इजरायल और ईरान के बीच युद्ध जारी है. दोनों ही देश एक-दूसरे पर हमलावर हैं. ये युद्ध किस स्थिति और दिशा में जाकर रुकेगा अभी इसके कोई आसार नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इसी बीच सोशल प्लेटफॉर्म पर ईरान की सांस्कृतिक विरासत, सभ्यता और प्राचीनता भी चर्चा का विषय बनी हुई है.
विश्व की प्राचीन सभ्यताओं मे से एक ईरान की सभ्यता
मोटे-मोटे तौर पर निगाह डालें तो ईरान की सभ्यता भी, विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं की तरह ही, पुरानी और विरासत से भरी रही है. इस भौगोलिक क्षेत्र की सभ्यता, दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रेट साइरस ने हखामनी साम्राज्य की स्थापना की थी जो आगे चलकर इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक बना. चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सिकंदर ने इस साम्राज्य को जीत लिया और फिर यूनानी राज के बाद जमीन के इस टुकड़े पर पहलवी और फिर बाद में सासानी साम्राज्यों का शासन भी रहा. अरब मुसलमानों ने सातवीं शताब्दी ईस्वी में इस क्षेत्र को जीता और फिर तब से ही ईरान के इस्लामीकरण की शुरुआत हुई.
ईरान 1979 में बना इस्लामी गणराज्य
आगे चलकर यह इस्लामी संस्कृति और शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन गया. इसकी कला, साहित्य, दर्शन और वास्तुकला इस्लामी स्वर्ण युग के दौरान इस्लामी दुनिया में और उससे आगे फैल गई. तुर्क और मंगोल शासन के बाद पंद्रहवीं शताब्दी में ईरान फिर से एकजुट हुआ. उन्नीसवीं सदी तक इसने अपनी काफी जमीन खो दी थी. 1953 के तख्तापलट ने निरंकुश शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी को और ताकतवर बना दिया जिसने दूरगामी सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की. इस्लामी क्रांति के बाद ईरान को 1979 में इस्लामी गणराज्य घोषित किया गया था.
भारतीय संस्कृति और ईरानी सभ्यता की जड़ें एक
ये तो रही ईरान के इस्लामी गणराज्य बनने की संक्षिप्त कहानी, लेकिन ईरान की संस्कृति की असल जड़ें इसके प्राचीन इतिहास में दबी हैं, जिसकी मिट्टी की रंगत, बहुत कुछ भारत की प्राचीन सभ्यता वाली जमीन से मेल खाती हैं. इस बारे में, प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व के शोधार्थी डॉ. अंकित जायसवाल काफी कुछ बताते हैं. वह कहते हैं कि, 'अतिप्राचीन मानी जाने वाली दो श्रुत रचनाएं जैसे कि ऋग्वेद और अवेस्ता की समानताओं पर गौर किया जाए तो ईरानी और भारतीय संस्कृतियों का मूल एक ही साबित होगा.
मिलते हैं कई ऐतिहासिक साक्ष्य
इसकी पुष्टि कई ऐतिहासिक साक्ष्यों से होती है. 1400 ईसा पूर्व के बोगेजकोइ शिलालेखों पर ही नजर डालें तो, यहां हिट्टाटाइट राजा और मितन्नी के राजा का जिक्र मिलता है. इनकी संधियों की रक्षा के लिए कुछ देवताओं को साक्षी माना गया है जिनके नाम वैदिक देवताओं के नाम के ही समान हैं. जैसे- मित्र, वरुण, इंद्र और नास्तय. यह तुर्की और ईरानी क्षेत्रों की बात है. अरब तैल-एल-अमर्रना में मिट्टी के टैबलेट्स पर भी ऐसा ही कुछ लिखा मिलता है. 700 ईसा पूर्व असीरिया में 'अस्सर-मजस' देवता का नाम मिलता है जो अवेस्तिक 'अहुर' से अधिक संस्कृत के 'असुर' के निकट है. ये सब प्राचीन इराक और ईरान क्षेत्रों से ही सम्बंधित हैं.
ऐतिहासिक दस्तावेज यह भी बताते हैं कि, 3000 ईसा पूर्व में सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा) और फारस (ईलाम) के बीच व्यापारिक रिश्ते थे. डीएनए सबूत बताते हैं कि ईरान के जेग्रोस घाटी के लोगों के साथ मिलकर हमारे पुरखों ने हड़प्पा जैसी तत्कालीन उत्कृष्ट सभ्यता को विकसित किया था.
