सूप किचन से लेकर झुग्गियां, जब महामंदी ने बदल दिया था अमेरिका का चेहरा, क्यों इसे कमला हैरिस से जोड़ रहे डोनाल्ड ट्रंप?

अमेरिका में राष्ट्रपति पद की रेस में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है. मतदान से ऐन पहले दोनों ने वोटरों को अपने पाले में लाने पर पूरा जोर लगा दिया. इसी दौरान ट्रंप ने दावा किया कि हैरिस आईं तो देश में कुछ ही दिनों के भीतर साल 1929 का इकनॉमिक डिप्रेशन लौट आएगा. क्या हुआ था तब, जिसे ट्रंप ने ट्रम्प कार्ड की तरह इस्तेमाल किया?

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कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियां बिल्कुल अलग हैं. (Photo- AP) कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियां बिल्कुल अलग हैं. (Photo- AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 05 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 11:45 AM IST

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को कुछ ही घंटे बाकी हैं. आखिर-आखिर तक डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस दोनों ही रैलियां करते रहे. इस बीच ट्रंप ने एक बड़ा बयान देते हुए आशंका जताई कि हैरिस सत्ता में आईं तो साल 1929 की महामंदी छा जाएगी, वहीं अपने ऊपर दांव लगाने पर उन्होंने बेस्ट नौकरियों और देश के सबसे अच्छे आर्थिक दौर का वादा किया. अक्टूबर 1929 में आई मंदी इतनी भयंकर थी कि बहुत से बैंकों ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था.  सारी पूंजी गंवा चुके अमीर अपने घर छोड़कर झुग्गियों में रहने लगे थे, जिन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति का मजाक उड़ाते हुए हूवरविले कहा गया. 

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महामंदी की कहानी के तार जुड़े हुए हैं पहले वर्ल्ड वॉर से. युद्ध खत्म होने के बाद तकलीफों से उबरे लोग जिंदगी को नए सिरे से जीने में जुट गए. वे मन भरकर खरीदारी करते, सैर-सपाटा करते. इसी दौर में लोन का चलन बढ़ा. लोग कर्ज लेकर घर बनाने लगे. बहुत से अमेरिकियों ने लोन लेकर शेयर बाजार में पैसे लगाना शुरू कर दिया. ये खुशहाली का दौर था, लेकिन धुंध में कुछ और ही छिपा हुआ था. 

मंगलवार 29 अक्टूबर को शेयर बाजार में भारी गिरावट आई. ये इतनी जबर्दस्त थी कि इस दिन को ही ब्लैक ट्यूसडे कह दिया गया. स्टॉक्स के दाम अचानक गिरने से लाखों लोग अपनी तमाम पूंजी लुटा बैठे. बाजार क्रैश होने के बाद लोग अपने पैसे बैंकों से निकालने लगे, जिससे बैंक बंद होने लगे. ज्यादातर बैंकों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे सारे बेनिफिशियरीज को उनके पैसे लौटा सकें. लिहाजा बैंकों ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. इससे लोगों की जमा राशि भी चली गई. 

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इसी समय एक चीज और हुई. आर्थिक खुशहाली को देखते हुए अमेरिका में धड़ाधड़ कारखाने लग गए थे और बहुत सी चीजों का उत्पादन होने लगा था. हालांकि लोगों के पास अब खाने के पैसे नहीं थे, तो वे लग्जरी उत्पाद कहां से खरीदते. सप्लाई और डिमांड की खाई इतनी चौड़ी थी कि कारखाने डूब गए. कुल मिलाकर अमीर-गरीब दोनों ही एक स्तर पर आ चुके थे.

तीन-कोर्स मील लेने वाले देश में तब पहली बार सूप-किचन कंसेप्ट आया. लाखों परिवारों के पास एक वक्त खाने को भी पैसे नहीं थे. तब कई धार्मिक संस्थाओं और कुछ बचे हुए अमीरों ने सूप किचन शुरू करवाया. इसमें लोगों को मुफ्त में सूप, ब्रेड और कभी-कभार कॉफी भी दी जाती थी. लेकिन ज्यादातर चीजें वही थीं जो सस्ती होतीं और जिसमें कम खर्च में ज्यादा लोगों का पेट भर सके. मांस से बनी डिशेज तब काफी कम मिल रही थीं. कई जगहों पर दावा है कि इसी दौरान वहां वेजिटेरियन लोग बढ़े जो मजबूरी खत्म होने के बाद भी शाकाहार पर ही टिके रहे. 

