क्या है बाइबल बेल्ट, जो धर्मनिरपेक्ष अमेरिका में नीतियां तय करता रहा, जेडी वेंस की पार्टी से क्या संबंध?

अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस अपनी पत्नी उषा की धार्मिक पहचान पर टिप्पणी के बाद चर्चा में आ गए. इमिग्रेशन पर सवालों के जवाब देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एक दिन उनकी पत्नी भी ईसाई धर्म अपना लेगी. सार्वजनिक मंच से कन्वर्जन की बात काफी बड़ी है. वैसे अमेरिका धर्मनिरपेक्ष भले दिखे, लेकिन ईसाई लॉबी वहां की राजनीति में गहरा असर रखती है.

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अनुमान है कि जेडी वेंस राष्ट्रपति पद की दौड़ के लिए तैयार हो रहे हैं. (Photo- AP) अनुमान है कि जेडी वेंस राष्ट्रपति पद की दौड़ के लिए तैयार हो रहे हैं. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:14 AM IST

प्रवासियों पर सवाल-जवाब के दौरान अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने एक ऐसी बात कर दी कि चारों तरफ से घिर गए. उन्होंने अपनी पत्नी उषा, जो कि भारतीय मूल की हिंदू हैं, उनके धर्म परिवर्तन की ख्वाहिश जता दी. इसके बाद से खुद उनका देश उन्हें हिंदूफोबिक बताने लगा. ट्रोलिंग के बाद वेंस ने अपने बयान से पल्ला झाड़ने की कोशिश भी की, लेकिन तीर तो कमान से निकल चुका था. 

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इस बीच ये बात भी हो रही है कि धर्म को लेकर अमेरिका कितना ही उदार बने, लेकिन असर में ईसाई धर्म का वहां की राजनीति पर पक्का असर है. कई बाइबल बेल्ट राज्य हैं, जो पूरे देश को चलाते हैं. 

अमेरिका एक धर्मनिरपेक्ष देश है. इसके संविधान में साल 1791 में जोड़ा गया संशोधन कहता है कि कांग्रेस कोई ऐसा कानून नहीं बनाएगी जो किसी धर्म की स्थापना करे या किसी के धर्म पालन की स्वतंत्रता छीन ले. यानी राज्य और चर्च को अलग रखा गया. इसे सेपरेशन ऑफ चर्च एंड स्टेट कहा गया.

हालांकि असल में धर्म का असर न केवल मौजूद है, बल्कि काफी ज्यादा है. राजनीति भी इससे बची हुई नहीं. 

- अमेरिकी नेता अक्सर गॉड ब्लेस अमेरिका जैसे वाक्य बोलते हैं.

- राष्ट्रपति की शपथ भी बाइबल पर होती है. हालांकि कानूनन यह जरूरी नहीं. 

- डॉलर पर लिखा मिलेगा- इन गॉड वी ट्रस्ट. यह चीज पचास के दशक में अपनाई गई, जब अमेरिका शीतयुद्ध के समय खुद को कम्युनिस्ट रूस से अलग दिखाना चाहता था. 

- स्कूलों में भी प्रेयर अक्सर ईसाई धर्म से जुड़ी होती है. वैसे जरूरी नहीं कि अलग आस्था वाले इसमें शामिल हों लेकिन देखादेखी ये हो ही जाता है. 

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किस लॉबी की बात हो रही है

अमेरिका वैसे तो ईसाई बहुल देश है, लेकिन इसमें भी इवेंजेलिकल प्रोटेस्टेंट ईसाई सबसे ज्यादा एक्टिव हैं. ये बाकियों से कहीं ज्यादा कट्टर हैं, जो बाइबल पर यकीन करते हैं और चाहते हैं कि बाकी दुनिया भी यही करे.

जेडी वेंस और उषा की शादी ईसाई के साथ हिंदू रीति-रिवाजों से भी हुई थी. (Photo- Reuters)

वे पुराने तौर-तरीकों वाले हैं. जैसे LGBTQ से उनका खासा बैर है. वे ऐसी किसी भी बात को समर्थन नहीं देना चाहते. इसके अलावा वे अबॉर्शन के भी कट्टर विरोधी रहे. यही वजह है कि सबसे विकसित और ताकतवर देश होने के बावजूद यूएस में महिलाओं को ये अधिकार नहीं मिल सका. यहां तक कि चोरी-छिपे गर्भपात की वजह से वहां मौतें तक होती रहीं. 