ईरान में एकेश्वरवाद का जन्म
एक बार फिर ईरान की प्राचीन संस्कृति और पूजा-पद्धति की चलें तो इसकी सबसे महत्वपूर्ण जानकारी अवेस्ता से मिलती है, जिसके लिए कहा जा चुका है कि यह ऋग्वेद से समानता रखता है, लिहाजा दोनों ही ग्रंथों में एक जैसी विशेषता वाले पर थोड़े बहुत अलग-अलग नाम वाले देवताओं का जिक्र है. ईरान के बारे में जानकारों की आम राय है कि ईसा से एक-डेढ़ हज़ार साल पहले यहां के रहने वाले लोग भारत की तरह ही कई देवताओं वाले धर्म को मानते थे.
लेकिन बाद में पारसियों के जरथुष्ट्र (मैसेंजर ऑफ गॉड) ने इस चलन को बदला. उन्होंने पहली बार एकेश्वरवाद को जन्म दिया. जरथुष्ट्र ने कहा कि ईश्वर एक है. उन्होंने लोगों को समझाया कि कई देवी-देवताओं को पूजने के बजाय वो सिर्फ़ एक भगवान 'अहुरा माज़दा' की इबादत करें. जिन्हें बुद्धि का देवता माना जाता है. ये हिंदू धर्म के वरुण देवता से काफ़ी मिलते जुलते हैं. जरथुष्ट्र ने दुनिया में पहली बार एकेश्वरवाद की शुरुआत की.
अहुरा मज्दा, प्राचीन ईरान के सर्वश्रेष्ठ देवता
प्राचीन ईरानी धर्म में अहुरा मज़्दा (जिसे बुद्धिमान स्वामी या देवता कहा गया है) वह मुख्य देवता थे. दारा (एक महान ईरानी शासक), ज़ेरक्सेस और ज़ोरोआस्टर के धर्म में उन्हें सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाता था. यही विश्व के रचयिता और ब्रह्मांडीय व सामाजिक व्यवस्था, जिसे अर्ता कहते हैं, को बनाए रखने वाले माने जाते थे. दारा के बनवाए शिलालेखों में दर्ज है कि 'उनकी सत्ता का स्रोत अहुरा मज़्दा हैं' वहीं जोरोआस्टर प्राचीन Indo-European काव्यात्मक शैली में सवाल पूछते हैं-
'अर्ता का मूल पिता कौन है? सूर्य और तारों के मार्ग किसने बनाए? चंद्रमा को बढ़ने-घटने वाला कौन है? पृथ्वी को नीचे से सहारा देने और आकाश को गिरने से रोकने वाला कौन है? हवा और बादलों को दो घोड़ों से जोड़ने वाला कौन है? भक्ति और प्रभुत्व को एक साथ किसने बनाया? पिता के प्रति सम्मान करने वाला पुत्र किसने बनाया?'
ध्यान देने पर ये काव्यात्मक सवाल ऋग्वेद के नासदीय सूक्त से काफी हद तक मेल खाते हैं. इसकी बानगी देखिए...
नासदासींनो सदासित्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् |
किमाफोरिवः कुह कस्य शर्मन्नंभः किमासीद्घनं गभीरम् ॥ ॥
न मृत्युरासीदामृतं न तारहि न रात्रिया अहं आसीत्प्रकेतः |
अनिदावतं स्वध्या तदेकं तस्माधान्यान्न परः किंचनस ॥2॥
इसके हिंदी रूपांतरण पर गौर करें...
सृष्टि से पहले अस्तित्व नहीं था, सत्य भी नही,
वायु भी नहीं थी, अंतरिक्ष भी नहीं था
यह कहां था, कहां छिपा था, क्या किसी ने ढका था?
किसके संरक्षण में था? तब क्या कोई ब्रह्मांडीय तरल था, जिसकी गहराई अथाह थी?
तब न तो मृत्यु थी, न अमरता, और न ही तब रात और दिन की मशाल थी. तब वह एक था, और कोई दूसरा नहीं था.
अवेस्ता, जिसे जिंद अवेस्ता कहा जाता है, उसमें जो भी पाठ शामिल है, उन्हें 'गाथा' में बांटा गया है. गाथा का वही और वैसा ही अर्थ है जो वैदिक साहित्य में गाथा का है. ये स्वर के साथ पढ़े जाने वाले और गाए जाने वाले मंत्रों की ही तरह हैं. इन गाथाओं की संख्या पांच हैं जिनमें 17 मंत्र शामिल हैं और फिर इनकी व्याख्या है. इन गाथाओं के छन्द त्रिष्टुप-जगति छन्दों पर आधारित हैं. वेदों में भी त्रिष्टुप छंद की मौजूदगी दर्ज है, जिनके लंबे-लंबे मंत्रों को गाया नहीं जा सकता, लेकिन एक स्वर में पढ़ा जाता है.
