युद्ध बंद कराने के दावे करते डोनाल्ड ट्रंप के हिस्से दो-दो शटडाउन का क्रेडिट भी आ गया है. दरअसल फंडिंग पर असहमति के चलते बहुत से बिल पास नहीं हो सके और फेडरल शटडाउन लग गया. इसमें काफी सारे सरकारी विभाग वक्ती तौर पर बंद हो चुके. लाखों कर्मचारी घर बैठे हुए हैं, या योग्यता से अलग काम करने को मजबूर हैं. तीसरे हफ्ते में यह हाल है. अगर शटडाउन ज्यादा लंबा खिंचा तो अमेरिका का महाशक्ति का सिंहासन भी डोल सकता है, खासकर ऐसे वक्त में जब सारी दुनिया में अस्थिरता है.
अक्तूबर की शुरुआत में शटडाउन लगा. क्यों? इसे समझते चलें. यूएस में सरकार चलाने के लिए हर साल बजट पास होना जरूरी है. लेकिन जब रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स कई मुद्दों पर सहमत नहीं हो पाते, तो सरकारी खर्च के लिए जरूरी फंडिंग रुक जाती है. नतीजा यह होता है कि कई एजेंसियों को अस्थाई रूप से बंद करना पड़ता है और कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पाता.
इसका असर हर सेवा पर नहीं पड़ता, बल्कि सिर्फ उन कामों पर दिखेगा जो तुरंत जरूरी नहीं माने जाते. इन्हें नॉन-एसेंशियल सर्विस कहा जाता है. अगर यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, तो धीरे-धीरे जरूरी सेवाएं भी ठप पड़ने लगती हैं.
ऐसा नहीं है कि इसे ठीक करने की कोशिश नहीं की जा रही. 23वें दिन में लगातार 12वीं बार वोटिंग के लिए बिल आया लेकिन फंडिंग पर ग्रीन सिग्नल के लिए जरूरी 60 वोटों तक नहीं पहुंच सका. इस तरह से यह शटडाउन अमेरिकी इतिहास की दूसरी सबसे लंबी फंडिंग रुकावट दिख रही है. साल 2018 से 2019 के बीच भी 35 दिनों तक बंदी चली थी.
अमेरिकी शटडाउन के खतरे को सप्ताह के हिसाब से समझें तो
- पहले से दूसरे हफ्ते में असर सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह और नॉन-एसेंशियल सेवाओं तक सीमित रहता है.
- तीसरे से चौथे सप्ताह के दौरान जरूरी सेवाओं पर असर दिखने लगता है. सेना के प्रशिक्षण और ऑपरेशन धीमे हो सकते हैं. राजनयिक मिशन सीमित हो जाते हैं.
- पांच हफ्ते या उससे ज्यादा चलने पर गंभीर खतरा आ सकता है. सारे बेहद अहम विभाग कमजोर हो जाते हैं, जिसका फायदा दुश्मन देश ले सकते हैं.
फिलहाल नॉन-एसेंशियल सेवाएं रोकी गई हैं लेकिन जल्द ही इसका असर बेहद जरूरी सर्विसेज पर भी हो सकता है, जैसे डिफेंस, खुफिया, सुरक्षा एजेंसियां और सीमा निगरानी जैसी सेवाएं. सेना के प्रशिक्षण रुक सकते हैं, हथियारों और लॉजिस्टिक सप्लाई में देरी हो सकती है, और सैन्य अभियानों की तैयारी बाधित हो सकती है. खुफिया नेटवर्क में काम धीमा हो सकता है, जिससे आतंकवाद और साइबर हमलों की आशंका गहरा सकती है.
फंडिंग की रुकावट फॉरेन पॉलिसी पर भी दिखेगी. असल में जब सरकार के पास कामकाज के लिए पैसा नहीं होता, तो दूतावास और विदेश मिशन अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते. मिसाल के तौर पर, दूतावास नई नीतियां नहीं बना सकेगा क्योंकि इसके लिए पैसे लगते हैं. या फिर अमेरिका संकटग्रस्त देशों में सहायता नहीं भेज सकेगा. इससे बाकी देशों को ये इशारा मिलेगा कि यूएस जैसी महाशक्ति की आंतरिक राजनीति अस्थिर हो चुकी और वो अंतरराष्ट्रीय मामलों में उतना भरोसेमंद नहीं रहा.
इस अस्थिरता का फायदा रूस से लेकर चीन भी उठा सकते हैं. रूस पहले से ही यूक्रेन को लेकर ट्रंप की मध्यस्थता लगभग नकार चुका. मॉस्को पर ये शक भी गहरा रहा है कि वो कोल्ड वॉर के बाद पहली बार दोबारा पश्चिम को लेकर आक्रामक हो चुका. उसने चुपके-चुपके यूरोप को अस्थिर करना शुरू कर दिया है. यूरोप की कमजोरी का भी असर अमेरिका पर होगा. ऐसे में अगर उसके विभागों की सरकारी फंडिंग भी अटकी रहे, तो मामला काफी संकटभरा हो सकता है.
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि सेहतमंद व्यक्ति जब एक या दो दिन भूखा रहे तो कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन यही अनाहार अगर लंबा खिंचने लगे तो पहले तो शरीर उससे एडजस्ट करने की कोशिश करता है लेकिन फिर साथ छोड़ने लगता है. सारा पोषण खत्म होने के बाद ऑर्गन फेल होने की स्थिति आ जाती है. यही स्थिति लंबे शटडाउन में किसी भी देश की हो सकती है. अभी अस्थाई सेवाएं बंद हैं. जल्द ही जरूरी चीजों पर इसका असर होगा और देश में भूचाल आ जाएगा.
इसके कुछ रास्ते तो हैं.
- शटडाउन की वजह फंडिंग का रुकना है. अगर हाउस और सीनेट दोनों कोई नया बजट या फंडिंग बिल पास कर दें, तो शटडाउन तुरंत खत्म हो सकता है.
- कभी-कभी कांग्रेस क्रैश-लेजर यानी शॉर्ट टर्म प्रस्ताव पास कर देती है, इससे थोड़े समय के लिए फंडिंग चल पड़ती है. तब तक कोई दूसरा रास्ता निकल आता है.
- राष्ट्रपति आपातकालीन स्थितियों में सीमित खर्च की इजाजत दे सकते हैं.
सबसे लंबा शटडाउन साल 2018 के आखिर से 2019 की शुरुआत तक चला, कुल 35 दिन तक. राष्ट्रपति ट्रंप और कांग्रेस के बीच मेक्सिको वॉल पर सहमति न बनने पर ये रुकावट आई थी. लंबा खिंचने पर कांग्रेस ने एक शॉर्ट-टर्म बिल पास किया, जिससे बाकी विभाग चल पड़े. दीवार पर बहस होती रही और अब भी जारी है.
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