हिन्दुस्तान में एक साधारण मिडिल क्लास फैमिली के क्या सपने होते हैं? एक साधारण मिडिल क्लास फैमिली किस संघर्ष में पूरी जिंदगी गुजार देती है? ये ऐसे सवाल हैं जिनके बीच में ही हिन्दुस्तान की आधी से ज्यादा जनता की जिंदगी बीत जाती है. इन्हीं सवालों पर तंज कसते हुए एक फिल्म बनाई गई है, नेटफ्लिक्स पर आई नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म सीरीयस मैन देश के मिडिल क्लास परिवार और उनके सपनों पर गहरा व्यंग्य है.
क्या कहती है फिल्म की कहानी?
देश की सबसे बड़ी साइंस लैब के साइंटिस्ट का एक पीए (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी) जिसके अपने कुछ सपने हैं. लेकिन वो छोटी जाति का बंदा है, ऐसे में वो अपने सपनों के लिए अपने बेटे को आगे रखता है. जो वो अपने बॉस के दफ्तर में सुनता है, उसे ही खुद याद करके बेटे से रटवाता है. और दुनिया के सामने बेटे को साइंस का बड़े ज्ञानी के तौर पर प्रोजेक्ट करता है. इसी खींचतान के बीच की ये कहानी है, बाकी आप फिल्म देखेंगे तो ही मज़ा आएगा.
मिडिल क्लास की ज़िंदगी पर बड़ा व्यंग्य
फिल्म में सबसे बड़ा मैसेज और व्यंग्य मिडिल क्लास को लेकर ही है. जो अक्सर हिंदुस्तान में देखा जाता है, अगर मां-बाप अपने सपने पूरे नहीं कर पाते हैं. तो वो अपनी सोच और सपनों को बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं, फिर उसे दुनिया के मुकाबले खड़ा करना, अपनी इगो को बच्चों के बचपन से ऊपर रखना.
इसी पूरी प्रोसेस में मिडिल क्लास घूमता रहता है और फिर अपने बच्चों की बुद्धि का इस्तेमाल दुनिया के सामने बेच कर खुद को आगे उठाता है. भले ही उस वक्त मिडिल क्लास के मां-बाप की सोच सही हो कि जो उन्होंने जिंदगी भर झेला, वो उनके बेटे ना झेल पाएं. लेकिन इस कोशिश में वो बच्चे के बचपन, बच्चे की मासूमियत को भूल जाते हैं. फिल्म में एक डायलॉग है. जो आज की राजनीतिक और सामाजिक सोच पर बड़ा गहरा सवाल उठाता है.
'आजकल मंदिर मस्जिद में क्या हो रहा है, लोगों को इससे फर्क पड़ता है, साइंस इंस्टिट्यूट में क्या हो रहा है इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता'.
फिल्म में कलाकारी का दम
हर बार की तरह नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अपने रोल में फिट ही बैठे हैं. कोई भी ऐसा रोल जहां मिडिल क्लास फैमिली या उसकी मजबूरियों को दर्शाना हो तो नवाज फिट बैठते हैं. इस फिल्म में भी कई डायलॉग नवाज़ुद्दीन ने ऐसे कहे हैं जो समाज पर तंज हैं.
नवाजुद्दीन के अलावा अक्षत दास जिन्होंने आदि का किरदार निभाया, वो शानदार रहे. क्योंकि पूरी फिल्म उस किरदार के ही इर्द गिर्द रही. और वो किरदार अगर ढीला पड़ता तो फिर फिल्म ढह जाती. फिल्म को सुधीर मिश्रा ने डायरेक्ट किया है और उनके इतिहास को देखें तो वो हमेशा ही ऐसी फिल्मों के लिए जाने जाते रहे हैं. जो समाज पर तंज कसे, किसी अहम मसले को उठाए.
फिल्म में सोशल मैसेज है जो सही हैं, लेकिन इसके बावजूद काफी चीजें ऐसी हैं जो पूरी फिल्म में खटक रही हैं. फर्जी के सेक्स सीन, कुछ गालियां और एक-दो अलग सीन ऐसे हैं जो सिर्फ ओटीटी की मजबूरियों को पूरा करने के लिए डाले गए हैं.
मोहित ग्रोवर