वाइट हाउस में इन दिनों भारी हलचल मची हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार किसी न किसी राष्ट्र प्रमुख से मिल रहे हैं और कुछ ऐसा कह रहे हैं जो चर्चा में आ जाए. हाल में वे दक्षिण अफ्रीका के लीडर सिरिल रामाफोस से मिले. ये मुलाकात गर्मजोशी की बजाए आरोपों का सिलसिला बन गई. ट्रंप के मुताबिक, अफ्रीका में श्वेत किसानों का नरसंहार हो रहा है ताकि रंगभेद का पुराना हिसाब-किताब बराबर हो सके.
क्या होता रहा था अफ्रीका में
कभी वहां सिर्फ रंग तय करता था कि लोग बस या स्कूल में कहां बैठेगें, उन्हें कैसे नौकरी मिलेगी, या कहां घर होगा. गहरे रंग वाले लोग न वोट दे सकते थे, न श्वेतों के रेस्त्रां में जा सकते थे. यहां तक कि उनके चर्च, अस्पताल और समुद्र तट भी अलग हुआ करते. वे अलग बस्तियों में रहा करते और मेन शहर, जहां श्वेत रहते हैं, वहां आने के लिए उन्हें पास लेना होता.
चालीस के दशक से बढ़ा भेदभाव
ये बंदोबस्त पहले से नहीं था, बल्कि साल 1948 में दिखा. दरअसल उसी साल एक डच मूल के श्वेत लोगों का दल सत्ता में आया. पार्टी ने आते ही अलगाव शुरू कर दिया. रंगभेद पहले भी हल्का-फुल्का था, लेकिन इस बार उसे बाकायदा कानून बना दिया गया. यहां बता दें कि अफ्रीका में वैसे तो अश्वेतों मेजोरिटी रही, लेकिन 17वीं सदी में नीदरलैंड्स से श्वेतों ने आने के बाद केप टाउन पर कब्जा कर लिया और फिर सारे अधिकार श्वेत समुदाय के पास आने लगे.
वक्त बदला. नेक्सन मंडेला स्टूडेंट्स राजनीति से होते हुए एक्टिव राजनीति में आए. रंगभेद खत्म करना उनका अकेला एजेंडा था. नतीजा ये हुआ कि उन्हें जेल हो गई, वो भी एकाध साल की नहीं, लगभग 3 दशक की. नब्बे के दशक में जेल से बाहर आने के बाद अफ्रीका में पहला लोकतांत्रिक चुनाव हुआ और मंडेला राष्ट्रपति बने. रंगभेद कानून से हटा दिया गया, हालांकि ये चलन इतना गहरे जम चुका था कि हटते-हटते काफी समय लग गया.
अब एक नया डर दिख रहा है. लोग रिवर्स रंगभेद की शिकायतें कर रहे हैं. श्वेत लोग अब दक्षिण अफ्रीका में 10 फीसदी से भी कम हैं. उन्हें लगता है कि अब मेजोरिटी उनपर पलटवार करेगी.
ये डर तीन वजहों से बढ़ा
- कई सरकारी नीतियां बनीं जो ब्लैक इकनॉमिक एमपावरमेंट की बात करती हैं यानी अश्वेतों को प्राथमिकता देना. इससे श्वेत समुदाय खुद को छूटा हुआ महसूस करने लगा.
- कई राजनीतिक दल कह रहे हैं कि जिनके पास ज्यादा जमीनें हैं, उन्हें मुआवजा दिए बगैर उनकी जमीन ले ली जाएगी. श्वेत किसान इसे लेकर घबराए हुए हैं.
- दक्षिण अफ्रीका में हर साल सैकड़ों किसान मारे जाते हैं. इसमें कुछ संख्या श्वेत फार्मर्स की भी है. इसे लेकर सवाल होते रहे कि क्या ये हिंसा नक्सीय है.
