जब जावेद अख्तर ने 8 पेग व्हिस्की पीकर 9 मिनट में लिख डाला ये प्यार भरा आइकॉनिक गीत

फिल्मी तड़क-भड़क से दूर, रियल सी लगने वाली कहानियों में फारूक और दीप्ति एक अलग 'रियलिस्टिक' रोमांस का चेहरा थे. और इन दोनों के ऑनस्क्रीन रोमांस का जादू दिखाने वाला एक बहुत खूबसूरत और पॉपुलर गीत है- 'तुमको देखा तो ये खयाल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया.' जितना ये गीत यादगार है, इसके बनने की कहानी उतनी ही मजेदार है.

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जब जावेद अख्तर ने 8 पेग व्हिस्की पीकर 9 मिनट में लिखा गीत जब जावेद अख्तर ने 8 पेग व्हिस्की पीकर 9 मिनट में लिखा गीत

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 18 मई 2025,
  • अपडेटेड 11:00 AM IST

फारूक शेख और दीप्ति नवल की जोड़ी भले अपने दौर का ट्रेडमार्क बन चुकीं चमचमाती मसाला हिंदी फिल्मों में बार-बार साथ नहीं नजर आई मगर ये 80s के दौर की सबसे बेहतरीन ऑनस्क्रीन जोड़ियों में से एक थी. उस दौर में बड़े पर्दे पर राज कर रहे अमिताभ बच्चन अलग-अलग फिल्मों में रेखा, परवीन बाबी और जीनत अमान के साथ फिल्मों में ऐसे रोमांटिक प्लॉट में नजर आते थे जो सपनों में घटने वाला, ओवर-द-टॉप मामला होता था. 

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उस दौर में अधिकतर लव स्टोरीज बड़ी 'फिल्मी' होती थीं. मगर इन्हीं सब के बीच, लिमिटेड बजट और फिल्मी तड़क-भड़क से दूर, रियल सी लगने वाली कहानियों में फारूक और दीप्ति एक अलग 'रियलिस्टिक' रोमांस का चेहरा थे. और इन दोनों के ऑनस्क्रीन रोमांस का जादू दिखाने वाला एक बहुत खूबसूरत और पॉपुलर गीत है- 'तुमको देखा तो ये खयाल आया, जिंदगी धूप तुम घना साया.' 

'साथ साथ' में फारूक शेख, दीप्ति नवल (क्रेडिट: सोशल मीडिया)

कुलदीप सिंह की कंपोज की हुई धुन को, जगजीत सिंह की जादुई आवाज ने वो रंग दिया जो शायद ही कभी बॉलीवुड लवर्स से उतरे. लेकिन हर अच्छे गाने की तरह इसे यादगार बनाने वाली सबसे महत्वपूर्ण चीज हैं इसके लिरिक्स. सादगी से भरे, प्रेम के पॉपुलर फिल्मी रूपकों से दूर ये लिरिक्स रचे थे जावेद अख्तर ने. इन लिरिक्स के कागज पर उतरने का किस्सा बहुत मजेदार है. 

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संघर्ष की धूप में छाया बनकर आए प्रेम का गीत 
फारूक शेख और दीप्ति नवल की जोड़ी को लोग 'चश्मे बद्दूर', 'कथा' और 'फासले' वगैरह फिल्मों में ज्यादा याद रखते हैं. मगर इन दोनों के ऑनस्क्रीन रोमांस के जादू को महसूस करने के लिए एक और बहुत खूबसूरत फिल्म है 'साथ साथ' (1982).  

एक आदर्शवादी लड़के के प्रेम में, अपने रईस पिता का घर छोड़कर आई लड़की को धीरे-धीरे एहसास होता है कि शादी-ब्याह-घर-गृहस्थी की भभकती आंच में प्रेम कैसे कपूर बनकर हवा में उड़ जाता है. लड़के को एहसास होता है कि तरक्की का आसमान चूमने के चक्कर में उसके पैरों तले की जमीन खिसक गई है. 

