साहित्य आजतक 2025 के तीसरे दिन बॉलीवुड स्टार्स ने चार चांद लगाए. इवेंट के आखिरी दिन 'पाताल लोक' फेम एक्टर जयदीप अहलावत ने स्टेज पर शिरकत की. मॉडरेटर श्वेता सिंह संग बातचीत में जयदीप ने बताया कि वो अपने प्रोजेक्ट्स को करते हुए क्या सोच रखते हैं. साथ ही उन्होंने सबसे मुश्किल मूवी जॉनर पर भी बात की. बातों-बातों में जयदीप ने खुलासा किया कि कैसे एक बार कुछ गड़बड़ के चलते उन्हें दो फिल्मों की शूटिंग साथ करने पड़ गई थी, जिसके चलते उनकी रातों की नींद तक उड़ गई थी.
4 दिन तक 24 घंटे की शूटिंग
जयदीप अहलावत ने बताया कि वो प्रोजेक्ट्स को 'एक एग्जाम खत्म हो जाए फिर दूसरी की तैयारी की जाए' के हिसाब से लेते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी कोशिश यही रहती है कि एक बार में एक प्रोजेक्ट किया जाए. एक्टर ने कहा, 'जब एक शूट चल रहा होता है, जैसे पाताल लोक चल रहा था, तो वो 5-6 महीने कुछ और कर भी नहीं सकते हो आप. इतने बिजी रहते हो आप. जो थोड़ा बहुत वक्त मिलता है, वो आपको अपने पर्सनल टाइम के लिए चाहिए होता है. लेकिन उतना वक्त होता नहीं है. फिल्में बहुत जल्दी खत्म हो जाती हैं. इन एवरेज एक फिल्म 50-60 दिन में शूट डेज के हिसाब से खत्म हो जाती है. उसके मुकाबले (सीरीज में) तीन गुना ज्यादा टाइम लगता है. एक लंबी सीरीज को खत्म करने में दो से तीन गुना टाइम लगता है. तो आप उस किरदार के साथ, कहानी के साथ लंबे वक्त तक रहते हो. और कोशिश करते हो कि एक एग्जाम खत्म हो तभी दूसरा शुरू किया जाए.'
एक्टर ने आगे अपनी हालत के बारे में खुलासा करते हुए कहा, 'नहीं तो ऐसा होता है कि वो जानबूझकर नहीं किया गया लेकिन कुछ शेड्यूल ऊपर नीचे हो गया... मैं दो फिल्में एक साथ कर रहा था और मैंने चार दिन, 24 घंटे शूट किया है. 12 घंटे एक, फिर घर पहुंचो नहाओ-धो, दूसरी पर चले जाओ. वो मुमकिन ही नहीं था कि हम उसका कुछ और तरीका निकाल पाएं. तो मैं जनरली ट्राफिक होता है उसमें या शूट के बीच जो टाइम मिलता है, एक शॉट से दूसरे शॉट के बीच में, उसमें सोता रहता था. ये जिंदगी का हिस्सा है.'
किस तरह की फिल्में होती हैं मुश्किल?
जयदीप से पूछा गया कि फिल्मों का कौन-सा जॉनर या फ्लेवर कर पाना सबसे मुश्किल होता है. इसपर एक्टर ने कहा, 'लोग कहते हैं कि रोना आसान है, हंसाना मुश्किल. मैं पूरी तरह सहमत हूं. मेरे ख्याल से कॉमेडी सबसे मुश्किल है. सिर्फ एक्टर्स के लिए ही नहीं, सबसे जरूरी है डायरेक्टर, जो लिखा जा रहा है, और जिस विजन के साथ आप उसे आगे फेंकते हो, वो बहुत अहम है. कई बार एक्टर का कन्विक्शन नहीं होता कि 'ये मजाकिया नहीं लगेगा', लेकिन कुछ डायरेक्टर्स का विजन इतना मजबूत होता है कि उन्हें पता होता है कि ये मजाकिया बनेगा ही.'
उन्होंने आगे कहा, 'ऐसे कई नाम हैं. हिंदी सिनेमा में प्रियदर्शन जी को हम आम तौर पर कॉमेडी फिल्में बनाने वाला मानते हैं, लेकिन उन्होंने हर तरह से बहुत अच्छा सिनेमा बनाया है. उनमें वो सेंस है, उन्हें पता होता है कि क्या हंसाएगा. वो कहानी का पूरा माहौल बना देते हैं. स्लैपस्टिक कॉमेडी को कुछ लोग इतना आसान बना देते हैं, डेविड धवन जी बहुत करते थे.' ऐसे में जयदीप से पूछा गया कि क्या वो हार्डकोर कॉमेडी कर सकते हैं? जयदीप ने जवाब दिया, 'बिल्कुल ट्राई करना चाहूंगा. चाहे स्लैपस्टिक हो या सिचुएशनल, जरूर करना चाहूंगा.'
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