न्यूयॉर्क, सिएटल, शिकागो, और सेंट लुइस जैसे बड़े शहरों में भी काफी कुछ बदला. वहां खाली पार्कों की जगह झुग्गियां खड़ी होने लगीं. ये झुग्गियां रातोरात बनती थीं. हुआ ये था कि कर्ज लेकर घर खरीद चुके लोग अब सड़कों पर थे. ऐसे में बड़ी आबादी ने खाली पड़ी जमीनों पर कब्जा करना शुरू किया और आसपास जो भी मिले, उसी से घर बनाने लगे, जैसे लकड़ी, टिन, कार्डबोर्ड और पन्नियां. इन बस्तियों को हूवरविले नाम दिया गया जो उस समय के राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के नाम पर था. लोगों का मानना था कि महामंदी के हालात बनने में हूवर की पॉलिसीज का भी योगदान था. उनपर गुस्सा जताने के लिए लोगों ने इन बस्तियों का नाम ही उनके सरनेम पर रख दिया. 

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ग्रेट डिप्रेशन के दौरान खुदकुशी की दर भी बढ़ी और सालों तक बढ़ती ही चली गई. साल 1929 में लाख में 18 लोग आत्महत्या कर रहे थे, जो अगले दो सालों में 22 प्रति लाख हो गई. बता दें कि साल 1932 को ग्रेट इकनॉमिक डिप्रेशन का सबसे बुरा दौर माना जाता है. इस दौरान हजारों लोगों ने सुसाइड किया होगा, लेकिन इसके आंकड़े अलग-अलग स्त्रोतों में अलग-अलग हैं. 

दुनिया पर क्या असर हुआ महामंदी का? 
अमेरिकी कंपनियां दुनिया में हर जगह असर रखती थीं. अमेरिका में बैंक धराशायी हुए तो यूरोप में भी बैंक एक-एक कर तबाह होने लगे. पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी का असर देखने को मिला. यूरोप, एशिया और अन्य महाद्वीपों में भी उद्योग धंधे बंद होने लगे. लोगों की आय में कमी आई. और कई देशों में बेरोजगारी दर 33% तक पहुंच गई. इस मंदी के कारण 1929 से 1932 के दौरान वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में 45% की भारी गिरावट आई और अगले एक दशक तक दुनिया के कई देशों को माल सप्लाई के संकट से जूझना पड़ा.

तत्कालीन न्यूयॉर्क गवर्नर फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने महामंदी को खत्म करने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. बाद में राष्ट्रपति चुनकर आने के बाद ये पॉलिसीज देश के स्तर पर लागू हुईं. इसमें सोशल सिक्योरिटी देना भी शामिल था. इसके अलावा बड़े स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम शुरू हुआ, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलने लगा. धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आ सकी. लेकिन अब भी ग्रेट इकनॉमिक डिप्रेशन का खौफ अमेरिका पर से पूरी तरह खत्म नहीं हो सका. 

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ट्रंप और कमला हैरिस की आर्थिक नीति क्या है
इस बार साल 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में भी डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच आर्थिक नीतियों के अंतर की खूब चर्चा हो रही है. रिपब्लिकन ट्रंप अमेरिकी कंपनियों को प्राथमिकता देने, चीन के साथ व्यापार युद्ध छेड़ने और अमेरिकी तेल और गैस कंपनियों के वैश्विक कारोबार को प्रोत्साहन देने के जहां पक्षधर हैं वहीं डेमोक्रेट कमला हैरिस मध्य वर्ग और श्रमिक वर्ग को प्राथमिकता देने की पक्षधर हैं. कमला हैरिस कारपोरेट दर बढ़ाने और अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाने की भी पक्षधर हैं.

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