वो संधि, जिसके बाद शुरू हुई नागरिकता की लड़ाई, फिलहाल किन तरीकों से मिलती है किसी देश की सिटिजनशिप?

हमारे पूर्वज शिकारी और घुमंतू हुआ करते थे. दाना-पानी की तलाश में भटकते हुए वे मौसम और जरूरत के मुताबिक जगह बदलते. वक्त के साथ सीमाएं बनीं. नागरिक और विदेशी का कंसेप्ट आया. जमीनों पर मालिकाना हक होने लगा. अब हाल ये है कि देश अपने यहां जन्मे बच्चों को भी नागरिकता देंगे, या नहीं, इसपर भी विवाद है.

Advertisement
बर्थराइट सिटिजनशिप पर अमेरिका दो फांक हुआ पड़ा है. (Photo- Getty Images) बर्थराइट सिटिजनशिप पर अमेरिका दो फांक हुआ पड़ा है. (Photo- Getty Images)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देश में बर्थराइट सिटिजनशिप खत्म करने की बात पर की. अदालत ने भले ही इस आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन सिटिजनशिप के तौर-तरीकों पर चर्चा जरूर चल पड़ी. ट्रंप का तर्क है कि नागरिकता के इस अधिकार का गलत इस्तेमाल हो रहा है और लोग केवल बच्चों को जन्म देने अमेरिका आ रहे हैं. वहीं कोर्ट के अनुसार, जन्मजात नागरिकता को खत्म करना असंवैधानिक है.

Advertisement

क्या है बर्थराइट सिटिजनशिप? इसके अलावा और कौन से तरीके हैं, जिनसे नागरिकता मिलती रही. 

शुरुआत से बात करें तो इंसान खाने की यहां से वहां भटकते रहते थे. शिकार के बाद फिर चलन आया खेतीबाड़ी का. साथ में पशुपालन भी होने लगा. अब लोग एक जगह बसने लगे थे. धीरे-धीरे लोगों को लगा कि उन्हें अपनी जमीन, अपने रिसोर्सेज को सेफ रखने के लिए कुछ नियम-कायदे बनाने चाहिए. 

यहीं पर राज्य और राजा तैयार हुए. राज्य में रहने वाले लोग टैक्स चुकाते और बदले में उन्हें कई अधिकार मिलते. यहीं से नागरिकता का पहला बीज पड़ा. सीमाएं ज्यादा पक्की होने लगीं. सीमाओं को बढ़ाने के लिए जंग होने लगी. लिखापढ़ी भी होने लगी. बीज में अंकुर फूट चुका था. 

अब आता है तीसरा फेज. ये 14वीं सदी के करीब की बात है, जब आधुनिक देश बनने लगे. इसी के साथ एक खास सीमा के भीतर रहने वाले लोग वहां के नागरिक और बाहरी लोग विदेशी कहलाने लगे. नागरिकों को कई सुविधाएं मिलने लगीं. लेकिन तब भी ये नहीं हुआ था कि लोग किसी खास क्षेत्र में बसने के लिए मारामारी करें. 

Advertisement

इस बीच यूरोप के कई हिस्सों में धार्मिक लड़ाइयां शुरू हो गईं. 17वीं सदी में सबसे लंबी जंग चली, जिससे लगभग पूरा यूरोप तबाह हो गया. सबको समझ आ गया था कि जिंदा रहना है तो सुलह करनी होगी. साल 1643 में यूरोप के कई ताकतवर देशों ने बातचीत शुरू की. ये बातचीत भी कई साल चली क्योंकि सारे देश अपनी सीमाओं और धर्म पर अड़े थे और अपनी ही शर्तें मनवाना चाहते थे. 

इस समझौते के बाद चलने लगी अलग जंग

आखिरकार अक्टूबर 1648 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसे वेस्टफेलिया संधि कहा गया. इसमें धार्मिक आजादी के अलावा क्षेत्रीय सीमाओं पर सबसे ज्यादा जोर रहा. सभी देशों ने माना कि उनमें से हरेक अपने बॉर्डर के भीतर संप्रभु है. वो अपने फैसले ले सकता है. और किसी बाहरी ताकत को उसके मामलों में नहीं पड़ना चाहिए. कई देशों की सीमाएं नए सिरे से तय हुईं. हर देश ने अपनी पहचान और नियम बनाए और नागरिकता का मॉडर्न कंसेप्ट आया, जो बढ़ता-फैलता रहा. 

जब भी किसी बच्चे की नागरिकता की बात होती है, तो पूरी दुनिया में दो ही नियम मिलेंगे.

एक है- राइट ऑफ सॉइल. ये कहता है कि बच्चे का जहां जन्म हुआ हो, वो अपने आप वहां का नागरिक बन जाता है. 

