डोनाल्ड ट्रंप ने NATO पर ऐसा क्या कह दिया, जो यूरोप हुआ परेशान, जर्मनी क्यों आया निशाने पर?

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान ने नाटो सदस्यों में हलचल मचा दी. उन्होंने कहा कि जो नाटो मेंबर तय रकम खर्च नहीं करते, उनपर अटैक के लिए वे रूस को बढ़ावा देंगे. वैसे सैन्य संगठन नाटो का काम ही है, हमले की स्थिति में सदस्यों देशों की सुरक्षा. तब ट्रंप ने ऐसा क्यों कहा? कितनी है नाटो की फीस, और उसका क्या होता है?

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नाटो सदस्य हमले में एक-दूसरे की सुरक्षा की बात करते हैं. (Photo- AP) नाटो सदस्य हमले में एक-दूसरे की सुरक्षा की बात करते हैं. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 1:38 PM IST

नवंबर में हो रहे राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की भी दावेदारी है. रैली के दौरान वे जनता से कई वादे कर रहे हैं. इसी दौरान उन्होंने नाटो पर एक ऐसा बयान दे दिया, जिसने सदस्यों की चिंता बढ़ा दी. ट्रंप का कहना है कि अगर सदस्य अब भी तय फीस न दें तो अमेरिका उनके बदले काम नहीं करेगा, साथ ही अगर यूरोप या उत्तरी अमेरिका के किसी हिस्से पर सशस्त्र हमला हो, तो उसे बचाएगा. ट्रंप ने ऊपर से रूसी हमले की धमकी तक दे डाली. 

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क्या है नाटो, क्या मकसद रहा? 

ये एक मिलिट्री गठबंधन है. पचास के शुरुआती दशक में पश्चिमी देशों ने मिलकर इसे बनाया था. तब इसका इरादा ये था कि वे विदेशी, खासकर रूसी हमले की स्थिति में एक-दूसरे की सैन्य मदद करेंगे. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा इसके फाउंडर सदस्थ थे. ये देश मजबूत तो थे, लेकिन तब सोवियत संघ (अब रूस ) से घबराते थे. सोवियत संघ के टूटने के बाद उसका हिस्सा रह चुके कई देश नाटो से जुड़ गए. रूस के पास इसकी तोड़ की तरह वारसॉ पैक्ट है, जिसमें रूस समेत कई ऐसे देश हैं, जो पश्चिम पर उतना भरोसा नहीं करते.

कौन बन सकता है सदस्य? 

इसके लिए जरूरी है कि देश में लोकतंत्र हो. चुनावों के जरिए लीडर बनते हो. आर्थिक तौर पर मजबूत होना भी जरूरी है. लेकिन सबसे जरूरी है कि देश की सेना भी मजबूत हो ताकि किसी हमले की स्थिति में वो भी साथ दे सके. मेंबर बनने के लिए देश खुद तो दिलचस्पी दिखाता है, साथ ही पुराने सदस्य उसे न्यौता भी दे सकते हैं. इसके बाद ही मंजूरी मिलती है. फिलहाल इसके 31 सदस्य हैं. इनमें से ज्यादातर यूरोपियन देश हैं, जिनके अलावा अमेरिका और कनाडा हैं. 

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नाटो वैसे तो सबकी सहमति से फैसला लेता है लेकिन अमेरिका इनमें सबसे ज्यादा ताकतवर है. उसके पास सैन्य पावर काफी ज्यादा है. इससे भी बड़ी चीज है, उसके पास परमाणु हथियारों का भंडार. यूरोप के सारे देश इसे सुरक्षा का गारंटी मानकर निश्चिंत रहते आए हैं. ऐसे में ट्रंप की धमकी सबको डरा रही है. बता दें कि नाटो का आर्टिकल 5 कहता है कि अगर यूरोप या नॉर्थ अमेरिका के किसी भी देश पर हमला हो तो इसे सारे मेंबर्स के खिलाफ हमला माना जाए. 

पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान भी सदस्यों को पूरी फीस ने देने पर धमकाया था. इसमें जर्मनी निशाने पर था कि वो पूरी तरह से वॉशिंगटन के भरोसे रह रहा है. न तो उसके पास अपना डिफेंस सिस्टम है, न ही वो नाटो के लिए तय फीस चुका रहा है. 

कितनी फीस है इसकी

साल 2014 में सभी नाटो सदस्यों ने मिलकर तय किया था कि वे अपनी जीडीपी का कम से कम 2% डिफेंस पर लगाएंगे. यही वो न्यूनतम खर्च है, जिसे बिल भी कहा जा रहा है. लेकिन ज्यादातर देश इस मामले में पीछे हैं, जबकि अमेरिका ने अपनी जीडीपी का सबसे लगभग साढ़े 3 प्रतिशत डिफेंस पर खर्च किया. इसके बाद पोलैंड, ग्रीस और यूके का नंबर रहा. 

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ये देश सबसे कम खर्च कर रहे

जर्मनी की जीडीपी ज्यादा होने के बाद भी वो डिफेंस पर पैसे खर्च नहीं कर रहा. नाटो का अपना डेटा कहता है कि जर्मनी ने रक्षा पर 1.57% हिस्सा ही लगाया. सबसे कम पैसे स्पेन, बेल्जियम और लग्जमबर्ग खर्च कर रहे हैं. नाटो ने जीडीपी का इतना हिस्सा सैनिकों की नियुक्ति, ट्रेनिंग और हथियारों पर लगाने कहा था ताकि अगर कभी देशों पर हमला हो तो वे तैयार रहे. बड़े हमले की स्थिति में अमेरिका पर सारा बोझ आ सकता है. यही जताते हुए ट्रंप लगातार नाटो सदस्यों पर हमलावर हैं.

ट्रंप और पुतिन में अच्छे रिश्तों की झलक

घबराहट की दूसरी वजह ये है कि ट्रंप ने सबके सामने रूस को उकसाने की धमकी दी. अमेरिका वैसे तो रूस का विरोधी माना जाता रहा, लेकिन इस उदाहरण से साफ है कि ट्रंप और पुतिन के संबंध काफी अच्छे हैं. पुतिन वैसे ही अपने आक्रामक तौर-तरीकों के लिए जाने जाते रहे. फिलहाल उनकी यूक्रेन से लड़ाई चल ही रही है. ऐसे में अगर ट्रंप ने उन्हें बढ़ावा दिया तो यूरोप का कोई और देश भी निशान पर आ सकता है. तब अमेरिका चूंकि नाटो पर सबसे ज्यादा खर्च करता है तो हमले से बचाने की ताकत भी काफी हद तक उसके पास होगी. यही बात यूरोप को परेशान कर रही है. 

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नाटो ने क्या कहा

नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने ट्रंप के बयान पर कहा, यह बात कि सहयोगी देश एक-दूसरे को नहीं बचाएंगे, हमारी पूरी सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर कर देगी. इससे अमेरिका और यूरोप के सैनिकों पर भी खतरा बढ़ जाएगा. 

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