलाज 

हर क्रू मेंबर को इसकी बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है. साथ ही सीपीआर देना सिखाया जाता है ताकि जरूरत पर साथी की मदद हो सके. वहीं टीम में एक सदस्य ऐसा होता है, जिसे स्पेस का मेडिकल ऑफिसर ही मान लीजिए. वो बाकियों से ज्यादा ट्रेनिंग लिए होता है और इमरजेंसी से निपट सकता है अगर वो ज्यादा बड़ी न हुई तो. 

टेलीमेडिसिन की व्यवस्था भी

स्थिति ज्यादा ही क्रिटिकल हो और टीम मेंबर्स घबरा जाएं तो धरती से ऑनलाइन सपोर्ट यानी टेलीमेडिसिन की भी व्यवस्था होती है. जैसे धरती पर मौजूद डॉक्टरों की टीम लाइव वीडियो के जरिए उन्हें गाइड करेगी कि क्या बेस्ट किया जा सकता है कि मामला संभल जाए. साथ ही एस्ट्रोनॉट्स बीमार हों या न हों, लेकिन उन्हें अपनी हेल्थ का रेगुलर अपडेट करना होता है जो धरती पर मॉनिटर किया जाता है. 

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इनसे भी बात न बने तो क्या

पहले तो कोशिश की जाती है कि मरीज को वहीं स्टेबल किया जा सके. स्पेस में बीमार या कमजोर यात्री नहीं जाते. वे शारीरिक और मानसिक तौर पर बेहद मजबूत होते हैं, जो कि ट्रेनिंग से और मजबूत हो जाते हैं. ऐसे में छुटपुट चीजों से वे आराम से डील कर पाते हैं. लेकिन जीरो ग्रैविटी की वजह से, या किसी दुर्घटना के चलते अगर यात्री की सेहत बिगड़ जाए तो स्पेस मेडिकल टीम तुरंत देखती कि उसे स्पेस में ही ठीक किया जा सकता है या नहीं. अगर जान का जोखिम दिखे तो कॉन्टिन्जेंसी रिटर्न प्लान बनाया जा सकता है. 

किस तरह होती है ये यात्रा

- ISS में हमेशा एक लाइफबोट स्पेसक्राफ्ट डॉक किया हुआ रखा जाता है, जरूरत पड़ने पर एस्ट्रोनॉट्स इनसे वापस भेजे जा सकते हैं. 

- स्पेस स्टेशन से धरती तक लौटने में 3 से 6 घंटे लगते हैं. इस प्रोसेस में 24 घंटे तक भी लग सकते हैं. 

- स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग कजाकिस्तान के स्टेपी इलाके में होती है. वहां रूस का रेस्क्यू ग्रुप पहले से तैयार रहता है, जो लैंडिंग के साथ ही मौके पर पहुंच जाता है. 

- उतरने के तुरंत बाद मेडिकल टीम मरीज को पास के हॉस्पिटल या एयरबेस ले जाया जाती है. वहां स्टेबल करने के बाद उसे बड़े अस्पताल ले जाया जाता है. 

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कजाकिस्तान के स्टेपी इलाके में ही क्यों 

बड़ी या मुख्य शहर से जुड़ी जगहों को छोड़ वीरान स्थान पर स्पेसक्राफ्ट की लैंडिग की कई कारण हैं. स्टेपी एक बेहद बड़ा मैदान है , जहां पेड़-पौधे या आबादी नहीं. ऐसे में कैप्सूल अगर थोड़ा-बहुत रास्ता चूक भी जाए तो क्रैश का खतरा कम रहता है. इसके अलावा साल के ज्यादातर समय वहां मौसम अनुकूल रहता है. रेस्क्यू हेलिकॉप्टर और गाड़ियां आसानी से पहुंच सकती हैं. तीसरी और असल बात, यूएसएसआर के वक्त से ही बैकअप लैंडिंग जोन कजाकिस्तान में तय किया गया था. 

स्पेस से धरती की तरफ अचानक लौटना कितना सेफ 

ये कॉन्टिन्जेंसी रीएंट्री है. इसमें सुरक्षा की सारी तैयारियां होती हैं. साथ ही कैप्सूल के उतरने के तुरंत बाद ही रेस्क्यू टीमें मौके पर आ जाती हैं. आमतौर पर सबकुछ ठीक होता है, लेकिन फिर भी हर लैंडिंग हाई रिस्क तो है ही. 

क्या कभी कोई अघट हुआ है अंतरिक्ष में 

बात साल 2013 की है. यूरोपियन स्पेस एजेंसी के एस्ट्रोनॉट लूका परमिटानो आईएसएस से बाहर स्पेसवॉक पर थे. बाहर अचानक उनके हेलमेट में पानी भरने लगा. शुरू में उन्हें लगा कि शायद पसीना हो लेकिन देखते ही देखते पानी नाक तक पहुंच गया और सांस लेने में मुश्किल होने लगी.

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यहां सबसे डरावनी चीज क्या थी कि जीरो ग्रैविटी में पानी बहता या तैरता नहीं है, वो बबल की तरफ चेहरे से चिपक जाता है. इसका मतलब ये था कि लूका हेलमेट के भीतर ही पानी में खत्म हो सकते थे. जैसे ही उन्होंने इसकी सूचना था, उन्हें तुरंत वापस स्टेशन के अंदर आने का आदेश मिला. हेलमेट के भीतर से कुछ नहीं दिख रहा था लेकिन किसी तरह वे वापस पहुंच गए. यहां उन्हें फर्स्ट एड दिया गया. ऐसी कई घटनाएं होती रहती हैं और सबके बाद कुछ न कुछ बड़ा सुधार होता है. 

क्या हेल्थ को लेकर भी समस्या दिखी

मिशन के दौरान मामूली चीजें तो होती रहती हैं, लेकिन कई बार कुछ बड़ी दिक्कतें भी रहीं. मसलन, अस्सी के दशक में एक सोवियत कॉस्मोनॉट को प्रोस्टेट से जुड़ी समस्या हो गई. उन्हें वक्त से पहले लौटना पड़ा. इसके अलावा कई यात्रियों को दांतों में दर्द या हल्का इंफेक्शन हो चुका, जो वहीं ठीक कर लिया गया.

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