दूसरा नियम है- राइट ऑफ ब्लड. यानी बच्चे के माता-पिता जहां के नागरिक हों, वो भी वहीं का माना जाए. इसे जुस सैंगुइनिस कहते हैं. 

Advertisement

यहीं पर बात आती है अमेरिका की

राष्ट्रपति ट्रंप ने आते ही जन्मजात नागरिकता खत्म करने का आदेश दे दिया. इसके तहत देश में जन्मे ऐसे बच्चों को सिटिजनशिप नहीं मिलेगी, जिनके पेरेंट्स में से कोई भी यूएस का न हो. यह नियम 20 फरवरी से लागू होना था. इस बीच कई राज्यों से विरोध की आवाजें उठने लगीं. आनन-फानन एक फेडरल कोर्ट ने ट्रंप के आदेश को असंवैधानिक कहते हुए उस पर रोक लगा दी.  हो सकता है कि ट्रंप का ऑर्डर दोबारा किसी शक्ल में या थोड़ा माइल्ड होकर लागू भी हो जाए. वर्तमान सरकार घुसपैठ कम करने को लेकर जितनी आग्रही है, कम से कम उससे तो यही लगता है. 

किन देशों में जन्म के आधार पर नागरिकता? 

30 से ज्यादा देश बर्थ राइट सिटिजनशिप को मानते हैं. इसमें अमेरिका सबसे ऊपर है. उसने 19वीं सदी में ही राइट ऑफ सॉइल की बात की थी और अपने यहां जन्मे बच्चों को अपना नागरिक बताने लगा था. इसके अलावा कनाडा, अर्जेंटिना, बोलिविया, इक्वाडोर, फिजी, ग्वाटेमाला, क्यूबा और वेनेजुएला जैसे कई मुल्क ये अधिकार देते रहे. हालांकि कई जगहें ज्यादा सख्त हैं. जैसे कई देशों में नागरिकता के लिए बच्चे के माता-पिता दोनों को वहां का होना चाहिए.

फिर क्या गड़बड़झाला होने लगा

बहुत से गरीब देश या वे जगहें जहां लगातार युद्ध चल रहा हो, वहां के लोग अपने लिए ऐसी जगहें खोजने लगे, जहां राइट ऑफ सॉइल का नियम हो. अमेरिका पर इनकी तलाश पूरी हुई. ये बर्थ राइट सिटिजनशिप भी देता था और सबसे ताकतवर देश भी था. कमजोर देशों से भाग-भागकर पेरेंट्स यहां आने लगे और बच्चों को जन्म देने लगे. 

Advertisement

बाद में बच्चों के हवाले से पेरेंट्स भी वहां रुकने लगे. ये पेरेंट्स पढ़ाई, रिसर्च, छोटी-मोटी नौकरी के बहाने अमेरिका में रुकते, जब तक कि बच्चे का जन्म न हो जाए. इसके बाद वे तर्क करते कि बच्चा अगर छोटा है तो वे उसे छोड़कर कैसे जा सकते हैं. लिहाजा वे अपने रुकने की अवधि बढ़ाते या नागरिकता की मांग करने लगते. यह ट्रेंड बढ़ता ही जा रहा था. इसे बर्थ टूरिज्म कहा जाने लगा. लोग बच्चों की अमेरिकी नागरिकता की चाह में कैसी भी जुगत लगाकर वहां पहुंचने लगे. 

प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट कहती है कि साल 2016 में ढाई लाख से ज्यादा घुसपैठियों के बच्चों ने अमेरिका में जन्म लिया. ट्रंप इसी चलन को रोकने के लिए जन्मजात नागरिकता पर रोक की बात करते रहे. लेकिन ये अधिकार 14वें संशोधन के तहत मिला हुआ है, जिसमें बदलाव तब तक संभव नहीं, जब तक कि सीधे संविधान में ही फेरबदल न हो. इसके लिए कांग्रेस और स्टेट दोनों का ही सपोर्ट चाहिए जो फिलहाल तो मुश्किल लगता है. 

नागरिकता पाने के और भी तरीके

जन्म और पेरेंट्स के अलावा भी कई तरीके हैं, जिनसे किसी देश की सिटिजनशिप मिलती है. 

- नेचुरलाइजेशन के तहत अगर आप किसी दूसरे देश में लंबे समय तक रहें तो वहां की नागरिकता मांग सकते हैं. 

- किसी खास देश के नागरिक से शादी करने और उसके साथ वहां रहने पर भी सिटिजनशिप के लिए आवेदन किया जा सकता है. 

- अगर कोई व्यक्ति अपने देश में खतरे के कारण भागकर कहीं और शरण ले तो भी असाइलम मांग सकता है. 

- कुछ देश पैसों के बदले नागरिकता देते हैं. अगर वहां बड़ा इनवेस्टमेंट किया जाए तो भी नागरिक बना जा सकता है. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement