डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ वक्त पहले ये कहकर भारत को उकसा दिया था कि उनकी वजह से भारत और पाकिस्तान में जंग रुकी. ये ट्रंपियन क्लेम भारत तक ही सीमित नहीं, उनकी मानें तो दुनिया में इक्का-दुक्का नहीं, सात लड़ाइयां उनके कहने पर रुकीं. अब इसी शांति का हवाला देते हुए ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार पर अपना दावा जता रहे हैं. लेकिन वे कौन से देश हैं, जहां कथित तौर पर अमेरिकी लीडर की वजह से जंग थमी? क्या ये देश भी ट्रंप के दावे के समर्थन में हैं?
शनिवार को ट्रंप ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें बताया गया कि अगर व रूस और यूक्रेन जंग रोक दें तो उन्हें नोबेल मिलना चाहिए. लेकिन फिर बाकी लड़ाइयों का क्या! बकौल ट्रंप उन्होंने सात युद्ध रोके और हरेक के लिए उन्हें शांति पुरस्कार मिल सकता है.
ट्रंप ने खुद माना कि शुरुआत में उन्हें लगा था कि रूस-यूक्रेन लड़ाई रोकना ज्यादा आसान होगा क्योंकि पुतिन से उनके रिश्ते अच्छे हैं. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हालांकि इससे उनकी जंग रोकने की क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठता, और वे नोबेल के हकदार हैं.
किन देशों की लड़ाई रोकने का दावा
यूरोप और एशिया के बीच पहाड़ों पर बसे अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच लंबे समय से एक इलाके को लेकर तनाव चल रही है. पिछले महीने ट्रंप की पहल पर दोनों देशों के लीडरों ने शांति पर बात की और समझौते के लिए भी तैयार हो गए. इसके बाद दोनों ही देशों ने ट्रंप के लिए नोबेल की बात कही.
अफ्रीकी देशों डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और रवांडा में नब्बे के दशक से कम-ज्यादा होते हुए जंग चल रही थी. इसी साल जून में ट्रंप की मध्यस्थता के बाद दोनों की तरफ से दावा हुआ कि वे शांति की तरफ बढ़ रहे हैं. ट्रंप इसे भी अपनी उपलब्धि मानते हैं. हालांकि दोनों में तनाव फिर शुरू हो चुका.
जून में ही इजरायल और ईरान के बीच कंप्लीट सीजफायर की घोषणा खुद ट्रंप ने की. दोनों देशों में लगभग दो हफ्तों से लड़ाई जारी थी, जिसमें तेल अवीव ने ईरान में परमाणु केंद्रों तक पर हमले किए थे. वैसे इस लड़ाई की तह में इजरायल का हमास पर हमला माना जा रहा था.
जुलाई में थाइलैंड और कंबोडिया के बीच एक मंदिर को लेकर लड़ाई शुरू हो गई थी. दोनों एक-दूसरे के सैन्य बेस पर हमले करने लगे. लड़ाई कई दिनों तक चली. आखिरकार मलेशिया के बीचबचाव से मामला रुका. लेकिन ट्रंप ने दावा किया कि उनके ही कहने पर दोनों शांत हुए थे.
मिस्र और इथियोपिया के बीच नील नदी को लेकर विवाद चलता आ रहा है. दोनों उसपर अपना दावा करते हैं. ट्रंप ने पहले टर्म में दावा किया था कि उनकी वजह से ये बेहद पुराना तनाव खत्म हो चुका है. हालांकि दोनों ही देशों ने इसपर कोई टिप्पणी नहीं की और न ही दोनों के बीच कोई सशस्त्र लड़ाई चली आ रही है.
यूरोपीय देश सर्बिया और कोसोवो के बीच भी तनाव रहा. कोसोवो खुद को आजाद देश मानता है, वहीं सर्बिया उसके कुछ हिस्सों को वहां रहने वालों के आधार पर अपना मानता है. ट्रंप ने पहले ही टर्म में दोनों से बात की थी और दोनों के बीच कुछ व्यापार भी चलने लगा. वे इसे भी अपने शांति समझौतों में गिनाते हैं.
सबसे विवादास्पद टिप्पणी भारत-पाकिस्तान सीजफायर को लेकर दी गई. कश्मीर में पर्यटकों पर हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर काउंटर-अटैक करते हुए उन्हें नष्ट कर दिया. हमले में कई सैन्य ठिकाने भी तबाह हुए. अपने मासूम नागरिकों पर अटैक को लेकर भारत इतना नाराज था कि पाकिस्तान परेशान हो गया. लगने लगा था कि आर-पार की होकर रहेगी. इसी बीच अचानक सीजफायर हो गया.
ट्रंप ने दावा किया कि उनकी मध्यस्थता से भारत की आक्रामकता घटी, हालांकि भारत ने इससे साफ इनकार कर दिया. वो शुरू से ही अपने और पाकिस्तान के मामले को द्विपक्षीय कहता रहा, और किसी के भी दखल से दूर रहा. हाल में पाकिस्तानी लीडरशिप ने भी कह दिया कि सीजफायर के लिए भारत ने अमेरिका से बात नहीं की थी. हालांकि भारत के अमेरिकी भूमिका को नकारने के बाद भी ट्रंप लगातार इस युद्ध के हवाले से भी खुद को नोबेल का हकदार मान रहे हैं.
किन देशों ने ट्रंप के नाम की वकालत की
- पाकिस्तान ने ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ऑफिशियली नामांकित किया. वो ये पहले भी कर चुका है.
- कंबोडियन लीडरशिप ने माना कि ट्रंप ने थाइलैंड के साथ उसके विवाद को रोकने में मध्यस्थता की.
- अर्मेनिया और अजरबैजान ने मिलकर माना कि ट्रंप की कोशिशें उन्हें नोबेल का हकदार बनाती हैं.
- इजरायल भी एकाध बार कह चुका कि वो ट्रंप को इसका असल हकदार मानता है.
क्या किसी देश के नामांकन से किसी को नोबेल मिल सकता है
किसी देश के नामांकन से सीधे नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलता. नोबेल कमेटी की अपनी प्रक्रिया होती है. हां, कोई भी देश या उसके नेता नामांकन भेज सकते हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उस शख्स को पुरस्कार मिलना तय हो गया. ट्रंप के मामले में पाकिस्तान, कंबोडिया, अर्मेनिया, अजरबैजान जैसे देशों ने उनके नाम का समर्थन किया है. लेकिन इसका असर केवल माहौल बनाने तक है. असली फैसला नोबेल कमेटी करेगी.
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