Thamma Review: लव स्टोरी, बेतालों का संसार है मजेदार...आयुष्मान-रश्मिका का सॉलिड काम

आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना स्टारर ‘थामा’ का फर्स्ट हाफ काफी दमदार है. फिल्म की पहली खासियत ये है कि ये इस हॉरर यूनिवर्स में एक नया वर्ल्ड क्रिएट कर रही है. फिल्म में दिखाई गई लव स्टोरी आपको बांधे रखेगी.

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‘थामा’ का फर्स्ट हाफ है दमदार (Photo: Instagram @ayushmannk) ‘थामा’ का फर्स्ट हाफ है दमदार (Photo: Instagram @ayushmannk)

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 7:59 PM IST
फिल्म:थामा
3/5
  • कलाकार : आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, परेश रावल, फैजल मलिक
  • निर्देशक :आदित्य सरपोतदार

हॉरर यूनिवर्स ने अबतक भूतिया लोककथाओं में कॉमेडी और सोशल मैसेज मिलाया था. ‘थामा’ में ये यूनिवर्स एक लोककथा में लव स्टोरी मिक्स करके लाया है. क्या इस बार ‘स्त्री’, ‘भेड़िया’ या ‘मुंज्या’ जैसा माहौल बना है? आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना स्टारर 'थामा' के ट्रेलर को तो जनता से पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला था. फिल्म के गाने भी पॉपुलर हुए और प्रमोशन भी खूब किया गया. लेकिन क्या थिएटर्स में फिल्म बड़े पर्दे पर वो माहौल बना पाई, जिसका इंतजार जनता दिवाली मूड में कर रही थी? 

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फर्स्ट हाफ में सेट हुई सॉलिड कहानी 
थामा’ की पहली खासियत ये है कि ये इस हॉरर यूनिवर्स में एक नया वर्ल्ड क्रिएट कर रही है. ये वर्ल्ड बेताल के मिथक वाली लोककथाओं से प्रेरित है. ‘थामा’ का फर्स्ट हाफ आपको बेताल के संसार से इंट्रोड्यूस करवाता है. आलोक (आयुष्मान) एक जर्नलिस्ट हैं, जो एक एडवेंचर पर इस अनूठे संसार से टकरा जाता है. ताड़का उर्फ तारिका (रश्मिका) यहां उसकी मदद करती हैं. आलोक को उससे प्यार होने लगता है. मगर हालात ऐसे हैं कि दोनों का साथ रहना बेतालों और इंसानों के संसार का बैलेंस बिगाड़ सकता है. 

‘थामा’ का फर्स्ट हाफ जितनी मजबूती से बेतालों का संसार क्रिएट करता है, उतनी ही दिलचस्प इसकी लव स्टोरी है. आयुष्मान का सिग्नेचर चार्म और रश्मिका की खूबसूरती फर्स्ट हाफ में वो लव स्टोरी तैयार करता है जो इस कहानी की जान बन रही है. स्पेशल इफेक्ट्स सॉलिड हैं. म्यूजिक इस लव स्टोरी को वो माहौल देता है जो आगे की कहानी तैयार कर रहा है. ‘थामा’ का फर्स्ट हाफ सेट है. इंटरवल पॉइंट पर एक ऐसा ट्विस्ट है जिसकी आपको उम्मीद नहीं होगी.

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कमजोर पड़ा सेकंड हाफ
‘थामा’ का सेकंड हाफ, कहानी का शो-डाउन है. फर्स्ट हाफ में लव स्टोरी और उसका कॉन्फ्लिक्ट सेट हो चुका था. आलोक-तारिका की लव स्टोरी में, पंगा था यक्षासन (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) का. सौ सालों से कैद में पड़े यक्षासन की आजादी तभी संभव थी, जब बेताल अपनी एक शर्त तोड़ दें. वो शर्त टूटते ही यक्षासन आजाद है और अब कैद में जाएगी तारिका क्योंकि शर्त उसने तोड़ी है. तो अब यक्षासन और तारिका के बीच खड़ा है, आलोक. लेकिन ये काम आलोक के बस का है? 