कैसे जुड़े वे राजनीति से

इनकी संख्या करीब 6 से 7 करोड़ मानी जाती है, यानी देश की आबादी का लगभग चौथाई हिस्सा. इनमें भी ज्यादातर लोग दक्षिणी और मिडवेस्ट राज्यों में रहते हैं , जिन्हें बाइबल बेल्ट कहा जाता रहा. यहां रूढ़िवादी लाइफस्टाइल ज्यादा मानी जाती है. और यही वो राज्य हैं जहां से रिपब्लिकन्स को सबसे ज्यादा वोट मिलता रहा. दरअसल, अस्सी के दशक में एवेंजेलिकल ईसाई सीधे तौर पर रिपब्लिकन पार्टी से जुड़ गए. 

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एवेंजेलिकल्स के रिपब्लिकन दल से जुड़ने के बाद अमेरिकी राजनीति में धर्म का असर तेजी से बढ़ा. 1980 के दशक में रोनाल्ड रीगन के समय से इस गठजोड़ ने क्रिश्चियन राइट को एक मजबूत राजनीतिक ताकत बना दिया.

इनके साथ मिलकर रिपब्लिकन ने खुद को परिवार और नैतिकता की पार्टी के रूप में पेश किया. समलैंगिक शादियां और तलाक जैसी बातों पर कट्टरता हावी होने लगी. ऐसे लोगों या सोच को डीमोटिवेट किया जाने लगा. इसमें इजरायल का सपोर्ट भी शामिल है ताकि अरब देशों पर नजर रखी जा सके और मुस्लिम धर्म का प्रसार न हो. प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में 23 प्रतिशत एडल्ट खुद को एवेंजेलिकल मानते हैं. 

रिपब्लिकन पार्टी ईसाई कट्टरपंथ से जुड़ी हुई है और नैतिक मूल्यों की बात करती है. (Photo- Pexels)

जैसे-जैसे इन ईसाई कट्टरपंथियों का राजनीति में असर बढ़ा, वैसे-वैसे आलोचना भी होने लगी. डेमोक्रेट्स का मानना है कि इनकी वजह से देश में धार्मिक कट्टरपंथ हावी हो चुका. दूसरी तरफ, एवेंजेलिकल्स को यकीन है कि उनकी वजह से देश में नैतिकता और सच्चाई बची हुई है, वरना परिवार टूटते और धर्म कमजोर पड़ता जाता. 

क्यों रखते हैं राजनीति में असर

- ये बड़ी आबादी और संगठित वोटर हैं, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

- इनके चर्च और मिशनरी संगठन बहुत संगठित हैं.

- मीडिया और पॉलिसी मेकिंग में भी एवेंजेलिकल्स काफी रसूख रखते हैं. 

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क्या हिंदूफोबिया वाकई बढ़ रहा 

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के अनुसार, अमेरिका की लगभग एक फीसदी आबादी ही हिंदू धर्म से जुड़ी है, इस लिहाज से देखें तो धार्मिक हमले ज्यादा दिख रहे हैं, फिर चाहे भारत से गए प्रवासियों का विरोध हो, या फिर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना. 

फेडरल ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन ने साल 2015 से हेट क्राइम दर्ज करना शुरू किया. अकेले उसी साल हिंदुओं से मारपीट के अलावा हिंदू धार्मिक झंडों को जलाने और मंदिरों में तोड़फोड़ करने जैसी घटनाएं दिखीं. इसके बाद से हेट क्राइम लगातार बढ़ता दिखा. 

क्या हैं बड़ी वजहें

9/11 हमले के बाद एक खास पैटर्न दिखा. चूंकि एशियाई चेहरे-मोहरे लगभग एक से होते हैं. ऐसे में ट्विन टावर के पीड़ित परिवार भारतीय आबादी से भी नाराज रहने लगे. अब हालांकि वजहें कुछ और भी हैं. हिंदू आबादी कम सही, लेकिन वॉशिंगटन में कमाल कर रही है. वे सिलिकॉन वैली से लेकर बिजनेस और राजनीति में भी पकड़ रखने लगे हैं. इससे युवा अमेरिकी नाराज हैं. उन्हें लगता है कि भारतीय, खासकर हिंदू उनकी नौकरियां ले रहे हैं. ये शुद्ध कंपीटिशन है, जो हेट क्राइम में बदलता दिख रहा है.

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