केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान के एक बयान पर सियासत गरमा गई है. उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की बात खुलकर कही. रविवार को हुए अंतरराष्ट्रीय जाट संसद में बालियान ने कहा, 'पश्चिमी यूपी को अलग बनना चाहिए. मेरठ राजधानी होनी चाहिए. जिस दिन पश्चिमी यूपी अलग बन गया, उस दिन ये इस देश का सबसे अच्छा और सबसे समृद्ध प्रदेश होगा.'
बालियान की इस बात का कुछ समर्थन कर रहे हैं तो कुछ विरोध में. खुद उनकी पार्टी बीजेपी में इसका विरोध होने लगा है. बीजेपी नेता संगीत सोम का कहना है कि पश्चिमी यूपी अलग राज्य बना तो ये 'मिनी पाकिस्तान' बन जाएगा.
संगीत सोम ने कहा, 'ऐसे बयान देने से पहले सोच लेना चाहिए. पश्चिमी यूपी बनने का मतलब है- मिनी पाकिस्तान. एक वर्ग की आबादी यहां बढ़ रही है. कई जगह तो 70 से 80 फीसदी है. क्या आप चाहते हैं कि हिंदू माइनॉरिटी में रहे?'
संगीत सोम ही नहीं, यूपी सरकार में मंत्री संजय निषाद का कहना है कि अगर पश्चिमी यूपी को अलग किया गया तो ये मिनी पाकिस्तान बन जाएगा, क्योंकि वहां के मुसलमान पाकिस्तान की गाते हैं.
वहीं, सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर इसके समर्थन में हैं. उनका कहना है कि ये बहुत बड़ा राज्य है और इसको चार हिस्सों में बांट देना चाहिए.
इतना बवाल होने के बाद भी संजीव बालियान अपनी बात पर अड़े हुए हैं. बालियान ने कहा, 'मैंने वही कहा जो सब चाहते हैं. पश्चिमी यूपी अलग बनता है तो यहां एम्स और आईआईटी जैसे संस्थान खुलेंगे. पश्चिमी यूपी अलग राज्य बनेगा तो यहां सुविधाएं बढ़ेंगी.'
हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश के बंटवारे की बात हो रही है. साल 2000 में उत्तर प्रदेश का एक बार बंटवारा हो भी चुका है. उससे अलग होकर उत्तराखंड बना था.
नेहरू-अंबेडकर भी थे बंटवारे के पक्ष में
1947 में आजादी मिलने के बाद राज्यों के बंटवारे पर काम शुरू हुआ. इसके लिए कई आयोग बने. पहले बना कृष्ण धर आयोग. फिर 'जेवीपी आयोग', जिसमें जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया थे. और आखिर में बना राज्य पुनर्गठन आयोग.
राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन 1953 में हुआ. लेकिन इससे पहले ही पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के बंटवारे की वकालत की थी.
नेहरू ने सात जुलाई 1952 को लोकसभा में कहा था, 'मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात से सहमति रखता हूं कि उत्तर प्रदेश का बंटवारा किया जाना चाहिए. इसे चार राज्यों में बांटा जा सकता है. हालांकि, मुझे संदेह है कि कुछ साथी मेरे विचार को शायद ही पसंद करेंगे. हो सकता है कि मुझसे उलट राय रखने वाले साथी इसके लिए दूसरे राज्यों के हिस्सों को शामिल करने की बात कहें.'
1955 में आई किताब 'थॉट्स एंड लिंग्विस्टिक स्टेट्स' में डॉ. बीआर अंबेडकर भाषाई आधार पर राज्यों के बंटवारे पर बात रखी थी. इसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटने की बात कही थी.
अंबेडकर ने तीन हिस्सों में बांटने के लिए तीन आधार दिए थे. पहला- इससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी. दूसरा- राजव्यवस्था पर इतने बड़े राज्य के असमान प्रभाव को कम किया जा सकेगा. और तीसरा- अल्पसंख्यकों की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी.
... लेकिन ऐसा नहीं हुआ
1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग की सिफारिश पर 14 राज्य और छह केंद्र शासित प्रदेश बने. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के बंटवारे की सिफारिश नहीं की.
आयोग के एक सदस्य केएम पणिक्कर ने इस पर असहमति जताते हुए कुछ नोट दिए. उन्होंने उत्तर प्रदेश के इतने बड़े आकार के कारण पैदा होने वाले असंतुलन को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने अपनी असहमति के जरिए संकेत दिए थे कि संविधान की सबसे बड़ी और मूलभूत कमजोरी किसी एक राज्य विशेष और बाकी राज्यों के बीच 'व्यापक असमानता' का होना है.
पणिक्कर ने उत्तर प्रदेश के अलावा आगरा नाम से नया राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, पुनर्गठन आयोग के दूसरे सदस्य फजल अली और एचएन कुंजरू ने उनके प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया.
मायावती का यूपी को बांटने का प्रस्ताव
2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन सीएम और बीएसपी चीफ मायावती ने यूपी के बंटवारे का प्रस्ताव पास किया.
21 नवंबर 2011 को यूपी विधानसभा में मायावती सरकार ने बिना चर्चा के ये प्रस्ताव पास करा लिया. ये उत्तर प्रदेश को चार राज्यों- पूर्वांचल (पूर्वी यूपी), पश्चिमी प्रदेश (पश्चिमी यूपी), बुंदेलखंड (दक्षिणी यूपी) और अवध प्रदेश (मध्य यूपी) में बांटने का प्रस्ताव था.