‘थामा’ के फर्स्ट हाफ की जान आलोक-तारिका की लव स्टोरी थी, उनकी केमिस्ट्री थी. मगर सेकंड हाफ में बड़ी चीजें दांव पर आते ही फोकस लव स्टोरी से हट जाता है. और ये एक समस्या है. सेकंड हाफ का फोकस, ‘थामा’ की कहानी को हॉरर यूनिवर्स में सेट करने पर चला जाता है. यही वजह है कि विजुअली मजबूत होने के बावजूद, ‘थामा’ का सेकंड हाफ कमजोर फील होता है. 

मेकर्स का फोकस इस एक कहानी को आराम से एक्सप्लोर करने की बजाय पूरे यूनिवर्स का गणित बिठाने पर चला जाता है. यहां दूसरी कहानियों से इस फिल्म का कनेक्शन और कुछ स्पेशल अपीयरेंस दिखते हैं. मगर आलोक-तारिका की लव स्टोरी के पंगे को जिस तरह सुलझाया गया, वो कहानी कहने का नहीं, कहानी ‘निपटाने’ वाला स्टाइल है. सेकंड हाफ में फैन सर्विस काफी है, जो हॉरर यूनिवर्स के पक्के फैन्स को बहुत पसंद आएगी. मगर यहां भी स्क्रिप्ट में कमी दिखती है. 

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एक्टिंग परफॉर्मेंस
यक्षासन के रोल में नवाजुद्दीन सिद्दीकी को देखकर मजा आता है और उन्होंने काम भी बढ़िया किया है. डराने के साथ-साथ कॉमेडी करने वाले विलेन के रोल में नवाज़ुद्दीन कामयाब होते हैं. मगर स्क्रिप्ट उनके किरदार को मजबूत विलेन बनाने में कमजोर पड़ती है. ‘पंचायत’ के प्रह्लाद-चा, फैजल मलिक को ‘थामा’ जैसी बड़ी फिल्म में देखकर अच्छा लगा. उनका किरदार बहुत मजेदार है. परेश रावल भी अपना अनुभव जस्टिफाई करते हैं. 

‘थामा’ की हाईलाइट रश्मिका और आयुष्मान हैं. आयुष्मान को इस फिल्म में देखकर लगा कि उनके चार्म, चटपटे अंदाज वाली डायलॉगबाजी और एक्टिंग की इमोशनल गहराई को बड़ा पर्दा कितना मिस कर रहा था. रश्मिका मंदाना को लंबे वक्त बाद ऐसा रोल मिला है जो कहानी में सबसे मुख्य है. लव स्टोरी का पूरा कॉन्फ्लिक्ट भी उन्हीं के किरदार पर टिका है. ऐसे में रश्मिका का काम इम्प्रेस करता है. 

‘थामा’ का विजुअल इफेक्ट्स सॉलिड है और सिनेमेटोग्राफी इस यूनिवर्स की पिछली फिल्मों से कुछ बेहतर लगती है. बैकग्राउंड स्कोर और गाने कहानी और मूड को सूट करते हैं. हालांकि, तीन आइटम नंबर थोड़े ज्यादा तो हैं. 'थामा' सोशल मैसेज देने के मामले में बहुत भरी-भरकम तो नहीं ही है. मगर समझा जाए तो इस लव स्टोरी में एक प्रतीकत्मक तंज तो है— प्रेम में भले किसी शख्स को दूसरा जीवन मिल जाए, मगर हमारे सोशल सिस्टम में पेरेंट्स प्रेमिका को 'डायन' ही समझते हैं. 

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कुल मिलाकर ‘थामा’ एक सॉलिड लव स्टोरी है, जिसमें डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार ने एक मिथक और लोककथा को अच्छा बुना है. हॉरर यूनिवर्स के फैन्स को ज्यादा मजा आएगा. नॉन-फैन्स को सेकंड हाफ स्लो लग सकता है. मगर चटपटे डायलॉग और पंच माहौल को संभाले रखते हैं. इस यूनिवर्स को आप फॉलो नहीं भी कर रहे हैं, तब भी फिल्म को एक मौका तो दिया ही जा सकता है.

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