Film Review: अहम मुद्दे की ओर इशारा करती है 'लाल रंग'

निर्देशक सैयद अहमद अफजल ने फिल्म 'यंगिस्तान' के साथ बॉलीवुड में डायरेक्टर के तौर पर कदम रख था और अब उनकी दूसरी फिल्म 'लाल रंग' है. क्या यह फिल्म दर्शकों की आशाओं पर खरी उतर पाएगी?

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फिल्म 'लाल रंग' फिल्म 'लाल रंग'

दीपिका शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 21 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST

फिल्म का नाम: लाल रंग

डायरेक्टर: सैयद अहमद अफजल

स्टार कास्ट: रणदीप हूडा, अक्षय ओबरॉय, पिया बाजपेयी, रजनीश दुग्गल, मीनाक्षी दीक्षित, राजेंद्र सेठी

अवधि: 2 घंटा 26 मिनट

सर्टिफिकेट: U/A

रेटिंग: 3 स्टार

निर्देशक सैयद अहमद अफजल ने फिल्म 'यंगिस्तान' के साथ बॉलीवुड में डायरेक्टर के तौर पर कदम रख था और अब उनकी दूसरी फिल्म 'लाल रंग' है. क्या यह फिल्म दर्शकों की आशाओं पर खरी उतर पाएगी?

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कहानी
यह कहानी हरियाणा के करनाल की है जहां 'खून चोरी' करने बाले रैकेट का सरगना शंकर (रणदीप हुड्डा) है जो खुद मेडिकल कॉलेज से डिप्लोमा करता है साथ ही वहां के ब्लड बैंक से जुगाड़ करके खून का अवैध धंधा करता है. इसी कॉलेज में राजेश (अक्षय ओबेरॉय) और पूनम शर्मा (पिया बाजपेयी) ने भी नया नया एडमिशन लिया और एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं. राजेश की शंकर से दोस्ती हो जाती है और राजेश भी इस 'खून चोरी' का हिस्सा बनकर पैसे कमाने लगता है. जब इस इलाके के पुलिस इंस्पेक्टर गजराज सिंह (रजनीश दुग्गल) की नजर इन सभी बातों पर पड़ती है तो वो इस रैकेट से जुड़े लोगों की तलाश में जुट जाता है अब क्या गजराज सिंह के हाथ शंकर का गिरोह लग पाएगा? क्या इस रैकेट का खुलासा हो पाएगा? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी.

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स्क्रिप्ट
फिल्म की स्क्रिप्ट कई सारी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है और फिल्मांकन के दौरान वो आपको बांधे रखती है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी सराहनीय है और शूट करने का तरीका भी काफी अलग है, 'ड्रोन कैमरे' का भी प्रयोग किया गया है जो देखने में काफी दिलचस्प लगता है. फिल्म की कहानी इंटरवल के बाद थोड़ी बड़ी लगने लगती है जिसे आसानी से छोटा किया जा सकता था. स्क्रीनप्ले और संवाद बहुत अच्छे हैं.

अभिनय
रणदीप हूडा फिल्म की अहम कड़ी हैं और फिल्म में उनका बखूब प्रदर्शन है. पिया बाजपेयी ने 'पूनम' के किरदार में अंग्रेजी बोलने का एक अलग फ्लेवर दिया है जो आपको याद रह जाता है, अक्षय ओबेरॉय ने भी एक अच्छा हरियाणवी किरदार निभाया है, वहीं रजनीश दुग्गल, मीनाक्षी दीक्षित और राजेंदर सेठी का किरदार भी कहानी के साथ-साथ जाता है.

संगीत
फिल्म में 'बावली बूच', 'खर्च करोड़', 'ए खुदा' जैसे गाने हैं जो कहानी के साथ-साथ अच्छे लगते हैं.

कमजोर कड़ी
फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी एडिटिंग है. फिल्म को थोड़ा और अच्छे से एडिट किया जाता, तो इसका फ्लो बहुत ही अच्छा लगता. कई सारे ऐसे सीन हैं जो नहीं होते तो फिल्म और ज्यादा कट टू कट दिखाई पड़ती.

क्यों देखें
अगर आप एक अच्छी कहानी और उम्दा एक्टिंग देखना पसंद करते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखें.

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