(1) अहुनवैती गाथा
(2) उष्टावैती गाथा
(3) स्पेन्ता मैन्यु गाथा
(4) वोहु क्षथ्र गाथा
(5) वाहिष्टो इष्टि गाथा
अवेस्ता की गाथा में अहुर मज्दा की स्तुति में शामिल एक कथन देखिए...
तेम् ने यस्ताईस आर्म तो ईस् मिमघ्जो
ये आन्मेनी यज्दाओ स्रावि अहूरो
यानी हम केवल उसी को पूजते हैं जो अपने धर्म के कार्यों से और अहुरमज्द के नाम से जाना जाता है. जरथुस्त्र ने स्पष्ट शब्दों में ईश्वर के ऊपर अपनी दृढ़ आस्था इस गाथा में प्रकट की है.
नो इत् मोइ वास्ता क्षमत् अन्या
इसका स्पष्ट अर्थ है कि उनके अलावा मेरा अन्य कोई रक्षक नहीं है. इतना ही नहीं, इसी गाथा में आगे चलकर वे कहते हैं. मजदाओ सखारे मइरी श्तो यानी कि केवल मज़्दा ही उपासना के योग्य हैं. इनके अतिरिक्त कोई भी अन्य देवता उपासना के योग्य नहीं है. अहुरमज़्द के साथ उनके छह अन्य रूपों की भी कल्पना इन गाथाओं में की गई है. यह सनातनी परंपरा के अवतार वाद से मिलता-जुलता लगता है, लेकिन उनका कॉन्सेप्ट अलग है.
मिथ्रा, सूर्य से संबंधित देवता
अहुरा मज़्दा के साथ, मिथ्रा प्राचीन ईरानी देवताओं में सबसे महत्वपूर्ण देवता थे और मान्यता में लगभग अहुरा मज्दा के बराबर ही थे. अचमेनिद शिलालेखों में, मिथ्रा और अनाहिता ही एकमात्र देवता हैं जिनका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. हालांकि प्राचीन ईरानी देवताओं में एक अलग सूर्य देवता था, जिसे हवर खशैता कहा जाता था, अवेस्ता में वर्णित पूर्वी ईरानी परंपराओं में, मिथ्रा का सूर्य से संबंध दिखता है, खासकर सूर्योदय की पहली किरणों के साथ, जब वे अपने रथ में आगे बढ़ते हैं. पश्चिमी ईरानी परंपरा में, मिथ्रा पूरी तरह से सूर्य से जुड़े थे, और उनका नाम 'सूर्य' के लिए सामान्य शब्द बन गया.
वैदिक मंत्रों में भी सूर्य को कई स्थानों 'मित्र' देव कहकर पुकारा गया है और उनके लिए एक मंत्र भी है, 'ओम मित्राय नमः'. हालांकि प्राचीन ईरान में सूर्य से संबंध होने के बावजूद, मिथ्रा मुख्य रूप से 'अनुबंध, वचन, संधि' के साक्ष्य देवता थे. वे एक आकाशीय देवता के रूप में लोगों के बीच हुए सभी गंभीर समझौतों की निगरानी करते थे. ऐसे समझौतों को तोड़ने की सजा बहुत कठोर थी. वचन तोड़ने वाले (मिथ्रा-द्रुग) के लिए मिथ्रा को न सोने वाला, 1,000 कान और 10,000 आंखों वाला बताया गया है. मिथ्रा वह देवता हैं जिनके नाम पर मिथ्रावाद धर्म का नाम पड़ा, जो एक समय रोमन साम्राज्य में लोकप्रिय था.
विरथाघ्ना... वैदिक इंद्र के समान बलशाली देवता
इसी तरह एक और देवता विरथाघ्ना का जिक्र भी प्राचीन ईरान में मिलता है. शक्तिशाली देवता, जो युद्ध प्रिय माने जाते हैं और उन्हें सभी बाधाओं को दूर करने वाला, राजा देवता भी माना जाता है. यह विशेषताएं वैदिक देवता इंद्र के समकक्ष हैं, और वेदों में इंद्र को वृत्त हंता (वृत्तासुर) को मारने वाला बताया गया है. विरथाघ्ना का उच्चारण कुछ-कुछ वृत्तासुर से संबंधित लगता है. राजत्व और विजय प्रदान करने के संबंध में, उन्हें बर-ख्वर्नः की उपाधि मिली, जिसका अर्थ है 'गौरव पाने वाला'.
विकास पोरवाल