किसानों पर क्यों हो रही हिंसा
दक्षिण अफ्रीका में हिंसा की दर वैसे भी काफी ज्यादा रही. इसमें बाकी समुदायों के साथ किसान भी निशाना बनते रहे. श्वेत किसान भी इससे बच नहीं सके. और उनके साथ दोहरा खतरा है. मतलब, मूल आबादी जानती है कि ये लोग बाहरी थे, और हमारी जमीनें हड़पकर हमसे ज्यादा मजबूत हो गए. अब बराबरी आने के बाद ये गुस्सा भी कहीं-कहीं निकल रहा है. एक कारण ये भी है कि खेत अक्सर आबादी से दूर होते हैं. ऐसे में लूटपाट के मकसद से आए लोग भी किसानों पर हिंसा करते हैं, जिनमें अश्वेत या श्वेत कोई भी हो सकता है. फार्महाउस चूंकि सुनसान जगहों पर होते हैं, तो पुलिस भी जल्दी नहीं पहुंच पाती. लेकिन डेटा कहते हैं कि अश्वेत किसानों की मौत, श्वेत से कहीं ज्यादा रही.
राजनीतिक दलों और चरमपंथी समूहों ने इसे फार्म मर्डर्स के तौर पर दिखाना शुरू कर दिया. नैरेटिव रचा गया कि अफ्रीका में रिवर्स हिंसा शुरू हो चुकी है, और वहां रह रहे श्वेत अब सुरक्षित नहीं. फार्म मर्डर को श्वेत नरसंहार की तरह दिखाने में अफ्रीका के एक्सट्रीमिस्ट समूह तो शामिल थे ही, पश्चिम ने भी ये आइडिया लपक लिया. डोनाल्ट ट्रंप की ही कहें तो उन्होंने पहले टर्म में भी फार्म मर्डर की बात की थी और कहा था कि ये सिर्फ श्वेत फार्मर्स के साथ हो रहा है.
अफ्रीकी सरकार क्या कहती है
ट्रंप के हालिया आरोप का विरोध करते हुए राष्ट्रपति रामाफोसा ने कहा कि अश्वेत लोग, वाइट किसानों की हत्या नहीं कर रहे हैं. वहां मौजूद मानवाधिकार संस्थाएं, जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी माना कि फार्म मर्डर क्राइम है, न कि नस्लीय हिंसा.
फिर ये नैरेटिव गढ़ा क्यों गया
- वाइट सुप्रीमिस्ट अब भी काफी हैं, जो चाहते हैं कि पुराना बंदोबस्त फिर लौट आए. वे सीधे-सीधे तो ऐसा कर नहीं सकते, लिहाजा विक्टिमहुड की आड़ ली जा रही है.
- अफ्रीकी सरकार लैंड रिफॉर्म की बात कर रही है, जिसमें ज्यादा जमीनें लेकर बांटी जाएंगी. श्वेत मालिक इसे लेकर परेशान हैं.
- बहुत से वाइट फार्मर विदेशों में बसना चाहते हैं लेकिन चूंकि उनके पास इसके लिए खास आधार नहीं, तो खुद को खतरे में दिखाकर वे जमीन तैयार कर रहे हैं.
ट्रंप क्यों दखल दे रहे हैं
उनके लिए ये नैरेटिव काफी फायदेमंद हो सकता है. उन्होंने पहले भी वाइट सुप्रीमेसी को हवा दी थी और कई गुट उनके सपोर्ट में आए थे. मेक अमेरिका ग्रेट अगेन में कहीं न कहीं ये भाव भी है कि अमेरिका श्वेत लोगों का है. अफ्रीकी की मिसाल देकर वे श्वेत वोटरों को अपने साथ बनाए रख सकते हैं. वे यह कह सकते हैं कि देखो, जब सत्ता अश्वेतों के पास जाती है तो कैसे खतरे आ जाते हैं! ट्रंप समर्थक खुद को शिकार महसूस करेंगे और लामबंद हो जाएंगे. फार्म मर्डर्स के हवाले से अमेरिकी प्रशासन अश्वेत शरणार्थियों को रिजेक्ट कर सकता है.
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