3 वक्त की रोटी के पड़े लाले, किताबें बेचकर किया गुजारा, 'भाबीजी...' के अनोखेलाल का छलका दर्द

टीवी की पॉपुलर सिटकॉम 'भाबीजी घर पर है' को कौन पसंद नहीं करता. इस शो ने दर्शकों के चेहरे पर जो मुस्कान लाई है, वो बहुत कम शो लेकर आ पाते हैं. इसमें नजर आने वाला हर किरदार फैन्स के बीच खास है. हाल ही में शो के अनोखेलाल उर्फ सानंद वर्मा ने अपनी स्ट्रगल स्टोरी सुनाई.

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सानंद वर्मा हुए इमोशनल (Photo: Screengrab) सानंद वर्मा हुए इमोशनल (Photo: Screengrab)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:27 PM IST

सानंद वर्मा ने शोबिज में नाम बनाया है. 'भाबीजी घर पर है' में अनोखेलाल के किरदार अदा कर वो घर-घर में जाने-पहचाने गए हैं. उनके लिए यहां तक पहुंच पाना काफी मुश्किल सफर रहा है. एक समय उनकी जिंदगी में ऐसा भी आया, जब उनके पास दिन में तीन बार खाना खाने तक के पैसे नहीं होते थे. उन्होंने किताबें बेचकर, जर्नलिस्ट बनकर, मीरा रोड से अंधेरी तक पैदल चलकर गुजारा किया है. 

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एक्टर ने अपनी जिंदगी में काफी मुश्किलें देखी हैं और स्ट्रगल किया है. अब सानंद वर्मा इस फेज में हैं, जहां उनकी डेडिकेशन को पहचान मिल सके, इसकी दुआ करते हैं. क्योंकि सानंद का कहना है कि वो एक कॉमेडी किरदार निभाते-निभाते बोर हो चुके हैं. उनके अंदर और भी टैलेंट हैं और वो और भी तरह के किरदार पर्दे पर अदा करने में सक्षम हैं, लेकिन कोई उन्हें चांस नहीं दे रहा है. 

स्ट्रगल को याद कर इमोशनल हुए सानंद
अपनी शुरुआती जर्नी को याद कर सानंद ने कहा- मेरी जिंदगी में कम्फर्ट तो था ही नहीं, और न ही मेरे पास ये विकल्प था. मेरे पिता, राजनारायण वर्मा, बिहार के एक रिस्पेक्टेड लेखक थे. पर वो नहीं जानते थे कि आखिर पैसा कैसे कमाना है. कई बार हम बिना खाए सोए और हमारे पास किराया भरने के भी पैसे नहीं हुआ करते थे. साल 1991 में पिता की आंखें बंद हुईं. एक्टिंग और सिंगिंग के लिए मैं मुंबई आया. उनका सपना था कि मैं सक्सेसफुल एक्टर बनूं. हालांकि, वो ये सपना पूरा होते देख न सके.

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सानंद ने नहीं खोई उम्मीद
स्ट्रगल के बावजूद, सानंद ने उम्मीद कभी नहीं खोई. एक्टर ने कहा- जब जिंदगी आपको टेस्ट करती है, तो या तो आप निगेटिव हो जाते हैं या फिर चतुर-तालाक. मैं बच्चा था, जब मैंने काम करना शुरू कर दिया था. मैंने किताबें बेचीं, फील्ड में काम किया, मदद की, लिखना शुरू किया, क्योंकि मेरे पिता को पसंद था. 13 साल की उम्र में मैंने तीन किताबें लिख दी थीं. जब किताब पब्लिश हुई तो बिजनेस ठप हो गया. हम दिल्ली आए. मैंने एक न्यूजपेपर कंपनी में काम किया प्रूफरीडर का. 

धीरे-धीरे, खुद को क्रिएटिव वातावरण में ढाला. 12 साल का था, जब मैंने 70 साल के बुजुर्ग का किरदार अदा किया था. इसके लिए बेस्ट एक्टर अवॉर्ड भी जीता था. लाइफ के चैलेंजेज ने मुझे हार्डवर्किंग और इमोशनली मजबूत बनाया. हालांकि, मैं टाइपकास्ट भी कई बारी हुआ. मुझे कॉमेडियन का टैग मिला. मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी लोगों को ये समझाने में कि मैं सिर्फ एक कॉमेडियन का रोल ही नहीं, बाकी के रोल भी पर्दे पर अदा कर सकता हूं. मैं एक विलेन का किरदार अदा करना चाहता हूं, लेकिन कास्टिंग डायरेक्टर्स को रिझाना बहुत मुश्किल है. 

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