ये कहानी है तो बहुत रियल मगर इसकी शुरुआत में जब प्रेम पनप रहा है तब फारूक और दीप्ति स्टारर ये लव स्टोरी देखते हुए आप पाएंगे कि आपके चेहरे पर लगातार एक बहुत प्यारी मुस्कराहट बनी हुई है. 'तुमको देखा तो ये खयाल आया' कहानी के इसी दौर में आया हुआ गीत है जो फिल्म के मुकाबले कहीं ज्यादा पॉपुलर हुआ और फिल्मों से रोमांस सीख रहे रियल लाइफ लवर्स के लिए एक एंथम बन गया. लेकिन ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि लगभग साढ़े चार मिनट लंबा ये गाना लिखने में जावेद साहब ने मात्र नौ मिनट का वक्त लगाया था. वो भी तब, जब उनके शरीर में ठीकठाक शराब उतर चुकी थी. 

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हो सकता है कि आप इस बात पर यकीन ना करें इसलिए आपको बता दें कि ये बात उन्होंने खुद बताई थी. कुछ साल पहले एक इवेंट में जावेद अख्तर तेजी से गाने लिखने की बात कर रहे थे. इसी सिलसिले में उन्होंने 'तुमको देखा तो ये खयाल आया' का भी किस्सा बताया. उन्होंने कहा, 'मैंने दो चार गाने 10 मिनट से कम में लिखे हैं, उनमें से एक गाना वो भी है.' 

जावेद अख्तर ने बिना फीस लिए लिखा था ये गाना
दरअसल, 'साथ साथ' के डायरेक्टर रमन कुमार, अमिताभ बच्चन-रेखा-जया बच्चन की आइकॉनिक फिल्म 'सिलसिला' (1981) में यश चोपड़ा के असिस्टेंट डायरेक्टर थे. इस फिल्म के गाने भी अपने आप में काफी आइकॉनिक हैं और ये भी जावेद अख्तर के ही लिखे हुए थे. अपनी 'छोटी सी फिल्म' बनाने निकले रमन कुमार ने जावेद अख्तर से ही अपनी फिल्म के गाने लिखने की भी रिक्वेस्ट की. रिक्वेस्ट इसलिए क्योंकि रमन इसके लिए जावेद साहब को फीस नहीं दे सकते थे. उनकी फिल्म छोटी थी, बजट कम था. उन्होंने जावेद से कहा कि वो मनमुताबिक फीस तो यश चोपड़ा से वसूल ही चुके हैं, अब 'साथ साथ' के लिए भी गाने लिख देते तो बड़ा अच्छा होता. 

जावेद साहब तैयार हो गए. मगर चूंकि फीस एक आर्टिस्ट का मोटिवेशन होती है और इस मोटिवेशन की कमी से जावेद साहब भी मनमौजी रफ्तार में काम कर रहे थे. उन्होंने बाकी गाने तो लिख दिए मगर फारूक और दीप्ति की लव स्टोरी के इमोशन उभारने वाला गाना बाकी था. 

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जावेद ने बताया, 'वो बेचारा रोज शाम को आ जाता. उस जमाने में मैं शराब पिया करता था. वो आ जाता था शाम को गाने के लिए और हम बैठे रहते थे, बात करते रहते थे, शराब पीते रहते थे. फिर डेढ़-दो बज जाते थे, खाना खाते थे... (और तय करते थे) कल करेंगे!' ये कल आने को तैयार ही नहीं था, आगे खिसके जा रहा था. फिर एक दिन बेचारे रमन कुमार एकदम परेशान होकर पहुंचे, उन्हें तो गाना चाहिए था. बकौल जावेद साहब, 'रात के दो बजे, आठ या नौ पेग के बाद मैंने कहा- अच्छा लाओ पेपर-पेन अभी लिखते हैं. तो वो गाना 9 मिनट में लिखकर मैंने उसे दे दिया.' 

अब आप सोचेंगे कि 8-9 पेग शराब गले से उतारने के बाद जावेद साहब को क्या ही याद रहा होगा कि गाना लिखने में कितना टाइम लगा! उन्होंने इस बात का जवाब भी तभी दे दिया था. जावेद अख्तर ने बताया कि रमन को उनके घर से निकलने के बाद आखिरी ट्रेन पकड़नी थी इसलिए गाना लिखते हुए वो बार-बार उनकी घड़ी की तरफ भी देख रहे थे. इसलिए उन्हें एकदम ठीक-ठीक याद है कि ये गाना उन्होंने नौ मिनट में लिखा था. 

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