हालांकि, केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने मायावती सरकार के इस प्रस्ताव को लौटा दिया था. केंद्र ने तब कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण भी मांगे थे. मसलन, नए राज्यों की सीमाएं कैसी होंगी? राजधानियां क्या बनेंगी? कर्ज का बंटवारा कैसे होगा?
उस समय मायावती के विरोधियों ने इसे चुनावी शिगूफा बताया था. 2012 में मायावती चुनाव हार गईं. समाजवादी पार्टी सत्ता में आई. समाजवादी पार्टी ने 'अखंड उत्तर प्रदेश' का नारा दिया.
किस तरह के राज्य बनाने की है मांग?
1. पश्चिमी यूपी
- यूपी के बाकी इलाकों में सबसे आगे है. दिल्ली से सटा है. गन्ना बेल्ट कहलाता है. विकास में सबसे आगे नजर आता है. उसके बावजूद अलग प्रदेश की मांग होती है.
- पश्चिमी यूपी को 'हरित प्रदेश' बनाकर अलग राज्य बनाने की मांग करीब तीन दशक पुरानी है. आरएलडी के नेता चौधरी चरण सिंह इस मांग को लेकर मुखर रहे हैं.
- मांग करने वाले मेरठ या मुरादाबाद को पश्चिमी यूपी की राजधानी बनाने की बात करते हैं. यहां के लोगों को लगता है कि उनके साथ सौतेला बर्ताव कर रहे हैं.
- इसके अलावा यहां के लोग अलग हाईकोर्ट बेंच की मांग भी करते हैं. राजधानी लखनऊ दूर होने का हवाला भी देते हैं.
2. पूर्वांचल
- अलग पूर्वांचल की मांग भी दशकों पुरानी है. 1962 में गाजीपुर से सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी ने संसद में कहा कि पूर्वांचल इतना पिछड़ा हुआ है कि यहां के लोग गोबर से अनाज निकालकर पेट भरते हैं.
- इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने पटेल आयोग का गठन किया. दावा किया जाता है कि विकास के लिए पटेल आयोग ने पूर्वांचल को अलग राज्य बनाने की सिफारिश की थी. लेकिन इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
- पूर्वांचल से आने वाले कल्पनाथ राय, भरत तिवारी और अमर सिंह जैसे नेताओं ने भी अलग राज्य बनाने की मांग की. लेकिन इसके लिए कभी कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ.
3. बुंदेलखंड
- अलग बुंदेलखंड की मांग करने वालों का कहना है कि यूपी के झांसी, बांदा, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, महोबा और चित्रकूट जिलों के अलावा मध्य प्रदेश के दतिया, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह और पन्ना को शामिल कर नया राज्य बनाया जाए.
- अलग बुंदेलखंड की मांग भी काफी पुरानी है. 1970 में बुंदेलखंड एकीकरण समिति का गठन हुआ. बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शंकरलाल ने अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन भी किया.
- बीजेपी सांसद उमा भारती ने भी 2014 में चुनावी रैली में अलग बुंदेलखंड बनाने का वादा किया था. उन्होंने कहा था केंद्र में बीजेपी सरकार बनते ही तीन साल में बुंदेलखंड अलग राज्य बन जाएगा. हालांकि, बीजेपी सरकार बनने के बाद भी कुछ हुआ नहीं.
- अभी भी अलग राज्य की मांग को लेकर स्थानीय संगठन धरना प्रदर्शन करते रहते हैं. उनका कहना है बुंदेलखंड पिछड़ा हुआ है और अलग राज्य बनने से यहां का विकास होगा.
क्या बंटवारे का कोई प्लान है?
2019 में सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश के बंटवारे की फर्जी खबर फैली. सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें शेयर की गईं और दावा किया गया कि सरकार ने यूपी के बंटवारे का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है.
सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि यूपी को तीन हिस्सों में बांटा जाना है. इनका नाम होगा- उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल. यूपी की राजधानी लखनऊ, बुंदेलखंड की प्रयागराज और पूर्वांचल की गोरखपुर होगी.
तब सीएम योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकर मृत्युंजय कुमार ने बीबीसी से बात करते हुए कहा था कि यूपी के बंटवारे की कोई योजना नहीं है. यूपी सरकार के सामने इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है. उन्होंने इसे महज अफवाह बताया था.
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही यूपी के बंटवारे के खिलाफ रही हैं. 2011 में जब मायावती यूपी के बंटवारे का प्रस्ताव लेकर आई थीं, तब समाजवादी पार्टी ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. उस समय बीजेपी, कांग्रेस और बाकी पार्टियों ने सपा का साथ दिया था.
हालांकि, फरवरी 2014 में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा था कि यूपी जैसे बड़े राज्यों में 'गुड गवर्नेंस' मुमकीन नहीं है. इस राज्य के बेहतर भविष्य के लिए हमें इसके बंटवारे के बारे में सोचना चाहिए. जयराम रमेश ने जनवरी 2019 में एक अखबार में लिखे लेख में यूपी के पुनर्गठन की बात कही थी.
Priyank Dwivedi