UK बना रहा है 'मर्डर प्रेडिक्शन' मशीन, क्या हत्यारों का चेहरा-मोहरा अलग होता है आम चेहरों से?

19वीं सदी में एक इटालियन क्रिमिनोलॉजिस्ट ने दावा किया कि अपराधियों की शारीरिक बनावट बाकियों से अलग होती है, जैसे उभरी हुई ठुड्डी, चपटी नाक और बेहद बड़े कान. बाद में इस थ्योरी को नकार दिया गया. अब ब्रिटेन मर्डर प्रेडिक्शन टूल बना रहा है, जिसमें छुटपुट अपराध कर चुके लोगों के डेटा देखकर समझा जाएगा कि आगे चलकर वो कोई गंभीर अपराध कर सकते हैं, या नहीं.

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ब्रिटिश न्याय मंत्रालय संभावित हत्यारों को पहचानने की प्रोसेस में है. (Photo- Getty Images) ब्रिटिश न्याय मंत्रालय संभावित हत्यारों को पहचानने की प्रोसेस में है. (Photo- Getty Images)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 1:21 PM IST

ये सोच बहुत पुरानी है कि क्या किसी शख्स का चेहरा देख यह पता लगाया जा सकता है कि वो कितना खतरनाक है, या कितने गंभीर अपराध कर सकता है. क्या उसके चेहरे-मोहरे या व्यवहार में ऐसा कुछ होता है, जो बाकियों से अलग हो. 19वीं सदी की शुरुआत में इटली के अपराधविज्ञानी सेजारे लोम्ब्रोसो ने क्लेम किया था कि जो लोग मर्डर या रेप जैसे अपराध करते हैं उनके चेहरे की बनावट थोड़ी अलग होती है.

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ये बात तब खारिज हो गई, लेकिन अब कई देश मर्डर प्रेडिक्शन सिस्टम पर काम कर रहे हैं, जो संभावित अपराधियों की पहचान करेगी. हालांकि इसका तरीका थोड़ा अलग होगा. 

किस तरह की मशीन बन रही और कैसे करेगी काम

ब्रिटेन की सरकार एक ऐसी मशीन बना रही है जो अंदाजा लगा सके कि कौन इंसान भविष्य में मर्डर कर सकता है. फिलहाल यह सिस्टम शुरुआती स्टेज में है और उन्हीं पर काम करेगा जिनके डेटा पहले से पुलिस रिकॉर्ड में हैं यानी जिन पर कोई न कोई क्रिमिनल केस पहले से दर्ज है. मशीन उनके रिकॉर्ड देखकर अनुमान लगाएगी. जैसे किसी ने मारपीट की हो, या हथियार रखे हों तो सिस्टम देखेगा कि क्या आगे चलकर वो गंभीर अपराध भी कर सकता है. 

ब्रिटिश मिनिस्ट्री ऑफ जस्टिस का कहना है कि ये जो मर्डर प्रेडिक्शन सिस्टम बन रहा है, उसका मकसद है लोगों की सुरक्षा को मजबूती देना. अगर पहले से पता लग जाए कि कौन खतरनाक अपराध कर सकता है, तो उसे रोकने के लिए वक्त रहते कदम उठाए जा सकते हैं. 

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ह्यूमन राइट्स संस्थान इसे लेकर क्यों हुए परेशान

उनका कहना है कि इस टूल के लपेटे में मासूम लोग भी आ सकते हैं, जिन्होंने कोई छोटा-मोटा रूल तोड़ा हो. अगर किसी की मेंटल हेल्थ खराब रही हो, किसी ने खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की हो या अचानक आक्रामक हो गया हो, तो हो सकता है कि मशीन उसे खतरनाक इंसानों की श्रेणी में रख दे. या फिर मशीन भी पुराने फीडबैक के आधार पर किसी खास समुदाय को लेकर पूर्वाग्रही हो सकती है. ऐसे में लोग जबरन कानून की नजरों में घिरे रहेंगे. 

पुराने अपराधियों के डेटा की होगी स्टडी

इधर मंत्रालय के मुताबिक, वो यह समझना चाहता है कि किन लक्षणों से मर्डर करने का खतरा बढ़ जाता है. पुराने केसों के डाटा को ध्यान से पढ़कर यह समझने की कोशिश हो रही है कि मर्डर करने वालों में कौन सी बातें कॉमन होती हैं, फिर चाहे वो उनका व्यवहार हो, या चेहरे-मोहरे का गठन. चूंकि प्रयोग अभी शुरुआती स्टेज में है, लिहाजा ये साफ नहीं है कि पता लगाने के बाद उन संभावित हत्यारों के साथ क्या होगा. क्या उन्हें बिना जुर्म के ही लगातार सफाई देनी होगी, या कोई नंबर या ट्रैकिंग सिस्टम निकाला जाएगा ताकि उनपर नजर रखी जा सके. 

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पहले भी उठी चेहरे के फीचर देखकर पहचान की बात 

हत्यारों के लक्षणों को लेकर काफी पहले से बात होती रही. 18 सौ के आखिरी दौर में इटालियन वैज्ञानिक सेजारे लोम्ब्रोसो ने कहा था कि अपराधी आम लोगों से कुछ अलग दिखते हैं. जैसे उभरी हुई ठुड्डी, मोटा जबड़ा, गहरी आंखें, और बहुत बड़े कान लगभग सभी हत्यारों के मिलेंगे. इन लक्षणों के लोगों को उन्होंने जन्मजात क्रिमिनल कह दिया. इस बात पर उस जमाने में बहुत बहस हुई. कुछ ने इसे खारिज किया तो कईयों को सच्चाई भी लगी. बाद के दौर में वैज्ञानिकों ने इसे गलत थ्योरी कह दिया. उनका तर्क था कि चेहरा या गठन देखकर किसी के इरादे पता नहीं लग सकते. 

चीन में भी कुछ साल पहले अध्ययन

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समय में पुरानी बातें दोबारा सिर उठा रही हैं. साल 2016 में चीन में एक रिसर्च हुई.  वैज्ञानिकों ने हजारों लोगों की तस्वीरें एक कंप्यूटर में डालीं. इनमें से कुछ मर्डर के केस में आरोपी थे तो कई आम लोग थे. AI को सिखाया गया कि इन दोनों तरह के चेहरों में फर्क कैसे करें. उसने कई अलग-अलग चीजें नोट कीं, जैसे होठों की बनावट, आंखों के बीच दूरी. फिर उसने कहा कि वो नब्बे फीसदी सही बता सकता है कि कौन अपराधी है, कौन नहीं.

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स्टडी पर खासा विवाद हुआ. वैज्ञानिकों का कहना था कि अगर किसी जेल में एक ही जाति या समुदाय के लोग बंद हैं और AI को उन्हीं की तस्वीरें दी जाएं तो वो उस चेहरे वाले तमाम लोगों को अपराधी या संभावित अपराधी मान लेगा.

अमेरिकी यूनिवर्सिटी ने तस्वीर देखकर किए प्रेडिक्शन

विवाद के बाद भी इसपर स्टडी रुक नहीं रही है. मई 2020 में, फिलाडेल्फिया की हैरिसबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बना लिया है जो चेहरे की तस्वीर देखकर ही बता देगा कि वो फ्यूचर में अपराधी हो सकता है. एक्सपर्ट ने इस टूल के 80 फीसदी सही रिजल्ट देने का दावा भी किया. इस दौरान लगभग डेढ़ लाख लोगों का डेटा देखा गया, यानी इतने लोगों का चेहरे के फीचर को मिलाया गया. हालांकि भारी विरोध के बाद ये रोक दिया गया. 

दिमाग की स्कैनिंग से क्या पता चलता है

चेहरे के अलावा ब्रेन स्कैन भी अपराधियों की पहचान का तरीका बन रहा है. नब्बे की शुरुआत में न्यूरो क्रिमिनोलॉजिस्ट एड्रियन रायन अमेरिकी जेलों में कोल्ड-ब्लडेड मर्डर करने वालों पर स्टडी करने पहुंचे.

शुरुआत कैलिफोर्निया से हुई. ये राज्य इस तरह की हत्याओं के लिए बदनाम था. 40 से ज्यादा कैदियों की पीईटी (पोजिट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी) हुई, ताकि दिमाग के भीतर बायोकेमिकल फंक्शन को समझा जा सके. स्कैन में दिखा कि हत्यारों के ब्रेन के कई हिस्से सिकुड़े हुए हैं. खासकर प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स. बता दें कि ये मस्तिष्क का वो भाग है, जो सेल्फ-कंट्रोल सिखाता है. कातिल दिमाग रखने वालों में यही प्री-फ्रंटल काफी छोटा दिख रहा था.

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ये अब तक साफ नहीं हो सका कि ब्रेन के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में ये सिकुड़न आती क्यों है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जो जेनेटिक भी हैं, और कई बार सिर पर गहरी चोट लगना भी कारण बनता है. बचपन में एब्यूज झेलने वालों के साथ भी ये हो सकता है. अक्सर देखा गया है कि मुश्किलों वाली जिंदगी जी चुके, खासकर रिश्तों में उलझन देख चुके लोग अलग दिमाग रखते हैं. हालांकि वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि जरूरी नहीं कि सिकड़े हुए कॉर्टेक्स वाले लोग क्रिमिनल ही हों.

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